
माँ सरस्वती चालीसा
माँ सरस्वती चालीसा एक प्रमुख हिंदू धार्मिक भजन है, जिसे देवी सरस्वती की पूजा और स्तुति के लिए रचा गया है। यह चालीसा विशेष रूप से ज्ञान, बुद्धि, संगीत, और कला की देवी सरस्वती को समर्पित है। इस चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति को विद्या, बुद्धि, और जीवन में सफलता की प्राप्ति होती है।
|| दोहा ||
जनक जननि पद कमल रज, निज मस्तक पर धारि।
अर्थ: मैं जनक नंदिनी (माता सीता) के चरणों की रज को अपने मस्तक पर धारण करता हूँ।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥
अर्थ: हे माता सरस्वती! आपको प्रणाम करता हूँ। कृपया मुझे बुद्धि और बल प्रदान करें।
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
अर्थ: हे माता! आपकी महिमा अनंत और असीमित है, जो पूरे संसार में व्याप्त है।
रामसागर के पाप को, मातु तुही अब हन्तु॥
अर्थ: हे माता! रामसागर के पापों को समाप्त करने वाली आप ही हैं।
|| चौपाई ||
जय श्री सकल बुद्धि बलरासी। जय सर्वज्ञ अमर अविनासी॥
अर्थ: हे माता सरस्वती, आप बुद्धि और बल की मूर्ति हैं। आप सर्वज्ञ, अमर और अविनाशी हैं।
जय जय जय वीणाकर धारी। करती सदा सुहंस सवारी॥
अर्थ: आपके हाथों में वीणा शोभा पाती है और आप सदैव हंस पर सवारी करती हैं।
रूप चतुर्भुजधारी माता। सकल विश्व अन्दर विख्याता॥
अर्थ: चतुर्भुज स्वरूप धारण करने वाली माता, जो पूरे विश्व में विख्यात हैं।
जग में पाप बुद्धि जब होती। जबहि धर्म की फीकी ज्योती॥
अर्थ: जब संसार में पाप की बुद्धि बढ़ जाती है और धर्म की ज्योति मंद हो जाती है।
तबहि मातु ले निज अवतारा। पाप हीन करती महि तारा॥
अर्थ: तब आप स्वयं अवतार लेकर पाप को समाप्त करती हैं और पृथ्वी का उद्धार करती हैं।
बाल्मीकि जी थे बहम ज्ञानी। तव प्रसाद जानै संसारा॥
अर्थ: वाल्मीकि जी, जो ब्रह्मज्ञानी बने, वह आपकी कृपा से ही हुआ।
रामायण जो रचे बनाई। आदि कवी की पदवी पाई॥
अर्थ: वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना की और ‘आदि कवि’ का दर्जा पाया।
कालिदास जो भये विख्याता। तेरी कृपा दृष्टि से माता॥
अर्थ: महाकवि कालिदास, जो संसार में प्रसिद्ध हुए, वह आपकी कृपा दृष्टि से ही हुआ।
तुलसी सूर आदि विद्धाना। भये और जो ज्ञानी नाना॥
अर्थ: तुलसीदास, सूरदास और अन्य महान कवि एवं ज्ञानी भी आपकी कृपा से प्रसिद्ध हुए।
तिन्हहिं न और रहेउ अवलम्बा। केवल कृपा आपकी अम्बा॥
अर्थ: इन सबके पास कोई अन्य सहारा नहीं था, केवल आपकी कृपा थी, हे माँ।
करहु कृपा सोइ मातु भवानी। दुखित दीन निज दासहि जानी॥
अर्थ: हे माता भवानी, अपने दुखी और दीन दास पर कृपा करें।
पुत्र करै अपराध बहूता। तेहि न धरइ चित सुन्दर माता॥
अर्थ: जैसे माता अपने पुत्र के अनेक अपराधों को नजरअंदाज करती हैं, वैसे ही आप भी करें।
राखु लाज जननी अब मेरी। विनय करूं बहु भाँति घनेरी॥
अर्थ: हे माँ! मेरी लाज रख लीजिए। मैं बार-बार आपसे प्रार्थना करता हूँ।
मैं अनाथ तेरी अवलंबा। कृपा करउ जय जय जगदंबा॥
अर्थ: मैं अनाथ हूँ और आपका ही सहारा हूँ। हे जगदंबा, मुझ पर कृपा करें।
मधु कैटभ जो अति बलवाना। बाहुयुद्ध विष्णू ते ठाना॥
अर्थ: मधु और कैटभ नामक दो अत्यंत बलवान राक्षस थे, जिन्होंने स्वयं भगवान विष्णु से युद्ध किया।
समर हजार पांच में घोरा। फिर भी मुख उनसे नहिं मोरा॥
अर्थ: उन्होंने पाँच हज़ार वर्षों तक घोर युद्ध किया, परंतु वे पराजित नहीं हुए।
मातु सहाय भई तेहि काला। बुद्धि विपरीत करी खलहाला॥
अर्थ: तब माता सरस्वती ने सहायता की और उनकी बुद्धि को विपरीत कर दिया।
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी। पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥
अर्थ: उनकी इस विपरीत बुद्धि के कारण ही उनकी मृत्यु हुई। हे माता, मेरे भी मनोरथ पूरे करें।
चंड मुण्ड जो थे विख्याता। छण महुं संहारेउ तेहि माता॥
अर्थ: चंड और मुण्ड जैसे ख्यात राक्षसों को माता ने पल भर में नष्ट कर दिया।
