हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। चैत्र माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को आमलकी रंगभरी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इस एकादशी को भगवान विष्णु और आंवला (आमलकी) के पूजन से जोड़ा जाता है। यह दिन विशेष रूप से वैष्णव भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इसी दिन से होली के रंगों का प्रारंभ भी माना जाता है। इसलिए इसे रंगभरी एकादशी भी कहते हैं।
इस दिन आंवले के वृक्ष का पूजन करने से न केवल धार्मिक लाभ प्राप्त होता है, बल्कि यह स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी माना जाता है। इस एकादशी का व्रत रखने से समस्त पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
आमलकी रंगभरी एकादशी का महत्व
1. धार्मिक महत्व:
- इस दिन भगवान विष्णु की आराधना से विशेष पुण्य प्राप्त होता है।
- आंवले के वृक्ष की पूजा करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और शुद्धता आती है।
- इस एकादशी को धारण करने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।
2. पौराणिक मान्यता:
शास्त्रों में वर्णित कथा के अनुसार, एक समय की बात है जब राजा मान्धाता ने भगवान नारायण से पूछा कि आमलकी एकादशी व्रत करने से कौन-कौन से लाभ प्राप्त होते हैं। भगवान ने उत्तर दिया कि इस एकादशी का व्रत करने से सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है।
एक अन्य कथा के अनुसार, एक निर्धन ब्राह्मण इस व्रत को करने से अत्यंत धनी और समृद्ध हो गया। भगवान विष्णु की कृपा से उसके सभी कष्ट समाप्त हो गए।
3. रंगों का उत्सव:
- इस एकादशी को रंगभरी एकादशी इसलिए कहते हैं क्योंकि इसी दिन से होली के रंगों की शुरुआत होती है।
- उत्तर भारत, विशेष रूप से वाराणसी में, भगवान शिव और माता पार्वती को रंग लगाकर होली खेलने की परंपरा है।
- काशी में बाबा विश्वनाथ की बारात भी इस दिन निकाली जाती है।
आमलकी रंगभरी एकादशी की पूजा विधि
व्रत और पूजन की तैयारी:
- प्रातःकाल स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें।
- व्रत का संकल्प लें और भगवान विष्णु का ध्यान करें।
- पूजा स्थल को स्वच्छ करें और आंवले के वृक्ष के नीचे या घर में आंवले का चित्र रखकर पूजन करें।
पूजा विधि:
- भगवान विष्णु की पूजा:
- भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र पर गंगाजल छिड़ककर उसे स्वच्छ करें।
- उन्हें चंदन, रोली, अक्षत, पुष्प, और तुलसी पत्र अर्पित करें।
- विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें या “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।
- धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
- आंवले के वृक्ष की पूजा:
- आंवले के वृक्ष को जल अर्पित करें।
- हल्दी, रोली और अक्षत चढ़ाएं।
- वृक्ष के चारों ओर कच्चा सूत लपेटकर परिक्रमा करें।
- वृक्ष के नीचे बैठकर कथा और कीर्तन करें।
- व्रत और पारण:
- व्रतधारी को इस दिन फलाहार करना चाहिए।
- अगले दिन द्वादशी को अन्न-ग्रहण कर व्रत का पारण करें।
आमलकी रंगभरी एकादशी व्रत के लाभ
धार्मिक और आध्यात्मिक लाभ:
- पुण्य की प्राप्ति: इस व्रत के प्रभाव से पूर्व जन्मों के पाप नष्ट होते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है।
- मोक्ष का मार्ग: विष्णु जी की कृपा से जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिलती है।
- श्रीहरि का आशीर्वाद: यह व्रत रखने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
स्वास्थ्य और पर्यावरणीय लाभ:
- आंवले का महत्व:
- आंवला आयुर्वेद में अत्यंत गुणकारी माना गया है।
- यह विटामिन C से भरपूर होता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
- इसके सेवन से पाचन शक्ति बढ़ती है और त्वचा निखरती है।
- मानसिक शांति:
- व्रत और पूजा से मानसिक शांति प्राप्त होती है।
- ध्यान और कीर्तन से मनोबल बढ़ता है और तनाव दूर होता है।
सामाजिक और सांस्कृतिक लाभ:
- परिवार में सुख-शांति: इस दिन पूरे परिवार सहित व्रत करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
- सद्भाव और मेलजोल: होली के रंगों की शुरुआत से लोग आपस में प्रेम और भाईचारे का भाव बढ़ाते हैं।
विशेष नियम और सावधानियां
- इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें और सात्विक भोजन करें।
- व्रतधारी को झूठ, हिंसा और क्रोध से बचना चाहिए।
- इस दिन शराब और मांसाहार का सेवन वर्जित होता है।
- व्रत खोलते समय गरीबों को दान-दक्षिणा अवश्य दें।
आमलकी रंगभरी एकादशी न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि वैज्ञानिक और सामाजिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह व्रत न केवल आत्मशुद्धि करता है बल्कि स्वास्थ्य को भी लाभ पहुंचाता है। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
जो भी व्यक्ति इस व्रत को श्रद्धा और भक्ति से करता है, वह सुख-समृद्धि, पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति करता है। इस प्रकार, यह एकादशी न केवल आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती है, बल्कि यह होली जैसे आनंदमय पर्व की भी शुरुआत करती है।