गीता, जिसे श्रीमद्भगवद्गीता के नाम से जाना जाता है, महाभारत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह 700 श्लोकों का संग्रह है, जो भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच कुरुक्षेत्र के युद्ध के दौरान संवाद के रूप में प्रस्तुत है। गीता का सार जीवन के हर क्षेत्र में मार्गदर्शन प्रदान करता है। इसे पढ़ना और समझना एक व्यक्ति को अपने जीवन में संतुलन, शांति और ज्ञान प्राप्त करने में मदद करता है।
गीता का महत्व
गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि यह जीवन जीने की कला सिखाने वाला दर्शन है। इसमें कर्म, ज्ञान, भक्ति और ध्यान का समावेश है, जो व्यक्ति को आत्मा, परमात्मा और संसार के संबंध को समझने में मदद करता है।
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उनके कर्तव्यों का बोध कराया और उन्हें मोह तथा भ्रम से मुक्त किया। अर्जुन युद्ध के मैदान में अपने कर्तव्य और धर्म को लेकर द्वंद्व में थे। श्रीकृष्ण ने उन्हें जीवन के सत्य, आत्मा की अमरता, कर्म की महत्ता और भक्ति के महत्व का ज्ञान दिया।
गीता के प्रमुख सिद्धांत
1. कर्म का महत्व
गीता का सबसे बड़ा संदेश है: “कर्म करो, फल की चिंता मत करो।”
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।”
भगवान श्रीकृष्ण ने स्पष्ट किया कि मनुष्य का अधिकार केवल कर्म करने पर है, फल पर नहीं। यदि व्यक्ति फल की चिंता छोड़कर केवल अपने कर्तव्य का पालन करे, तो उसे सफलता और शांति दोनों प्राप्त होते हैं।
2. आत्मा का अमरत्व
गीता के अनुसार आत्मा न जन्म लेती है और न ही मरती है।
“न जायते म्रियते वा कदाचित्।”
यह शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा अजर-अमर है। मृत्यु केवल आत्मा का एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रवेश है। यह ज्ञान मनुष्य को मोह-माया और भय से मुक्त करता है।
3. धर्म और कर्तव्य
गीता में धर्म का अर्थ है अपने कर्तव्यों का पालन करना। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उनके क्षत्रिय धर्म का पालन करने के लिए प्रेरित किया। जीवन में, प्रत्येक व्यक्ति का धर्म उनके कर्तव्यों और दायित्वों से परिभाषित होता है। यदि व्यक्ति अपने धर्म का पालन न करे, तो वह अपने जीवन में असफल होता है।
4. योग का महत्व
गीता में योग को तीन प्रकारों में विभाजित किया गया है:
- कर्म योग: निस्वार्थ भाव से कर्म करना।
- ज्ञान योग: आत्मा और ब्रह्म को जानने का मार्ग।
- भक्ति योग: ईश्वर के प्रति सम्पूर्ण समर्पण।
योग का उद्देश्य आत्मा और परमात्मा के मिलन को प्राप्त करना है।
5. समत्व भाव
गीता का एक और प्रमुख संदेश है “समत्वम् योग उच्यते।”
“सुख-दुःख, लाभ-हानि, जय-पराजय में समान रहो।”
श्रीकृष्ण ने सिखाया कि मनुष्य को जीवन में आने वाले हर अनुभव को समान दृष्टि से देखना चाहिए। यह संतुलन व्यक्ति को शांति और स्थिरता प्रदान करता है।
6. ज्ञान योग (ज्ञान का महत्व)
ज्ञान आत्मा और परमात्मा को जानने का माध्यम है। आत्मज्ञान से ही व्यक्ति अज्ञानता के अंधकार से बाहर निकल सकता है।
7. निष्काम कर्म (निस्वार्थ कर्म)
कर्म करते समय किसी भी प्रकार की स्वार्थ भावना नहीं होनी चाहिए। निस्वार्थ भाव से कर्म करना व्यक्ति को बंधनों से मुक्त करता है।
8. प्रकृति और पुरुष का सिद्धांत
गीता में प्रकृति (भौतिक संसार) और पुरुष (आत्मा) का गहरा विवरण दिया गया है। यह दोनों सृष्टि के मूल आधार हैं, और आत्मा (पुरुष) प्रकृति से परे है।
9. मोह और अज्ञानता से मुक्ति
अज्ञानता और मोह मानव जीवन के सबसे बड़े शत्रु हैं। गीता सिखाती है कि आत्मज्ञान प्राप्त करके व्यक्ति मोह और भ्रम से मुक्त हो सकता है।
10. योग का महत्व (आध्यात्मिक अभ्यास)
योग आत्मा और परमात्मा को जोड़ने का साधन है। गीता में चार प्रमुख योग बताए गए हैं:
- कर्म योग: कर्म में निष्ठा।
- ज्ञान योग: आत्मज्ञान का मार्ग।
- भक्ति योग: भक्ति के माध्यम से ईश्वर तक पहुंच।
- ध्यान योग: ध्यान के माध्यम से आत्म-साक्षात्कार।
गीता से जीवन के 10 प्रेरणादायक श्लोक
- “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।”
जब-जब धर्म की हानि होती है, मैं अवतार लेता हूँ। - “सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।”
सभी धर्मों को छोड़कर मेरी शरण में आओ, मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा। - “न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं न पुनर्भवम्।”
मुझे राज्य, स्वर्ग या पुनर्जन्म की चाह नहीं है, केवल धर्म का पालन ही मेरा लक्ष्य है। - “उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।”
व्यक्ति को स्वयं अपनी मदद करनी चाहिए और स्वयं को नीचे गिरने से बचाना चाहिए। - “युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।”
भोजन, व्यवहार और कर्म में संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।
निष्कर्ष
गीता का सार मानव जीवन को एक नई दिशा और उद्देश्य प्रदान करता है। यह न केवल एक धार्मिक ग्रंथ है, बल्कि एक जीवनदर्शन है जो हमें आत्मा, कर्म और धर्म के महत्व को समझने में मदद करता है।
गीता का अध्ययन और इसके सिद्धांतों को जीवन में अपनाने से व्यक्ति न केवल अपने जीवन को सफल बना सकता है, बल्कि समाज और विश्व में भी शांति और सद्भाव स्थापित कर सकता है। गीता का संदेश शाश्वत और सर्वकालिक है, जो हर युग में मानवता के लिए प्रासंगिक है।
“गीता एक ऐसा दर्पण है, जिसमें मानव जीवन के सभी पहलुओं की झलक देखी जा सकती है।”