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Dwijapriya Sankashti Chaturthi | द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत: क्यों और कैसे करें यह शुभ व्रत? | PDF

A majestic deity seated on a richly decorated throne, adorned with intricate jewelry and surrounded by vibrant golden light.

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, जो भगवान गणेश को समर्पित है। यह व्रत प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है, लेकिन द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी विशेष रूप से माघ मास (जनवरी-फरवरी) में आती है। इस वर्ष, द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी 16 फरवरी 2025 को पड़ रही है।

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का महत्व

‘द्विजप्रिय' का अर्थ है ‘ब्राह्मणों के प्रिय', और भगवान गणेश को यह नाम इसलिए मिला क्योंकि वे ज्ञान, बुद्धि और विद्या के देवता हैं, जो ब्राह्मणों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। संकष्टी चतुर्थी का व्रत भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने के लिए रखा जाता है, जिससे जीवन के सभी संकट और बाधाएं दूर होती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति के सभी कष्ट समाप्त होते हैं और उसे सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि

  1. स्नान और शुद्धिकरण: व्रत के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। घर के पूजा स्थल को साफ करें और गणेश जी की मूर्ति या चित्र को स्थापित करें।
  2. संकल्प: पूजा के प्रारंभ में व्रत का संकल्प लें। हाथ में जल, अक्षत (चावल), फूल और दूर्वा लेकर संकल्प मंत्र बोलें और भगवान गणेश से व्रत को सफलतापूर्वक पूर्ण करने की प्रार्थना करें।
  3. गणेश स्थापना और पूजन: गणेश जी की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं। उन्हें रोली, अक्षत, फूल, दूर्वा, सिंदूर, जनेऊ, वस्त्र आदि अर्पित करें।
  4. मंत्र जाप: गणेश जी के मंत्रों का जाप करें, जैसे “ॐ गं गणपतये नमः”। कम से कम 108 बार इस मंत्र का जाप करें।
  5. व्रत कथा: संकष्टी चतुर्थी की कथा का पाठ या श्रवण करें। यह कथा भगवान गणेश की महिमा और व्रत के महत्व को दर्शाती है।
  6. अर्घ्य प्रदान: चंद्रमा को अर्घ्य देने की परंपरा है। रात में चंद्रमा को जल अर्पित करें और उनसे अपने कष्टों के निवारण की प्रार्थना करें।
  7. भोग और प्रसाद: गणेश जी को मोदक, लड्डू, गुड़, तिल आदि का भोग लगाएं। पूजा के बाद प्रसाद को परिवार के सदस्यों में बांटें।
  8. व्रत का पारण: पूजा और चंद्र दर्शन के बाद व्रत का पारण करें। यदि पूर्ण उपवास नहीं रखा है, तो फलाहार या सात्विक भोजन ग्रहण करें।

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखने के लाभ

सावधानियां

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का व्रत भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने का एक उत्तम माध्यम है। इस व्रत को श्रद्धा और नियमपूर्वक करने से जीवन के सभी संकटों का निवारण होता है और व्यक्ति को सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

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