सनातन धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है। यह सोलह दिन का वह पावन काल है, जब जीवित लोग अपने पितरों को याद कर उनके लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्धकर्म करते हैं। माना जाता है कि इन दिनों में पितृलोक के द्वार खुल जाते हैं और पितरों की आत्माएं अपने वंशजों के घर आती हैं। श्राद्धकर्म द्वारा उन्हें तृप्त करने से वे प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं और परिवार में सुख-समृद्धि का संचार होता है।
इसी क्रम में अष्टमी श्राद्ध का आयोजन किया जाता है, जो उन पितरों को समर्पित है जिनका निधन भाद्रपद या आश्विन मास की अष्टमी तिथि को हुआ था।
अष्टमी श्राद्ध क्या है?
अष्टमी श्राद्ध, पितृपक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाने वाला श्राद्धकर्म है। यह विशेष रूप से उन पितरों के लिए होता है जिनका देहांत चंद्र मास की अष्टमी तिथि को हुआ हो।
धार्मिक मान्यता है कि इस दिन किया गया तर्पण और पिंडदान पितरों को सीधे प्राप्त होता है और उनकी आत्मा को शांति मिलती है। साथ ही वे अपने वंशजों को दीर्घायु, समृद्धि और संतति का आशीर्वाद देते हैं।
अष्टमी श्राद्ध क्यों मनाया जाता है?
- पितरों की तृप्ति हेतु – माना जाता है कि बिना श्राद्ध के पितरों की आत्मा असंतुष्ट रहती है। श्राद्ध से उन्हें संतोष मिलता है।
- कुल की उन्नति के लिए – पितर प्रसन्न होते हैं तो परिवार में सुख-शांति और धन-धान्य की वृद्धि होती है।
- ऋण मुक्ति के लिए – शास्त्रों में पितृऋण को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया गया है। श्राद्धकर्म से इस ऋण की पूर्ति होती है।
- आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए – पितरों के आशीर्वाद से परिवार में संतान सुख, उत्तम स्वास्थ्य और सफलता प्राप्त होती है।
अष्टमी श्राद्ध 2025 कब है?
पंचांग के अनुसार,
अष्टमी श्राद्ध 2025 का आयोजन –
14 सितंबर 2025, रविवार को किया जाएगा।
अष्टमी तिथि प्रारंभ: 13 सितंबर 2025, रात 09:15 बजे
अष्टमी तिथि समाप्त: 14 सितंबर 2025, शाम 06:47 बजे
इसलिए 14 सितंबर 2025 (रविवार) को अष्टमी श्राद्ध करना श्रेष्ठ रहेगा।
अष्टमी श्राद्ध की विधि
अष्टमी श्राद्ध करते समय निम्नलिखित चरणों का पालन किया जाता है –
1. स्नान एवं संकल्प
सुबह स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें और दक्षिणमुखी होकर कुशासन पर बैठें। फिर पितरों का स्मरण करते हुए संकल्प लें।
2. पितरों का आह्वान
तिल, जल और कुश लेकर पितरों को आह्वान करें और उन्हें तर्पण अर्पित करें।
3. पिंडदान
चावल, जौ, तिल, घी और शहद से बने पिंड को पितरों के नाम से अर्पित करें। यह प्रक्रिया श्राद्धकर्म का मुख्य भाग है।
4. ब्राह्मण भोजन
इस दिन ब्राह्मण को भोजन कराना और दक्षिणा देना अत्यंत आवश्यक है। इसे पितरों तक अर्पण माना जाता है।
5. गौ, कुत्ते और कौवे को भोजन
पितृपक्ष में कुत्ते, गाय और कौवे को भोजन कराना विशेष महत्व रखता है। इसे पितरों का प्रतीक माना जाता है।
अष्टमी श्राद्ध में क्या करना चाहिए?
- तर्पण, पिंडदान और ब्राह्मण भोजन अवश्य करें।
- काले तिल और जल से तर्पण करें।
- अपने घर या किसी तीर्थ स्थान (गया, हरिद्वार, प्रयागराज आदि) में श्राद्धकर्म करना श्रेष्ठ है।
- गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र और दान दें।
- पितरों के नाम पर दीपदान करें।
- घर में गीता, गरुड़ पुराण या विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
अष्टमी श्राद्ध में क्या नहीं करना चाहिए?
- इस दिन मांस, मदिरा या तामसिक भोजन से परहेज करें।
- बाल कटवाना, नाखून काटना और दाढ़ी बनवाना वर्जित है।
- झगड़ा, अपशब्द और कठोर वाणी का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- अनावश्यक खर्च और दिखावा करने से बचना चाहिए।
- भोजन व्यर्थ नहीं फेंकना चाहिए।
अष्टमी श्राद्ध का महत्व शास्त्रों में
- गरुड़ पुराण के अनुसार, श्राद्धकर्म करने वाला व्यक्ति पितृऋण से मुक्त होकर पुण्यफल प्राप्त करता है।
- मनुस्मृति में कहा गया है कि पितरों को तृप्त किए बिना देवताओं की पूजा भी निष्फल होती है।
- महाभारत में युधिष्ठिर ने भी भीष्म पितामह से पितृपक्ष श्राद्ध का महत्व पूछा था, जिसमें बताया गया कि यह कुल और वंश की उन्नति का कारण है।
अष्टमी श्राद्ध से मिलने वाले लाभ
- पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष प्राप्त होता है।
- परिवार में सुख-समृद्धि और मानसिक शांति आती है।
- संतानहीन दंपति को संतान सुख प्राप्त हो सकता है।
- परिवार में बीमारियों और क्लेश का निवारण होता है।
- पितरों का आशीर्वाद जीवन में सफलता और प्रगति दिलाता है।
अष्टमी श्राद्ध पर विशेष भोजन
- खीर
- पूरी
- कद्दू की सब्जी
- उड़द की दाल
- मूंगफली या तिल से बने व्यंजन
इन व्यंजनों को सात्विक रूप से बनाकर ब्राह्मण, गाय, कौवा और कुत्ते को अर्पित किया जाता है।
अष्टमी श्राद्ध केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का माध्यम है। पितरों की आत्मा को शांति देकर हम अपने वंश और परिवार को सुख-समृद्धि से भर सकते हैं।
14 सितंबर 2025, रविवार को होने वाला यह श्राद्धकर्म हर उस व्यक्ति को करना चाहिए जिनके पितरों का निधन अष्टमी तिथि को हुआ था। सही विधि से श्राद्ध करने पर पितर प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं और जीवन में हर बाधा दूर होती है।