
अध्याय 1 – अर्जुनविषादयोग
श्लोक 16
अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः ।
नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ ॥१६॥
हिंदी भावार्थ:
राजा युधिष्ठिर (जो कुन्तीपुत्र हैं) ने ‘अनन्तविजय' नामक शंख बजाया। नकुल और सहदेव ने क्रमशः ‘सुघोष' और ‘मणिपुष्पक' नामक शंख बजाए।
गूढ़ व्याख्या / विस्तारपूर्वक अर्थ:
इस श्लोक में भगवान संजय युद्ध का दृश्य धृतराष्ट्र को सुना रहे हैं। इसमें पांडव पक्ष के अन्य योद्धाओं के शंखनाद का वर्णन है। यहाँ युधिष्ठिर, जो धर्मराज कहलाते हैं और पांडवों के ज्येष्ठ भाई हैं, उन्होंने अनन्तविजय नामक शंख बजाया। यह नाम प्रतीक है अंतहीन विजय का — एक ऐसी विजय जो धर्म के साथ हो और जो कभी समाप्त न हो।
इसके बाद युधिष्ठिर के छोटे भाई नकुल और सहदेव का उल्लेख है, जो अश्विनी कुमारों के पुत्र माने जाते हैं। ये दोनों भी पराक्रमी और महान योद्धा थे। उन्होंने सुघोष और मणिपुष्पक नामक अपने-अपने शंख बजाए।
- सुघोष शब्द मधुर और दूर तक गूंजने वाली ध्वनि को दर्शाता है।
- मणिपुष्पक शब्द सुंदरता और दिव्यता का संकेत देता है — जैसे कोई शंख रत्न और फूलों से सुसज्जित हो।
यह श्लोक पांडवों की संगठित तैयारी, उनकी सैन्य शक्ति और आत्मबल को दर्शाता है। शंखनाद युद्ध की औपचारिक घोषणा के साथ-साथ मनोबल और पराक्रम का प्रतीक होता है। यह ध्वनि शत्रु पक्ष के मन में भय भरने का कार्य करती है।
सारांश:
युधिष्ठिर, नकुल और सहदेव जैसे धर्मपरायण और वीर योद्धा भी अपने विशेष शंखों को बजाकर युद्ध के लिए तैयार होते हैं। इन शंखों के नाम प्रतीकात्मक हैं — वे पांडवों के आत्मविश्वास, उच्च उद्देश्य (धर्म) और विजय की भावना को दर्शाते हैं।






