भाई दूज, जिसे “भाऊ बीज,” “भ्रातृ द्वितीया,” या “यम द्वितीया” के नाम से भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण भारतीय त्योहार है जो भाई-बहन के स्नेह और समर्पण का प्रतीक है। इसे दीपावली के दो दिन बाद, कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। यह त्योहार विशेष रूप से उत्तर भारत, महाराष्ट्र और गुजरात में मनाया जाता है।
भाई दूज 2025 तिथि
2025 में भाई दूज 23 अक्टूबर, 2025 (बृहस्पतिवार) को मनाया जाएगा।
यह पर्व दिवाली के दो दिन बाद मनाया जाता है और इसे भाई-दूज, भाऊबीज या भातृ द्वितीया भी कहा जाता है।
भाई दूज का पौराणिक महत्व
भाई दूज से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं, जिनमें सबसे प्रचलित कथा यमराज और उनकी बहन यमुनाजी से संबंधित है। मान्यता है कि इस दिन यमराज अपनी बहन यमुनाजी के निवास स्थान पर गए थे। यमुनाजी ने उन्हें प्रेमपूर्वक भोजन कराया और बदले में यमराज ने उनकी रक्षा का आशीर्वाद दिया। तभी से यह परंपरा बन गई कि इस दिन भाई अपनी बहन के घर जाते हैं और आशीर्वाद स्वरूप उनकी रक्षा का वचन देते हैं। इस दिन को “यम द्वितीया” भी कहा जाता है।
भाई दूज मनाने की विधि
भाई दूज के दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक करके और उनके लिए प्रार्थना करके उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं। यहां भाई दूज पूजा की संक्षिप्त विधि दी गई है:
- स्नान और तैयारी: सुबह स्नान के बाद बहनें पूजा की थाली सजाती हैं, जिसमें रोली, चावल, दीपक, मिठाई और नारियल जैसे सामग्री होती है।
- तिलक और आरती: भाई को चौकी पर बिठाकर बहनें उसके माथे पर तिलक लगाती हैं, अक्षत लगाती हैं और उसके बाद आरती उतारती हैं। तिलक लगाने के लिए आमतौर पर रोली या हल्दी का प्रयोग होता है।
- भोजन और मिठाई: तिलक के बाद भाई को मिठाई खिलाई जाती है, और विशेष रूप से बना हुआ भोजन कराया जाता है।
- उपहारों का आदान-प्रदान: भाई अपनी बहन को उपहार देते हैं और बहनें अपने भाई की सुख-समृद्धि और दीर्घायु की कामना करती हैं।
भाई दूज का महत्व
भाई दूज केवल एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा दिन है जो भाई-बहन के रिश्ते को और भी मजबूत बनाता है। बहनें इस दिन अपने भाइयों के लंबे जीवन की कामना करती हैं और भाई भी अपनी बहन की रक्षा का संकल्प लेते हैं।
भाई दूज के अन्य नाम और प्रथाएं
- भाऊ बीज (महाराष्ट्र): महाराष्ट्र में इसे भाऊ बीज के रूप में मनाया जाता है, जिसमें बहनें भाइयों के माथे पर तिलक लगाकर उनकी दीर्घायु की कामना करती हैं।
- भ्रातृ द्वितीया (उत्तर भारत): उत्तर भारत में इस त्योहार को भ्रातृ द्वितीया भी कहते हैं, और यहां भी बहनें भाइयों के लंबे जीवन और समृद्धि की कामना करती हैं।
- यम द्वितीया: इस नाम के अनुसार, यह दिन यमराज को समर्पित है, और इस दिन यमुनाजी की पूजा करने से भाई-बहन के रिश्ते में मधुरता आती है।
भाई दूज और रक्षाबंधन में अंतर
रक्षाबंधन और भाई दूज दोनों ही भाई-बहन के रिश्ते को समर्पित हैं, लेकिन इन दोनों त्योहारों में अंतर है। रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और भाई उनकी रक्षा का संकल्प लेते हैं, जबकि भाई दूज पर तिलक लगाने और आशीर्वाद देने की परंपरा होती है।
भाई दूज पर विशेष अनुष्ठान
कई लोग भाई दूज के दिन यमराज की पूजा भी करते हैं, ताकि उनके परिवार को अकाल मृत्यु से मुक्ति मिल सके और जीवन में समृद्धि आए। इस दिन यमराज को दीप दान करने की भी परंपरा है।
भाई दूज का पर्व भाई-बहन के रिश्ते की मधुरता और उनके बीच के स्नेह को दर्शाता है। यह पर्व हमें भारतीय संस्कृति के उन मूल्यों से परिचित कराता है, जहां रिश्तों का मान और सम्मान सबसे ऊपर रखा जाता है।