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Sheetala Saptami Vrat 2025 | शीतला सप्तमी व्रत: सुख-समृद्धि और रोगमुक्ति का पर्व | PDF

A beautifully crafted sculpture adorned with intricate floral designs, surrounded by soft candlelight and delicate pink roses.

शीतला सप्तमी व्रत हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे मुख्य रूप से माता शीतला की आराधना के लिए रखा जाता है। यह व्रत विशेष रूप से चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। कुछ स्थानों पर इसे शीतला अष्टमी के रूप में भी मनाया जाता है। यह व्रत माता शीतला के आशीर्वाद से परिवार में स्वास्थ्य, सुख-शांति और समृद्धि बनाए रखने के लिए किया जाता है। विशेषकर, इस व्रत के पालन से संक्रामक रोगों से बचाव होता है। आइए विस्तार से जानते हैं इस व्रत की पूजा विधि, इस दिन किए जाने वाले कार्य, तथा इसके धार्मिक और स्वास्थ्य संबंधी लाभ।

शीतला सप्तमी की तिथि और शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, शीतला सप्तमी व्रत चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को आता है। इस वर्ष, 2025 में यह व्रत 21 मार्च, शुक्रवार को मनाया जाएगा। कुछ स्थानों पर यह अष्टमी तिथि को भी मनाया जाता है, जिसे बसोड़ा पर्व भी कहा जाता है।

शीतला माता कौन हैं?

शीतला माता को हिंदू धर्म में रोगनाशिनी देवी माना जाता है। वे विशेष रूप से चेचक, खसरा, त्वचा रोग और अन्य संक्रामक बीमारियों से रक्षा करने वाली देवी मानी जाती हैं। शीतला माता को ठंडी चीजों का भोग लगाया जाता है, इसलिए इस दिन ताजा भोजन बनाने की मनाही होती है और बासी भोजन का सेवन किया जाता है।

शीतला सप्तमी व्रत की पूजा विधि

1. व्रत का संकल्प लें:

प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और माता शीतला की पूजा का संकल्प लें।

2. पूजन सामग्री एकत्र करें:
3. शीतला माता की स्थापना करें:

पूजा स्थल पर माता शीतला की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें और उन्हें स्वच्छ जल से स्नान कराएं। फिर माता को चंदन, रोली, हल्दी और मेंहदी का तिलक करें।

4. बासी भोजन का भोग लगाएं:

शीतला माता को बासी भोजन का भोग लगाना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसमें दही, बाजरा, गुड़ और मीठे व्यंजन शामिल होते हैं।

5. आटे के दीपक से आरती करें:

माता शीतला की आरती करें और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु प्रार्थना करें।

6. शीतला माता की कथा का पाठ करें:

शीतला माता की कथा पढ़ने और सुनने का विशेष महत्व होता है।

7. परिवारजनों के साथ प्रसाद ग्रहण करें:

पूजा के बाद परिवार के सभी सदस्य बासी भोजन ग्रहण करते हैं।

शीतला सप्तमी पर क्या करें और क्या न करें?

क्या करें:
क्या न करें:

शीतला सप्तमी व्रत का महत्व

1. धार्मिक महत्व:

हिंदू धर्म में शीतला सप्तमी व्रत का बहुत अधिक महत्व है। माता शीतला को प्रसन्न करने से संक्रामक रोगों से मुक्ति मिलती है और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

2. स्वास्थ्य लाभ:

इस व्रत में बासी भोजन ग्रहण किया जाता है, जिससे पाचन तंत्र को आराम मिलता है और शरीर को डिटॉक्स करने का मौका मिलता है।

3. आध्यात्मिक लाभ:

इस दिन शीतला माता की आराधना करने से व्यक्ति के जीवन में मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

4. सामाजिक महत्व:

शीतला सप्तमी पर दान-पुण्य करने से समाज में सहयोग और प्रेम की भावना विकसित होती है।

शीतला माता व्रत कथा

प्राचीन कथा के अनुसार, एक गांव में एक महिला थी जो हर सप्तमी के दिन माता शीतला का व्रत करती थी। वह घर को स्वच्छ रखती और पूरे नियमों का पालन करती थी। एक बार गांव में महामारी फैल गई, लेकिन उस महिला और उसके परिवार को कोई हानि नहीं हुई। यह देखकर गांव के अन्य लोग भी शीतला माता की पूजा करने लगे और सभी रोगों से मुक्त हो गए।

शीतला सप्तमी पर बासी भोजन का महत्व

इस दिन बासी भोजन करने की परंपरा है क्योंकि इसे ठंडा और स्वच्छ माना जाता है। वैज्ञानिक दृष्टि से, यह परंपरा भोजन को बिना किसी हानिकारक जीवाणु के सुरक्षित रखने की सीख देती है।

शीतला सप्तमी व्रत करने से मिलने वाले लाभ

शीतला सप्तमी व्रत हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। यह न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ है, बल्कि स्वास्थ्य और स्वच्छता के प्रति जागरूकता भी बढ़ाता है। माता शीतला की पूजा करने से संक्रामक रोगों से बचाव होता है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। इस व्रत के माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन में अनुशासन, स्वच्छता और सेवा भाव को अपनाता है।

इस वर्ष, आइए हम सभी शीतला माता का व्रत रखकर उनके आशीर्वाद से अपने परिवार की खुशहाली और स्वास्थ्य की रक्षा करें।

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