
भारत में त्योहार और पर्व धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक परंपराओं और सामाजिक एकता के प्रतीक हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण पर्व है स्कंद षष्ठी, जिसे भगवान कार्तिकेय (स्कंद) को समर्पित किया गया है।
2025 में स्कंद षष्ठी 3 फरवरी को मनाई जाएगी। यह पर्व विशेष रूप से दक्षिण भारत में मनाया जाता है और इसका धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व है।
स्कंद षष्ठी की पौराणिक कथा
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, स्कंद षष्ठी का पर्व भगवान स्कंद (कार्तिकेय) द्वारा असुर तारकासुर के वध की स्मृति में मनाया जाता है। तारकासुर ने अपनी तपस्या से ब्रह्माजी से यह वरदान प्राप्त किया था कि केवल शिवजी का पुत्र ही उसे मार सकता है। शिवजी का विवाह माता पार्वती से हुआ और उनके पुत्र कार्तिकेय का जन्म हुआ।
भगवान कार्तिकेय ने छह दिनों तक घोर तपस्या और युद्ध की तैयारी की। स्कंद षष्ठी के दिन उन्होंने तारकासुर का वध किया और धर्म की पुनर्स्थापना की। इस विजय को बुराई पर अच्छाई की जीत और अधर्म पर धर्म की विजय के रूप में देखा जाता है।
स्कंद षष्ठी का महत्व
- धार्मिक महत्व
स्कंद षष्ठी भगवान कार्तिकेय की पूजा का दिन है, जिन्हें शक्ति, पराक्रम और विजय के देवता माना जाता है। उनकी उपासना से जीवन में नकारात्मकता दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। - सांस्कृतिक महत्व
यह पर्व दक्षिण भारत, विशेष रूप से तमिलनाडु, कर्नाटक, और आंध्र प्रदेश में धूमधाम से मनाया जाता है। इसे भक्तों द्वारा विशेष भक्ति और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। - भक्तों के लिए फलदायी
भगवान स्कंद की पूजा करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह पर्व विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है जो शत्रु बाधा, स्वास्थ्य समस्याओं, और मानसिक अशांति से छुटकारा पाना चाहते हैं। - परिवार और समाज में एकता का प्रतीक
स्कंद षष्ठी के आयोजन में पूरे परिवार और समुदाय की भागीदारी होती है, जिससे सामाजिक और पारिवारिक एकता को बल मिलता है।
स्कंद षष्ठी व्रत और पूजा विधि
1. व्रत का पालन
स्कंद षष्ठी के दिन भक्त उपवास रखते हैं। यह व्रत आंतरिक शुद्धि और मानसिक स्थिरता के लिए किया जाता है। भक्त फलाहार या केवल पानी का सेवन करते हैं।
2. पूजा सामग्री
- भगवान कार्तिकेय की मूर्ति या तस्वीर
- दीपक और धूप
- कुमकुम और हल्दी
- फूल (विशेषकर लाल और पीले फूल)
- नैवेद्य (पायसम, पंचामृत, और फल)
- नारियल
3. पूजा की विधि
- सूर्योदय से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- भगवान गणेश की पूजा से शुरुआत करें, क्योंकि हर शुभ कार्य से पहले गणपति वंदना आवश्यक मानी जाती है।
- भगवान कार्तिकेय की मूर्ति या तस्वीर के सामने दीप जलाकर धूप अर्पित करें।
- फूल, नैवेद्य और नारियल चढ़ाएं।
- “कंद शास्ती कवचम” और “सुब्रमण्य भजन” का पाठ करें।
- अंत में आरती करके भगवान से आशीर्वाद प्राप्त करें।
4. हवन का महत्व
कुछ स्थानों पर स्कंद षष्ठी के दिन हवन का आयोजन किया जाता है। हवन में घी, तिल, और अन्य पवित्र सामग्री अर्पित की जाती है, जो नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने और वातावरण को शुद्ध करने में सहायक मानी जाती है।
स्कंद षष्ठी के दौरान उपवास के लाभ
- आध्यात्मिक शुद्धि
उपवास के माध्यम से मनुष्य का मन और आत्मा शुद्ध होती है। यह भगवान के प्रति समर्पण और ध्यान केंद्रित करने का समय है। - स्वास्थ्य लाभ
उपवास शरीर को शुद्ध करने और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्त करने में सहायक होता है। - सामाजिक सहभागिता
सामूहिक रूप से उपवास और पूजा करना सामाजिक एकता और भाईचारे को बढ़ावा देता है।
आधुनिक युग में स्कंद षष्ठी का महत्व
आज के समय में, जब जीवन तनावपूर्ण और जटिल हो गया है, स्कंद षष्ठी जैसे पर्व लोगों को मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करते हैं। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि कठिनाइयों का सामना करने के लिए शक्ति और साहस की आवश्यकता होती है, जो भगवान स्कंद की पूजा से प्राप्त की जा सकती है।
निष्कर्ष
स्कंद षष्ठी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह आत्मा की शुद्धि, सामाजिक एकता, और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है। भगवान स्कंद की पूजा से न केवल आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है, बल्कि यह जीवन की हर समस्या का समाधान भी प्रदान करती है।
2025 में 3 फरवरी को स्कंद षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा करके हम अपने जीवन को शक्ति, शांति और समृद्धि से भर सकते हैं। आइए इस पवित्र पर्व को पूरे उत्साह और भक्ति के साथ मनाएं और भगवान स्कंद के आशीर्वाद से अपने जीवन को बेहतर बनाएं।