रक्तबीज से समरथ पापी। सुर-मुनि हृदय धरा सब कांपी॥
अर्थ: रक्तबीज नामक अत्यंत बलशाली राक्षस से लड़ाई में देवता और मुनि भी भयभीत हो गए।
काटेउ सिर जिम कदली खम्बा। बार बार बिनवउं जगदंबा॥
अर्थ: माता ने उसका सिर ऐसे काटा जैसे केले के तने को काटा जाता है। मैं बार-बार उस जगदंबा को प्रणाम करता हूँ।
जग प्रसिद्ध जो शुंभ निशुंभा। छिन में बधे ताहि तू अम्बा॥
अर्थ: शुंभ और निशुंभ जैसे प्रसिद्ध राक्षसों को माता ने पल भर में नष्ट कर दिया।
भरत-मातु बुधि फेरेउ जाई। रामचन्द्र बनवास कराई॥
अर्थ: माता ने कैकयी की बुद्धि को पलट दिया, जिससे श्रीराम को वनवास हुआ।
एहि विधि रावन वध तुम कीन्हा। सुर नर मुनि सब कहुं सुख दीन्हा॥
अर्थ: इसी प्रकार रावण का वध कर, माता ने देवताओं, मनुष्यों और मुनियों को आनंद प्रदान किया।
को समरथ तव यश गुन गाना। निगम अनादि अनंत बखाना॥
अर्थ: हे माता, आपके गुणों का वर्णन कौन कर सकता है? वेदों ने भी आपकी महिमा को अनादि और अनंत बताया है।
विष्णु रूद्र अज सकहिं न मारी। जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥
अर्थ: विष्णु, शिव, और ब्रह्मा भी जिनका सामना नहीं कर सकते, उनका संहार आपकी कृपा से ही संभव है।
रक्त दन्तिका और शताक्षी। नाम अपार है दानव भक्षी॥
अर्थ: आपके अनेक रूप जैसे रक्तदंतिका और शताक्षी, दुष्टों का नाश करने के लिए प्रसिद्ध हैं।
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा। दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥
अर्थ: आपने धरती पर कठिन कार्यों को पूरा किया, इसलिए आपको ‘दुर्गा’ नाम मिला।
दुर्ग आदि हरनी तू माता। कृपा करहु जब जब सुखदाता॥
अर्थ: हे माता दुर्गा, आप दुखों को हरने वाली हैं। कृपा कर हर समय सुख प्रदान करें।
नृप कोपित जो मारन चाहै। कानन में घेरे मृग नाहै॥
अर्थ: यदि कोई राजा कुपित होकर किसी का वध करना चाहे या वन में हिंसक जानवरों से घिर जाए।
सागर मध्य पोत के भंगे। अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥
अर्थ: या समुद्र में नाव डूबने लगे और कोई साथ देने वाला न हो।
भूत प्रेत बाधा या दुःख में। हो दरिद्र अथवा संकट में॥
अर्थ: भूत-प्रेत, दरिद्रता, या किसी भी प्रकार की विपत्ति में।
नाम जपे मंगल सब होई। संशय इसमें करइ न कोई॥
अर्थ: यदि आपका नाम जपा जाए तो सब मंगल होता है। इसमें कोई संशय नहीं है।
पुत्रहीन जो आतुर भाई। सबै छांड़ि पूजें एहि माई॥
अर्थ: जो पुत्रहीन हैं, यदि वे इस माता की पूजा करें।
करै पाठ नित यह चालीसा। होय पुत्र सुन्दर गुण ईसा॥
अर्थ: और यदि इस चालीसा का नित्य पाठ करें, तो उन्हें गुणवान और सुंदर पुत्र की प्राप्ति होगी।
धूपादिक नैवेद्य चढावै। संकट रहित अवश्य हो जावै॥
अर्थ: जो माता को धूप और नैवेद्य अर्पित करते हैं, उनके सभी संकट समाप्त हो जाते हैं।
भक्ति मातु की करै हमेशा। निकट न आवै ताहि कलेशा॥
अर्थ: जो सदा माता की भक्ति करता है, उसके पास कोई क्लेश नहीं आता।
बंदी पाठ करें शत बारा। बंदी पाश दूर हो सारा॥
अर्थ: जो सौ बार इस पाठ का पाठ करता है, उसके सारे बंधन समाप्त हो जाते हैं।
करहु कृपा भवमुक्ति भवानी। मो कहं दास सदा निज जानी॥
अर्थ: हे माता भवानी, मुझ पर कृपा करें और मुझे भवसागर से मुक्त करें। मुझे अपना दास समझें।
|| दोहा ||
माता सूरज कान्ति तव, अंधकार मम रूप।
अर्थ: हे माता! आपकी आभा सूर्य के समान है और मैं अज्ञान के अंधकार के समान हूँ।
डूबन ते रक्षा करहु, परूं न मैं भव-कूप॥
अर्थ: मुझे भवसागर में डूबने से बचाएं।
बल बुद्धि विद्या देहुं मोहि, सुनहु सरस्वति मातु।
अर्थ: हे माता सरस्वती, मुझे बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करें।
अधम रामसागरहिं तुम, आश्रय देउ पुनातु॥
अर्थ: हे माता, अधम रामसागर को भी अपना आश्रय देकर पवित्र करें।
यह सरस्वती चालीसा माता की महिमा का गान करती है। इसमें भक्त अपने अज्ञान, दुख, और कष्टों से मुक्ति के लिए माता से प्रार्थना करता है। उनकी कृपा से कठिन से कठिन कार्य भी सरल हो जाते हैं।