तृतीया श्राद्ध उन पूर्वजों के लिए होता है जिनका निधन चंद्र मास की तृतीया तिथि को हुआ था। हिंदू धर्म में, प्रत्येक तिथि का एक विशेष महत्व होता है और मृतकों की आत्मा को शांति देने के लिए विभिन्न तिथियों पर श्राद्ध किए जाते हैं। तृतीया श्राद्ध का उद्देश्य उन पितरों को सम्मान और श्रद्धांजलि अर्पित करना है जिनका निधन इस विशेष तिथि को हुआ था।
तृतीया श्राद्ध कब है?
2025 में तृतीया श्राद्ध बुधवार, 10 सितंबर को है
पंचांग के अनुसार, यह तिथि 9 सितंबर की शाम 6:28 बजे से शुरू होकर 10 सितंबर दोपहर 3:37 बजे तक रहेगी
तृतीया श्राद्ध क्यों किया जाता है:
- पूर्वजों की आत्मा की शांति: तृतीया श्राद्ध करने का मुख्य उद्देश्य उन पूर्वजों की आत्मा को शांति प्रदान करना है जिनका निधन तृतीया तिथि को हुआ था। इसे करने से पितरों की आत्मा को तृप्ति मिलती है और उनके आशीर्वाद से परिवार में सुख-शांति का वास होता है।
- पितरों की संतुष्टि: हिंदू धर्म के अनुसार, पितृ पक्ष के दौरान पितरों की आत्माएं पृथ्वी पर आती हैं और अपने परिवारजनों से तर्पण और श्राद्ध प्राप्त करती हैं। तृतीया श्राद्ध द्वारा उन पूर्वजों को संतुष्ट किया जाता है, जिनका निधन तृतीया तिथि को हुआ था, जिससे वे आशीर्वाद प्रदान करते हैं और परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है।
- श्रद्धा और सम्मान: यह अनुष्ठान पूर्वजों के प्रति श्रद्धा और सम्मान प्रकट करने का एक तरीका है। पितरों को शुद्ध और सात्विक भोजन, जल, और वस्त्र अर्पित करके उन्हें सम्मानित किया जाता है और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है।
तृतीया श्राद्ध की प्रक्रिया:
- श्राद्ध कर्म: पितरों को श्रद्धा से भोजन, जल और वस्त्र अर्पित किए जाते हैं। भोजन में तिल, चावल, दाल, और घी का प्रयोग किया जाता है।
- तर्पण: जल और तिल अर्पित किए जाते हैं। इसे पवित्र नदी या जलाशय में किया जा सकता है, लेकिन घर में भी किया जा सकता है।
- पिंडदान: चावल, जौ, और तिल का मिश्रण बनाकर गोल पिंड तैयार किए जाते हैं, जो पितरों के नाम पर अर्पित किए जाते हैं।
- ब्राह्मण भोजन और दान: ब्राह्मणों को सात्विक भोजन कराना और वस्त्र, धन या अन्य आवश्यक वस्तुएँ दान करना शुभ माना जाता है।
तृतीया श्राद्ध के दिन विशेष महत्व:
- मुहूर्त (अभिजित, कुतुप, रोहिणी मुहूर्त):
- अभिजित मुहूर्त – दिन का मध्य समय, श्राद्ध के लिए अत्यंत शुभ।
- कुतुप मुहूर्त – सूर्य की विशेष स्थिति का समय, श्राद्ध कर्म के लिए उत्तम।
- रोहिणी मुहूर्त – तिथि व नक्षत्र के आधार पर शुभ माना गया।
- पितृ के निमित्त लक्ष्मीपति का ध्यान:
तृतीया श्राद्ध के दौरान भगवान विष्णु (लक्ष्मीपति) का ध्यान करने से पितरों को मोक्ष और शांति प्राप्त होती है। - गीता के तीसरे अध्याय का पाठ:
कर्मयोग पर आधारित तीसरे अध्याय का पाठ पितरों की आत्मा की शांति के लिए महत्वपूर्ण है। इससे श्राद्ध करने वाले को भी आध्यात्मिक लाभ होता है।
पितृ को प्रसन्न करने के मंत्र :
- ॐ पितृ देवतायै नमः।
- ॐ पितृगणाय विद्महे जगत धारिणी धीमहि तन्नो पितृः प्रचोदयात्।
तृतीया श्राद्ध का आध्यात्मिक महत्व:
- पूर्वजों की आत्मा की शांति और तृप्ति।
- परिवार में आध्यात्मिक संतुलन और सकारात्मक ऊर्जा।
- पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और श्रद्धा।
- परंपराओं का संरक्षण और धार्मिक मान्यताओं का पालन।
- पितरों से आशीर्वाद प्राप्त कर परिवार के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि।