प्रबोधिनी एकादशी जिसे देव उठनी एकादशी या देव प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व कार्तिक माह (अक्टूबर-नवंबर) के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन चार महीने के चातुर्मास का समापन होता है, जिसके दौरान भगवान विष्णु को योग निद्रा (गहरी निद्रा) में माना जाता है। यह वह दिन है जब भगवान विष्णु के जागने का उत्सव मनाया जाता है, और इसके बाद विवाह जैसे शुभ कार्यों की शुरुआत होती है।
प्रबोधिनी एकादशी का महत्व
- भगवान विष्णु का जागरण: हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी (आषाढ़ माह की एकादशी) के दिन निद्रा में चले जाते हैं और चार महीने बाद प्रबोधिनी एकादशी पर जागते हैं। इस समय को चातुर्मास कहा जाता है, जिसमें विवाह और अन्य मांगलिक कार्यों की मनाही होती है। प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु का जागरण होता है, जिससे एक नई शुरुआत का संकेत मिलता है।
- पूजा और अनुष्ठान: इस दिन भक्तजन सुबह जल्दी उठकर पवित्र स्नान करते हैं, दिन भर का उपवास रखते हैं और भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं। विशेषकर महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में इसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
- तुलसी विवाह: इस एकादशी को तुलसी विवाह का आयोजन भी होता है, जिसमें तुलसी (जिसे माता लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है) का विवाह भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप से किया जाता है। यह प्रतीकात्मक विवाह हिन्दू विवाह उत्सव की शुरुआत का संकेत माना जाता है।
- आध्यात्मिक लाभ: प्रबोधिनी एकादशी के दिन उपवास और पूजा करने से पापों का नाश होता है, मन की शांति मिलती है, और जीवन में सुख-समृद्धि का वरदान मिलता है। इस दिन किए गए पुण्य को तीर्थ यात्रा के बराबर माना जाता है।
प्रबोधिनी एकादशी के अनुष्ठान
- उपवास: भक्तजन इस दिन सूर्योदय से अगले दिन सूर्योदय तक उपवास रखते हैं। उपवास पूर्ण या आंशिक रूप में रखा जा सकता है।
- पूजा और आरती: भगवान विष्णु की विशेष पूजा और आरती की जाती है। इस दौरान फूल, धूप और दीपक का प्रयोग किया जाता है।
- धार्मिक ग्रंथों का पाठ: विष्णु सहस्रनाम, भगवद गीता, और भगवान विष्णु से संबंधित अन्य ग्रंथों का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
- तुलसी विवाह: घरों और मंदिरों में तुलसी विवाह का आयोजन होता है, जो प्रकृति और ईश्वर के बीच के संबंध का प्रतीक है।
प्रबोधिनी एकादशी की पौराणिक कथा
एक कथा के अनुसार, एक राक्षस जिसका नाम संख्यायनासुर था, उसने देवताओं को पराजित कर दिया था और संसार में अराजकता फैला दी थी। देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। भगवान विष्णु ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह राक्षस को पराजित करेंगे, परंतु पहले उन्हें विश्राम की आवश्यकता है। उन्होंने चार महीने की योग निद्रा ली और प्रबोधिनी एकादशी के दिन जागकर उस राक्षस का वध किया और संसार में पुनः शांति स्थापित की। इसीलिए इस दिन का महत्व और भी बढ़ जाता है।
प्रबोधिनी एकादशी का व्रत रखने का महत्व
इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति और भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है। इस दिन उपवास रखने से मोक्ष की प्राप्ति और जीवन में शांति एवं सुख-समृद्धि का लाभ होता है।
सारांश में, प्रबोधिनी एकादशी भगवान विष्णु के जागरण का उत्सव है, जो चातुर्मास की समाप्ति और मांगलिक कार्यों की शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन व्रत, पूजा, और भगवान विष्णु की आराधना से भक्तजन अपने जीवन को शुद्ध करते हैं और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करते हैं।