Maa Skandmata Vrat Katha
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सती द्वारा स्वयं को यज्ञ में भस्म करने के बाद भगवान शिव सांसारिक संसार से अलग होकर कठिन तपस्या में लीन हो गए. उसी समय देवतागण ताड़कासुर नमक असुर के अत्याचारों से कष्ट भोग रहे थे , ताड़कासुर को यह वरदान था कि वह केवल शिवपुत्र के हाथों ही मारा जा सकता था। कथा के अनुसार ताड़कासुर ने एक बार घोर तपस्या से ब्रह्मा को प्रसन्न किया। उसने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा। किंतु ब्रह्मा जी ने कहा कि इस पृथ्वी पर जिसका भी जन्म हुआ है उसका मरना तय है। इस पृथ्वी पर कोई भी जीव अमर नहीं है। तब उसने ब्रह्मा जी से वरदान माँगा की इस धरती पर कोई भी उसे मार नहीं सकता केवल शिव की संतान ही उसका वध करेगी। तारकासुर का मानना था कि सती के भस्म होने के बाद भोलेनाथ कभी शादी नहीं करेंगे और उनका कोई पुत्र नहीं होगा।
सभी देवताओं की ओर से महर्षि नारद पार्वती जी के पास जाते हैं और उनसे तपस्या करके भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए आग्रह करते है. हजारों सालों की तपस्या के बाद भगवान शिव माता पार्वती से विवाह करते हैं. भगवान शिव और पार्वती की उर्जा मिलकर एक अत्यंत ज्वलनशील बीज को पैदा करते हैं और भगवान कार्तिकेय का जन्म होता है. वह बड़े होकर सुन्दर बुद्धिमान और शक्तिशाली कुमार बने.
ब्रह्मा जी से शिक्षा प्राप्त करने के बाद देवताओं के सेनापति के रूप में सभी देवताओं ने उन्हें आशीर्वाद प्रदान किया और ताड़कासुर के खिलाफ युद्ध के लिए विशेष हथयार प्रदान किये, देवी स्कंदमाता ने ही कार्तिकेय को युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया। भगवान कार्तिकेय ने एक भयंकर युद्ध में ताद्कसुर को मार डाला. इसप्रकार माँ स्कंदमाता को स्कन्द कुमार यानि कार्तिकेय की माता के रूप में पूजा जाता है. स्कंदमाता की पूजा करने से भगवान कार्तिकेय की पूजा अपने आप ही हो जाती है क्युकी वे अपनी माता की गोद में विराजे हैं.