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Narasimha Chaturdashi Vrat | नरसिंह चतुर्दशी व्रत: भय से मुक्ति और भक्तों की रक्षा का पर्व | PDF

नरसिंह चतुर्दशी व्रत भगवान विष्णु के चौथे अवतार भगवान नरसिंह की पूजा के लिए रखा जाता है। यह व्रत वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप में प्रकट होकर भक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी और अत्याचारी राक्षस हिरण्यकश्यप का वध किया था। इस दिन को नरसिंह जयंती भी कहा जाता है।

यह व्रत और पूजा दुष्ट शक्तियों के नाश, भय मुक्ति, रोग से छुटकारा, और धर्म की रक्षा के लिए की जाती है। जो व्यक्ति इस व्रत को श्रद्धा और नियमों से करता है, उसे जीवन में भय, संकट और दु:खों से मुक्ति मिलती है।

भगवान नरसिंह का स्वरूप

भगवान नरसिंह का स्वरूप अर्द्ध-मनुष्य और अर्द्ध-सिंह का है। उनका चेहरा सिंह का और शरीर मनुष्य का है। उन्होंने हिरण्यकश्यप को न तो दिन में मारा, न रात में, न धरती पर, न आकाश में, न अस्त्र से और न शस्त्र से, बल्कि संध्या के समय, दहलीज पर, अपने नाखूनों से, अपनी गोद में रखकर वध किया। यह अवतार अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक है।

नरसिंह चतुर्दशी व्रत की कथा

बहुत समय पहले की बात है। हिरण्यकश्यप नामक एक असुर राजा था जिसे ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त था कि वह न किसी मनुष्य से मरेगा, न जानवर से; न दिन में मरेगा, न रात में; न घर के भीतर, न बाहर; न किसी अस्त्र से, न किसी शस्त्र से।

इस वरदान के कारण वह अहंकारी हो गया और स्वयं को भगवान मानने लगा। उसने अपने राज्य में विष्णु भक्ति पर रोक लगा दी। परंतु उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्त था और उसने अपने पिता की आज्ञा नहीं मानी। हिरण्यकश्यप ने कई बार प्रह्लाद को मारने की कोशिश की लेकिन हर बार भगवान विष्णु ने उसकी रक्षा की।

अंततः एक दिन हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद से पूछा, “क्या तेरा भगवान हर जगह है?” प्रह्लाद ने कहा, “हाँ, वह कण-कण में हैं।” हिरण्यकश्यप ने क्रोध में आकर एक स्तंभ को लात मारी और पूछा, “क्या वह इसमें भी है?”

तभी स्तंभ फटा और भगवान विष्णु नरसिंह रूप में प्रकट हुए। उन्होंने हिरण्यकश्यप को संध्या के समय, दहलीज पर, अपनी गोद में रखकर, नाखूनों से वध कर दिया।

नरसिंह चतुर्दशी व्रत की पूजा विधि

1. व्रत की तैयारी:
2. प्रातः कालीन विधि:
3. भगवान नरसिंह की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें:
4. व्रत संकल्प लें:
5. मंत्र जाप:
6. कथा श्रवण:
7. भोग अर्पण:
8. आरती:

नरसिंह चतुर्दशी के दिन क्या करना चाहिए?

इस दिन क्या नहीं करना चाहिए?

रात्रि पूजन का महत्व

नरसिंह चतुर्दशी का पूजन मुख्यतः रात्रि के समय किया जाता है, क्योंकि भगवान नरसिंह का प्राकट्य संध्या में हुआ था। अतः रात्रि पूजन से विशेष फल मिलता है।

व्रत पारण विधि (अगले दिन)

नरसिंह चतुर्दशी व्रत के लाभ

  1. भय से मुक्ति – जो व्यक्ति हमेशा डरे हुए रहते हैं, उन्हें यह व्रत भयमुक्त करता है।
  2. रोगों से छुटकारा – असाध्य रोगों से मुक्ति पाने के लिए यह व्रत अचूक उपाय है।
  3. दुष्ट शक्तियों का नाश – जीवन में नकारात्मकता, तांत्रिक बाधा, और नजर दोष से रक्षा करता है।
  4. धार्मिक उन्नति – व्रत रखने वाला व्यक्ति धर्म, भक्ति और सत्कर्मों की ओर अग्रसर होता है।
  5. मनोकामना पूर्ति – भक्त यदि सच्चे मन से यह व्रत करें तो उनकी सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं।

नरसिंह चतुर्दशी व्रत न केवल आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करता है, बल्कि यह धर्म और अधर्म के संघर्ष में ईश्वर की न्यायप्रियता का भी प्रतीक है। यह दिन हमें सिखाता है कि सत्य और भक्ति की विजय सदैव होती है, चाहे परिस्थिति कितनी भी विकट क्यों न हो। भगवान नरसिंह की कृपा से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं और भक्त को आत्मिक शांति मिलती है।

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