Tritiya Shraddha त्रितीया श्राद्ध

त्रितीया श्राद्ध किसके लिए होता है?

  •  त्रितीया श्राद्ध उन पूर्वजों के लिए होता है जिनका निधन चंद्र मास की त्रितीया तिथि को हुआ था। हिंदू धर्म में, प्रत्येक तिथि का एक विशेष महत्व होता है और मृतकों की आत्मा को शांति देने के लिए विभिन्न तिथियों पर श्राद्ध किए जाते हैं। त्रितीया श्राद्ध का उद्देश्य उन पितरों को सम्मान और श्रद्धांजलि अर्पित करना है जिनका निधन इस विशेष तिथि को हुआ था।

त्रितीया श्राद्ध क्यों किया जाता है:

  • पूर्वजों की आत्मा की शांति: त्रितीया श्राद्ध करने का मुख्य उद्देश्य उन पूर्वजों की आत्मा को शांति प्रदान करना है जिनका निधन त्रितीया तिथि को हुआ था। इसे करने से पितरों की आत्मा को तृप्ति मिलती है और उनके आशीर्वाद से परिवार में सुख-शांति का वास होता है।
  • पितरों की संतुष्टि: हिंदू धर्म के अनुसार, पितृ पक्ष के दौरान पितरों की आत्माएं पृथ्वी पर आती हैं और अपने परिवारजनों से तर्पण और श्राद्ध प्राप्त करती हैं। त्रितीया श्राद्ध द्वारा उन पूर्वजों को संतुष्ट किया जाता है, जिनका निधन त्रितीया तिथि को हुआ था, जिससे वे आशीर्वाद प्रदान करते हैं और परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है।
  • श्रद्धा और सम्मान: यह अनुष्ठान पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और सम्मान प्रकट करने का एक तरीका है। पितरों को शुद्ध और सात्विक भोजन, जल, और वस्त्र अर्पित करके उन्हें सम्मानित किया जाता है और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है।

त्रितीया श्राद्ध की प्रक्रिया:

  1. श्राद्ध कर्म: श्राद्ध कर्म में पितरों को श्रद्धा से भोजन, जल और वस्त्र अर्पित किए जाते हैं। भोजन में तिल, चावल, दाल, और घी का प्रयोग किया जाता है।
  2. तर्पण: तर्पण में जल और तिल अर्पित किए जाते हैं। इसे पवित्र नदी या जलाशय में किया जा सकता है, लेकिन घर में भी किया जा सकता है।
  3. पिंडदान: पिंडदान में चावल, जौ, और तिल का मिश्रण बनाकर गोल पिंड तैयार किए जाते हैं, जो पितरों के नाम पर अर्पित किए जाते हैं।
  4. ब्राह्मण भोजन और दान: श्राद्ध के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना और दान देना बहुत शुभ माना जाता है। इसमें सात्विक भोजन कराकर वस्त्र, धन या अन्य आवश्यक वस्तुएँ दान की जाती हैं।

त्रितीया श्राद्ध के दिन श्राद्ध कर्म विशेष मुहूर्त में किया जाता है, और पितरों की शांति के लिए धार्मिक अनुष्ठानों का पालन किया जाता है। इस दिन के महत्व और कुछ विशेष कर्मों के बारे में जानकारी इस प्रकार है:

1. मुहूर्त (Abhijit, Kutup, Rohini Muhurat):

  • अभिजित मुहूर्त: यह दिन का मध्य समय होता है और इसे अत्यंत शुभ माना जाता है। श्राद्ध के लिए इस समय में किया गया कार्य अधिक फलदायी माना जाता है।
  • कुतुप मुहूर्त: यह भी एक विशेष समय होता है, जब सूर्य की किरणें अत्यधिक प्रभावशाली होती हैं। श्राद्ध कर्म के लिए इसे शुभ समय माना गया है।
  • रोहिणी मुहूर्त: यह तिथि और नक्षत्र के आधार पर होता है और पितृ पक्ष के दौरान इस मुहूर्त को भी शुभ माना जाता है। श्राद्ध अनुष्ठान के लिए यह समय उपयुक्त होता है।

