सप्तमी श्राद्ध एक महत्वपूर्ण हिन्दू धार्मिक अनुष्ठान है जो विशेष रूप से पितरों की पूजा और सम्मान के लिए मनाया जाता है। यह श्राद्ध सप्तमी तिथि को किया जाता है, जो पितृ पक्ष के सातवें दिन पड़ती है।
सप्तमी श्राद्ध की विशेषताएँ:
1. उद्देश्य:
- सप्तमी श्राद्ध का मुख्य उद्देश्य उन पितरों की आत्मा की शांति और तृप्ति के लिए श्राद्ध कर्म करना होता है जिनकी मृत्यु सप्तमी तिथि को हुई थी। यह पितरों को सम्मान देने और उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करने का एक अवसर होता है।
2. समय:
- यह श्राद्ध पितृ पक्ष के सातवें दिन (सप्तमी तिथि) को किया जाता है, जो आमतौर पर भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष में पड़ता है (अधिकतर सितंबर के आसपास)। तिथि का सटीक निर्धारण चंद्रमा के आधार पर होता है।
3. विधि:
श्राद्ध समारोह:
- इस दिन पितरों के लिए भोजन, जल और वस्त्र अर्पित किए जाते हैं। ये अर्पण पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए किए जाते हैं।
तर्पण:
- तर्पण में तिल (सेंसेम सीड्स) मिलाकर जल पितरों को अर्पित किया जाता है, जो उनकी आत्मा की शांति के लिए किया जाता है।
पिंडदान:
- चावल, जौ और तिल के मिश्रण से पिंड (गोल आकार के अर्पण) तैयार करके पितरों को अर्पित किए जाते हैं। यह अनुष्ठान पितरों की आत्मा को तृप्त करता है।
भगवान विष्णु और शिव की पूजा:
- इस दिन भगवान शिव और विष्णु की पूजा की जाती है क्योंकि उन्हें पितरों की मुक्ति का मार्गदर्शक माना जाता है। भगवान शिव को जल और बेलपत्र अर्पित किया जाता है, और विष्णु जी का विष्णु सहस्रनाम या विष्णु चालीसा का पाठ किया जाता है।
4. पितृ को प्रसन्न करने के मंत्र
ओम् पितृभ्यः नमः |
पितरः स्वाहा | पितरः स्वाहा | पितरः स्वाहा |
अर्थ:
- इस मंत्र का अर्थ है कि पितरों को नमस्कार। इस मंत्र के माध्यम से पितरों को सम्मान और श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है।
ओम् यमाय नमः |
यमः स्वाहा | यमः स्वाहा | यमः स्वाहा |
अर्थ:
- इस मंत्र का अर्थ है कि यमराज (मृत्यु के देवता) को नमस्कार। यमराज की पूजा करने से पितरों की आत्मा को शांति और मुक्ति मिलती है।
5. विधि:
पुजारी या पंडित:
- एक योग्य पंडित या पुरोहित को बुलाया जाता है जो विधिपूर्वक श्राद्ध कर्म को संपन्न कर सके।
पूजा सामग्री:
- इस दिन पूजा के लिए पंखा, वस्त्र, फल, फूल, दीपक, तिल, चंदन और जल की व्यवस्था की जाती है।
पितृ तर्पण:
- पितरों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए तर्पण (जल अर्पण) किया जाता है।
भोजन:
- इस दिन विशेष भोग (पाकवान) पितरों को अर्पित किए जाते हैं।
6. ब्राह्मण भोज और दान:
ब्राह्मण भोज:
- पितरों की आत्मा की शांति के लिए ब्राह्मणों को सात्विक भोजन कराया जाता है और दान दिया जाता है।
दान:
- दान में अन्न, वस्त्र, धन, और जरूरतमंदों को सहायता दी जाती है, जिससे पितरों की आत्मा को संतोष प्राप्त होता है।
7. विशेष नियम:
तामसिक भोजन का वर्जन:
- इस दिन तामसिक भोजन जैसे मांस, मछली, अंडे आदि का सेवन वर्जित होता है।
पवित्रता और श्रद्धा:
- श्राद्ध अनुष्ठान में पूर्ण पवित्रता और श्रद्धा के साथ नियमों का पालन करना आवश्यक होता है।
सप्तमी श्राद्ध उन पितरों के लिए श्रद्धांजलि अर्पित करने का एक महत्वपूर्ण दिन है, जो सप्तमी तिथि पर मृत्यु को प्राप्त हुए थे। इस दिन किए गए श्राद्ध और दान से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है।
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