श्री हनुमान स्तवन स्तोत्र एक अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली प्रार्थना है जो भगवान हनुमान जी की महिमा का वर्णन करती है। यह स्तोत्र भगवान हनुमान की वीरता, ज्ञान, भक्ति और रामप्रेम को समर्पित है।
जो भक्त नित्य या मंगलवार को श्रद्धा और एकाग्रता से इसका पाठ करता है, उसके जीवन से भय, रोग, संकट और नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है।
यह स्तोत्र मन को शांति, आत्मबल और साहस प्रदान करता है तथा हर कार्य में सफलता दिलाने में सहायक है।
श्री हनुमान स्तवन स्तोत्र
प्रनवउं पवनकुमार खल बन पावक ज्ञानघन।
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर॥
अर्थ:
मैं पवनपुत्र हनुमान जी को नमन करता हूं, जो दुष्टों को अग्नि के समान भस्म करने वाले और अज्ञान रूपी अंधकार का नाश करने वाले हैं। जिनके हृदय में धनुष-बाण धारण करने वाले प्रभु श्रीराम निवास करते हैं।
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं।
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्॥
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं।
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥
अर्थ:
मैं उन पवनपुत्र को नमन करता हूं, जो असीम बल के भंडार हैं, जिनका शरीर स्वर्ण पर्वत के समान तेजस्वी है, जो दानवों को नष्ट करने वाले अग्नि स्वरूप हैं, जो ज्ञानियों में श्रेष्ठ हैं और श्रीराम के परम भक्त हैं।
गोष्पदीकृतवारीशं मशकीकृतराक्षसम्।
रामायणमहामालारत्नं वन्देऽनिलात्मजम्॥
अर्थ:
मैं उन हनुमान जी को वंदन करता हूं, जिन्होंने विशाल समुद्र को गाय के खुर जितना छोटा कर दिया, राक्षसों को तिनके समान नष्ट किया, और जो रामायण नामक महान ग्रंथ के रत्न के समान हैं।
अञ्जनानन्दनं वीरं जानकीशोकनाशनम्।
कपीशमक्षहन्तारं वन्दे लङ्काभयङ्करम्॥
अर्थ:
मैं माता अंजनी के वीर पुत्र, माता सीता के दुखों को दूर करने वाले, वानरों के अधिपति और लंका के भयदायक विजेता हनुमान जी को नमन करता हूं।
उलंघ्यसिन्धों: सलिलं सलीलं य: शोकवह्नींजनकात्मजाया:।
आदाय तेनैव ददाह लङ्कां नमामि तं प्राञ्जलिराञ्जनेयम्॥
अर्थ:
मैं अंजनीनंदन को प्रणाम करता हूं, जिन्होंने सहज ही सागर को पार किया और जनकनंदिनी सीता के शोक को दूर करने के लिए लंका का दहन किया।
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये॥
अर्थ:
मैं श्रीरामदूत हनुमान जी की शरण लेता हूं, जो मन और वायु के समान वेगवान हैं, जिन्होंने अपनी इंद्रियों को वश में किया है, जो बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं और श्रीराम के परम सेवक हैं।
आञ्जनेयमतिपाटलाननं काञ्चनाद्रिकमनीय विग्रहम्।
पारिजाततरूमूल वासिनं भावयामि पवमाननंदनम्॥
अर्थ:
मैं पवननंदन हनुमान जी का ध्यान करता हूं, जिनका मुख लाल कमल के समान है, शरीर स्वर्ण पर्वत जैसा चमकीला है, जो पारिजात वृक्ष के नीचे निवास करते हैं और जो सभी इच्छाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं।
यत्र यत्र रघुनाथकीर्तनं तत्र तत्र कृत मस्तकाञ्जिंलम।
वाष्पवारिपरिपूर्णलोचनं मारुतिं राक्षसान्तकाम्॥
अर्थ:
मैं उन हनुमान जी को नमन करता हूं, जो जहाँ भी श्रीराम का कीर्तन होता है, वहाँ सिर झुकाकर उपस्थित रहते हैं, जिनकी आंखें प्रेम के आँसुओं से भरी होती हैं, और जो राक्षसों का संहार करने वाले हैं।
॥ इति श्री हनुमान स्तवन स्तोत्र ॥
भावार्थ:
भगवान हनुमान जी भगवान शंकर के ग्यारहवें रुद्रावतार हैं। उन्हें अमरत्व का वरदान प्राप्त है।
जो भी व्यक्ति श्रद्धा, भक्ति और विश्वास से हनुमान जी की आराधना करता है, उस पर उनकी कृपा सदा बनी रहती है।
वे अपने भक्तों के जीवन से भय, रोग, शोक और संकट को दूर करते हैं और जीवन में उत्साह, बल और साहस का संचार करते हैं।
हनुमान स्तवन के पाठ के लाभ (दैनिक या मंगलवार को):
- संकटों से मुक्ति:
यह स्तोत्र संकटमोचन हनुमान जी की कृपा से सभी विपत्तियों को दूर करता है। - आत्मिक और शारीरिक शक्ति:
नियमित पाठ से मनोबल बढ़ता है, भय समाप्त होता है और आत्मविश्वास प्रबल होता है। - मन की शांति और एकाग्रता:
यह पाठ मन को स्थिर और शांत बनाता है, जिससे ध्यान और भक्ति गहरी होती है। - रोगों से रक्षा:
मंगलवार को इसका पाठ करने से शारीरिक कष्ट और नकारात्मक ऊर्जाएँ दूर होती हैं। - सफलता और उन्नति:
कार्यों में सफलता, व्यापार में वृद्धि और जीवन में सौभाग्य प्राप्त होता है। - रामभक्ति में दृढ़ता:
इस स्तोत्र से श्रीराम के प्रति भक्ति दृढ़ होती है और जीवन में धर्म व सत्य की भावना प्रबल होती है।
निष्कर्ष:
श्री हनुमान स्तवन स्तोत्र का पाठ न केवल मंगलवार को, बल्कि प्रतिदिन करने से हनुमान जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
यह स्तोत्र हमें भय, असफलता और दुर्बलता से मुक्त कर साहस, विश्वास और ऊर्जा प्रदान करता है।
जो भक्त इसे नित्य स्मरण करता है, उसके जीवन में सदैव “जय बजरंगबली” की गूंज रहती है।