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Mahesh Navami | क्यों मनाई जाती है महेश नवमी? जानिए इस दिन का धार्मिक महत्व | PDF

महेश नवमी हिंदू धर्म में एक अत्यंत पावन और पुण्यदायी तिथि है, जो विशेष रूप से भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित होती है। यह पर्व ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान महेश (शिव) की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। ‘महेश' का अर्थ होता है ‘महान ईश्वर' अर्थात भगवान शिव, और ‘नवमी' का तात्पर्य है चंद्र मास की नवमी तिथि। यह पर्व धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, विशेषकर नवमी तिथि को जन्म लेने वाले महेश्वरी समाज के लिए।

महेश नवमी का महत्व

महेश नवमी का विशेष महत्व इस बात में निहित है कि यह दिन भगवान शिव के संरक्षण और आशीर्वाद को प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है। यह तिथि भगवान शिव और माता पार्वती के आशीर्वाद से महेश्वरी समाज की उत्पत्ति की स्मृति में मनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से राक्षसों का नाश कर पृथ्वी पर धर्म की पुनः स्थापना की थी।

यह दिन भक्तों के लिए मोक्षदायक और कल्याणकारी माना जाता है। इस दिन भगवान शिव का पूजन करने से सभी पापों का क्षय होता है और जीवन में सुख, समृद्धि एवं शांति आती है। विशेष रूप से दंपति इस दिन संतान सुख की प्राप्ति, दांपत्य जीवन में प्रेम और स्थायित्व के लिए भगवान महेश और देवी पार्वती की पूजा करते हैं।

महेश नवमी क्यों मनाई जाती है?

पौराणिक कथा के अनुसार

प्राचीन काल में एक समय पृथ्वी पर धर्म का पतन हो गया था। राक्षसों के अत्याचार से देवता और ऋषि-मुनि अत्यंत पीड़ित थे। तब उन्होंने भगवान शिव से सहायता की प्रार्थना की। भगवान शिव ने नवमी तिथि को उन राक्षसों का संहार किया और धर्म की पुनः स्थापना की। इसी तिथि पर महेश्वरी समाज की उत्पत्ति भी हुई थी, जो धर्म, सेवा और संस्कारों के लिए समर्पित होता है।

महेश्वरी समाज का उद्भव

कहा जाता है कि एक समय राजा क्षत्रियकुल में एक धर्मनिष्ठ राजा था जिसके वंश में कई रत्न हुए। उन क्षत्रियों में से कुछ ने संन्यास लेकर भगवान शिव की आराधना की और वैश्य धर्म को अपनाया। तब भगवान शिव ने उन्हें आशीर्वाद देकर ‘महेश्वरी' नाम प्रदान किया। यही कारण है कि महेश्वरी समाज के लिए यह पर्व एक प्रकार का स्थापना दिवस होता है। वे इस दिन विशेष उत्साह और श्रद्धा से भगवान शिव की पूजा करते हैं।

महेश नवमी पर क्या-क्या किया जाता है?

1. व्रत और उपवास

महेश नवमी के दिन व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन व्रती प्रातः काल स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करते हैं और भगवान शिव-पार्वती की पूजा करने का संकल्प लेते हैं। व्रतधारी दिनभर उपवास रखते हैं और फलाहार करते हैं। कुछ लोग केवल जल ग्रहण करते हैं जबकि कुछ फलाहार कर व्रत का पालन करते हैं।

2. पूजन विधि

पूजन के लिए आवश्यक सामग्री:

पूजा की विधि:

3. शिव मंदिर में दर्शन

भक्त इस दिन शिव मंदिरों में जाकर भगवान शिव और माता पार्वती के दर्शन करते हैं। विशेष रूप से महेश्वरी समाज के लोग सामूहिक रूप से मंदिरों में इकट्ठे होकर पूजा, भजन और आरती करते हैं।

4. धार्मिक कार्यक्रम व सेवा कार्य

कई स्थानों पर इस दिन महेश्वरी समाज की ओर से शोभा यात्राएं, धार्मिक प्रवचन, भजन संध्या, हवन और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। सेवा कार्य जैसे अन्नदान, वस्त्रदान, रक्तदान और गरीबों को भोजन वितरण का आयोजन भी इस दिन किया जाता है।

महेश नवमी व्रत के लाभ

  1. धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति – यह व्रत चारों पुरुषार्थों को प्रदान करता है।
  2. कष्टों से मुक्ति – जीवन में चल रही परेशानियों, रोगों और बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
  3. वैवाहिक जीवन में सुख और स्थायित्व – विवाहित स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र और सुखद दांपत्य जीवन के लिए व्रत करती हैं।
  4. संतान सुख की प्राप्ति – संतान की प्राप्ति के लिए यह व्रत विशेष फलदायी माना गया है।
  5. आध्यात्मिक शुद्धि – शिव उपासना से मन, शरीर और आत्मा की शुद्धि होती है।

महेश नवमी से जुड़ी विशेष बातें

महेश नवमी पर शिव स्तुति और मंत्र

1. शिव पंचाक्षरी मंत्र

“ॐ नमः शिवाय”
इस मंत्र का 108 बार जाप अत्यंत फलदायी होता है।

2. महामृत्युंजय मंत्र

“ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥”
इस मंत्र का जाप रोग, शोक और मृत्यु के भय से मुक्ति दिलाता है।

3. शिव चालीसा और आरती

महेश नवमी के दिन शिव चालीसा का पाठ और “ॐ जय शिव ओंकारा” आरती का गान अत्यंत शुभ माना जाता है।

महेश नवमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह एक आध्यात्मिक यात्रा है जो व्यक्ति को ईश्वर के समीप लाती है। यह दिन भगवान शिव की उपासना द्वारा जीवन के सभी दुखों और समस्याओं से मुक्ति दिलाने वाला होता है। विशेष रूप से महेश्वरी समाज के लिए यह दिन एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। इस दिन को श्रद्धा, भक्ति और सेवा के साथ मनाना जीवन को आध्यात्मिक रूप से समृद्ध करता है।

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