इन मुहूर्तों में श्राद्ध कर्म करने से पितरों को शांति मिलती है और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।

2. पितृ के निमित्त लक्ष्मीपति का ध्यान:

  • त्रितीया श्राद्ध के दौरान पितरों की शांति के लिए भगवान लक्ष्मीपति (विष्णु) का ध्यान किया जाता है। भगवान विष्णु को जगत का पालनकर्ता माना गया है, और उनका ध्यान करने से पितरों की आत्मा को मोक्ष और शांति मिलती है।
  • विष्णु के ध्यान से श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को भी आध्यात्मिक लाभ मिलता है और परिवार में सुख-शांति का वातावरण बनता है।

3. गीता के तीसरे अध्याय का पाठ:

  • गीता का तीसरा अध्याय कर्मयोग पर आधारित है, जिसमें श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्म के महत्व का उपदेश दिया है। इस अध्याय का पाठ पितरों की आत्मा की शांति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
  • पितृ पक्ष के दौरान गीता का पाठ करने से यह संदेश मिलता है कि जीवन में कर्म का महत्व है, और पितरों के लिए किए गए कर्म उन्हें शांति और तृप्ति प्रदान करते हैं।
  • श्राद्ध के समय गीता के तीसरे अध्याय का पाठ करके भगवान विष्णु से प्रार्थना की जाती है कि पितरों को उनके कर्मों का फल मिले और वे अगले जन्म में शांति और समृद्धि प्राप्त करें।

पितृ को प्रसन्न करने के मंत्र :

  •  ॐ पितृ देवतायै नम:।
  • ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृो प्रचोदयात्।

त्रितीया श्राद्ध का आध्यात्मिक महत्व:

  1. पूर्वजों की आत्मा की शांति: त्रितीया श्राद्ध उन पूर्वजों के लिए किया जाता है जिनका निधन चंद्र माह की त्रितीया तिथि (तीसरे दिन) को हुआ था। इस दिन किए गए श्राद्ध कर्म उनकी आत्मा को शांति और तृप्ति प्रदान करते हैं, जो उन्हें अगले जन्म में शांति और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करने में सहायक होता है।
  2. आध्यात्मिक संतुलन: पितृ पक्ष के दौरान किए गए श्राद्ध और तर्पण से परिवार में आध्यात्मिक संतुलन और शांति बनी रहती है। त्रितीया श्राद्ध के माध्यम से पितरों की आत्मा को शांति और सम्मान प्रदान किया जाता है, जो परिवार में सकारात्मक ऊर्जा और सुख-समृद्धि को बढ़ाता है।
  3. पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता: इस दिन पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता प्रकट की जाती है। इससे परिवार के सदस्य पूर्वजों के आशीर्वाद और संरक्षण की प्राप्ति की उम्मीद करते हैं, जो जीवन की चुनौतियों का सामना करने में मददगार होता है।
  4. पारंपरिक विधियों का पालन: त्रितीया श्राद्ध के दौरान किए गए धार्मिक अनुष्ठान और विधियाँ पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार होती हैं। इन विधियों के पालन से धार्मिक आस्थाएँ और परंपराएँ जीवित रहती हैं, जो समाज में आध्यात्मिक समृद्धि और सांस्कृतिक मूल्य बनाए रखती हैं।
  5. पितरों के साथ संबंध की मजबूती: त्रितीया श्राद्ध से परिवार के सदस्य अपने पूर्वजों के साथ आध्यात्मिक संबंध को मजबूत करते हैं। इस दिन किए गए अनुष्ठान से परिवार के सदस्य अपने पितरों से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, जो उन्हें जीवन के विभिन्न पहलुओं में मदद करता है।

इन कारणों से त्रितीया श्राद्ध का आध्यात्मिक महत्व अत्यधिक माना जाता है, क्योंकि यह पूर्वजों की आत्मा को शांति प्रदान करता है और परिवार में सुख, शांति और समृद्धि की भावना को बढ़ावा देता है।