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Shrimad Bhagavad Gita Chapter -1 Shalok – 36 | श्रीमद् भगवदगीता अध्याय एक – श्लोक छत्तीस | PDF

  • जुलाई 23, 2025

अध्याय 1 – अर्जुनविषादयोग

श्लोक 36

निहत्य धार्तराष्ट्रान्न का प्रीतिः स्याज्जनार्दन ।
पापमेवाश्रयेदस्मान्हत्वैतानाततायिनः॥३६॥

हिन्दी भावार्थ:

हे जनार्दन! धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हमें क्या सुख या प्रसन्नता मिलेगी?
यद्यपि वे आततायी (अत्याचारी) हैं, फिर भी इनको मारने से तो हम पर पाप ही आएगा।

सरल व्याख्या / विस्तार:

अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण से कहते हैं:

“हे जनार्दन! यदि हम धृतराष्ट्र के पुत्रों (कौरवों) को मार भी दें, तो इससे हमें कौन-सी खुशी या संतोष मिलेगा? वे भले ही अन्यायकारी और अत्याचारी (आततायी) हों, परन्तु उनका वध करने से भी हमें पाप ही लगेगा।”

यहाँ “आततायी” शब्द का अर्थ होता है — ऐसे व्यक्ति जो समाज या धर्म के विरुद्ध घोर अपराध करें (जैसे ज़मीन हड़पना, आग लगाना, जहर देना, हत्या करना आदि)।
धर्मशास्त्रों के अनुसार आततायी का वध पाप नहीं होता, परंतु अर्जुन की भावना यह है कि —

  • वे भले ही आततायी हैं, लेकिन अपने भाई, गुरुजन और बंधु होने के नाते उनका वध नैतिक रूप से उचित नहीं लगता
  • अर्जुन को लगता है कि व्यक्तिगत या पारिवारिक संबंध इस युद्ध के औचित्य पर भारी हैं।

दार्शनिक संकेत:

यह श्लोक कर्तव्य और भावनात्मक मोह के बीच टकराव को दर्शाता है।
अर्जुन यहाँ नैतिक दुविधा में हैं —

  • एक ओर धर्म (राजधर्म और युद्ध का कर्तव्य),
  • दूसरी ओर माया (रक्त संबंध, स्नेह, करुणा)।

वह सोचते हैं कि:

  • “धर्मपूर्वक लड़ना” और
  • “अपने प्रियजनों का वध करना”
    दोनों में विरोधाभास है, और इस द्वंद्व से वह दुखी हैं।

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