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Dwitiya Shraddha 2025 | द्वितीया श्राद्ध महत्व, तिथि और सही विधि | PDF

Dwitiya Shradh

द्वितीया श्राद्ध पितृ पक्ष के दौरान मनाया जाने वाला एक विशेष पर्व है। जिसे दूज श्राद्ध भी कहा जाता है, वह विशेष दिन है जब हिंदू पितृ पक्ष के दौरान अपने पूर्वजों की आत्मा को शांति और सम्मान अर्पित करते हैं। हिन्दू कैलेंडर के भाद्रपद माह की पूर्णिमा से शुरू होता है और आश्वयुज मास की अमावस्या तक चलता है।

किन पूर्वजों को समर्पित है यह अनुष्ठान:

द्वितीया श्राद्ध पितृ पक्ष की द्वितीया तिथि को विशेष रूप से उन पूर्वजों के लिए किया जाता है जिनकी पुण्यतिथि इस दिन आती है या जिनके लिए यह विशेष रूप से समर्पित होता है।

साल 2025 में द्वितीया श्राद्ध 9 सितंबर को होगा।

द्वितीया श्राद्ध का महत्व:

द्वितीया श्राद्ध क्यों किया जाता है?

द्वितीया श्राद्ध पितृ पक्ष के दौरान विशेष रूप से किया जाता है, और इसका प्रमुख उद्देश्य पूर्वजों की आत्मा की शांति और सम्मान है। यहाँ इसके मुख्य कारणों को समझाया गया है:

1. पूर्वजों की आत्मा की शांति:
2. परिवारिक समृद्धि:
3. धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:
4. आध्यात्मिक लाभ:
5. परंपराओं का पालन:

द्वितीया श्राद्ध न केवल धार्मिक कर्तव्य है बल्कि यह परिवार के सदस्य को अपने पूर्वजों की याद और सम्मान अर्पित करने का एक अवसर भी प्रदान करता है।

द्वितीया श्राद्ध: कौन-कौन कर सकते है?

द्वितीया श्राद्ध विशेष रूप से उन लोगों को करना होता है जिनके पूर्वजों की मृत्यु द्वितीया तिथि (दूसरे दिन) को हुई होती है। इस दिन श्राद्ध और तर्पण करने से उन पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है। यह श्राद्ध मुख्य रूप से निम्नलिखित व्यक्तियों द्वारा किया जाता है:

पुत्र: अगर पिता या माता की मृत्यु द्वितीया तिथि पर हुई हो, तो पुत्र द्वितीया श्राद्ध करता है।
पौत्र: अगर पुत्र अनुपस्थित हो, तो पौत्र (पुत्र का पुत्र) यह श्राद्ध करता है।
अन्य सदस्य: अगर परिवार में कोई संतान नहीं है, तो अन्य रिश्तेदार (भाई, भतीजे, आदि) द्वितीया श्राद्ध कर सकते हैं।

द्वितीया श्राद्ध पूजा विधि:

  1. स्नान और वस्त्र: द्वितीया श्राद्ध के दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  2. स्थान चयन: पूजा के लिए घर के पवित्र स्थान या एक विशेष स्थल का चयन करें।
  3. पंडित या ब्राह्मण: एक पंडित या धार्मिक व्यक्ति को पूजा के लिए आमंत्रित करें, जो उचित विधि से श्राद्ध की पूजा और अनुष्ठान कर सके।
  4. तर्पण और पिंड दान: पूर्वजों के नाम पर तर्पण, आहुतियाँ और पिंड दान करें। यह पिंड दान विशेष रूप से तिल, जौ, चिउड़े, और अन्य सामग्री से किया जाता है।
  5. भोजन और दान: ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें दान दें। यह दान अनाज, वस्त्र, या पैसे के रूप में किया जा सकता है।

द्वितीया श्राद्ध के अनुष्ठान:

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