श्री गणेश स्तुति
ॐ गजाननं भूतगणाधि सेवितम् –
हे गजानन! जो भूतगणों और अन्य दैवीय शक्तियों द्वारा सेवा किए जाते हैं।
कपित्थजम्बू फलचारु भक्षणम् –
जो कपित्थ (कैथ) और जम्बू (जामुन) जैसे स्वादिष्ट फलों का भक्षण करने में आनन्द लेते हैं।
उमासुतम् शोक विनाशकारकम् –
जो माता उमा (पार्वती) के प्रिय पुत्र हैं और जो भक्तों के सभी शोक एवं दुखों को दूर करने वाले हैं।
नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम् –
ऐसे विघ्नों को हरने वाले गणेश जी के चरणकमलों को मैं नमन करता हूँ।
गणपति जगवंदन
॥ दोहा ॥
गाइये गणपति जगवंदन।
शंकर-सुवन भवानी नंदन ॥ १ ॥
अर्थ:
हे गणपति! आपकी स्तुति गाएँ, जो पूरे जगत के पूज्यनीय हैं। आप भगवान शंकर के पुत्र एवं माता भवानी के प्रिय नंदन हैं।
गाइये गणपति जगवंदन।
सिद्धि-सदन, गज बदन, बिनायक।
कृपा-सिंधु, सुंदर सब-लायक ॥ २ ॥
अर्थ:
हे गणपति! आपकी स्तुति करें। आप सिद्धियों के धाम हैं, गजमुख (हाथी जैसा मुख) वाले हैं, और बिनायक (विघ्नों का नाश करने वाले) हैं। आप कृपा के सागर हैं और सभी प्रकार से सुंदर एवं योग्य हैं।
गाइये गणपति जगवंदन।
मोदक-प्रिय, मुद-मंगल-दाता।
बिद्या-बारिधि, बुद्धि बिधाता ॥ ३ ॥
अर्थ:
हे गणपति! आपकी स्तुति करें। आप मोदक (लड्डू) प्रिय हैं और आनंद एवं मंगल प्रदान करने वाले हैं। आप विद्या के समुद्र और बुद्धि के दाता हैं।
गाइये गणपति जगवंदन।
मांगत तुलसीदास कर जोरे।
बसहिं रामसिय मानस मोरे ॥ ४ ॥
अर्थ:
हे गणपति! तुलसीदास हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रहे हैं कि आप मेरे हृदय में सिया-राम के साथ निवास करें।
यह स्तुति भगवान गणेश की महिमा का गुणगान करती है। वे समस्त जगत के पूजनीय हैं, सिद्धि के स्वामी हैं, विघ्नों का नाश करने वाले हैं, कृपा के सागर हैं और ज्ञान एवं बुद्धि के दाता हैं। तुलसीदास जी प्रार्थना करते हैं कि प्रभु गणेश उनके हृदय में सिया-राम के साथ निवास करें।
॥ श्री गणेशाय नमः ॥