षष्ठी श्राद्ध, जिसे पितृ पक्ष के छठे दिन किया जाता है, उन पितरों के लिए विशेष रूप से समर्पित होता है जिनकी मृत्यु शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि (छठे दिन) को हुई थी। इस दिन का उद्देश्य उन पितरों की आत्मा की शांति और संतोष के लिए श्राद्ध कर्म करना होता है, ताकि उनकी आत्मा को मुक्ति मिल सके और परिवार को उनका आशीर्वाद प्राप्त हो।
षष्ठी श्राद्ध का महत्व:
1. पितरों की आत्मा की शांति:
- इस दिन श्राद्ध कर्म और तर्पण के माध्यम से उन पितरों की आत्मा को शांति दी जाती है जिन्होंने षष्ठी तिथि पर देह त्याग किया था।
- यह तिथि पितरों को सम्मान देने और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का एक अवसर होता है।
2. धार्मिक मान्यता:
- षष्ठी श्राद्ध का धार्मिक महत्व यह है कि इसे करने से पितरों की आत्मा तृप्त होती है और परिवार को सुख, समृद्धि और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। पितृ दोष से मुक्ति के लिए भी यह दिन महत्वपूर्ण होता है।
षष्ठी श्राद्ध के अनुष्ठान:
1. श्राद्ध और तर्पण:
- श्राद्ध कर्म के दौरान पितरों के लिए भोजन, जल और वस्त्र अर्पित किए जाते हैं। तर्पण अनुष्ठान में जल में तिल मिलाकर पितरों को अर्पित किया जाता है, जो उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए किया जाता है।
- पिंडदान: चावल, जौ, और तिल के मिश्रण से पिंड (गोल आकार) तैयार करके पितरों को अर्पित किया जाता है। यह अनुष्ठान पितरों की आत्मा को तृप्त करता है।
2. भगवान विष्णु और शिव की पूजा:
- इस दिन भगवान शिव और विष्णु की पूजा की जाती है, क्योंकि उन्हें पितरों की मुक्ति का मार्गदर्शक माना जाता है। भगवान शिव को जल और बेलपत्र चढ़ाया जाता है, और विष्णु जी का विष्णु सहस्रनाम या विष्णु चालीसा का पाठ किया जाता है।
3. पितृ को प्रसन्न करने के मंत्र
- ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥ - ॐ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च
नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:
4. विधि:
- पुजारी या पंडित: पहले से ही एक योग्य पंडित या पुरोहित को बुलाया जाता है जो विधिपूर्वक श्राद्ध कर्म को संपन्न कर सके।
- पूजा सामग्री: इस दिन पूजा के लिए खासतौर पर पंखा, वस्त्र, फल, फूल, दीपक, तिल, चंदन और जल की व्यवस्था की जाती है।
- पितृ तर्पण: पितरों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए तर्पण (जल अर्पण) किया जाता है।
- भोजन: इस दिन विशेष भोग (पाकवान) पितरों को अर्पित किए जाते हैं।
5. ब्राह्मण भोज और दान:
- पितरों की आत्मा की शांति के लिए ब्राह्मणों को सात्विक भोजन कराना और दान देना श्राद्ध का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।
- दान में अन्न, वस्त्र, धन, और जरूरतमंदों को सहायता दी जाती है, जिससे पितरों की आत्मा को संतोष प्राप्त होता है।
6. विशेष नियम:
- तामसिक भोजन जैसे मांस, मछली, अंडे आदि का सेवन इस दिन वर्जित होता है।
- श्राद्ध अनुष्ठान में पूर्ण पवित्रता और श्रद्धा के साथ नियमों का पालन करना आवश्यक होता है।
षष्ठी श्राद्ध उन पितरों के लिए श्रद्धांजलि अर्पित करने का एक महत्वपूर्ण दिन है, जो षष्ठी तिथि पर मृत्यु को प्राप्त हुए थे। इस दिन किए गए श्राद्ध और दान से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है
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