सनातन धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व होता है। वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, जिनमें से प्रत्येक का अपना धार्मिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व है। इन्हीं में से एक है मोहीनी एकादशी, जिसे वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। यह व्रत विष्णु भक्तों के लिए अत्यंत पुण्यदायक और मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया था और इसी कारण इस एकादशी को मोहीनी एकादशी कहा गया है।
मोहीनी एकादशी का महत्व
- पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के समय जब असुर अमृत छीनना चाह रहे थे, तब भगवान विष्णु ने एक सुंदर स्त्री का रूप धारण किया जिसे ‘मोहीनी’ कहा गया। इस रूप में उन्होंने अमृत को देवताओं को वितरित किया और असुरों को छला।
- यह व्रत बुरे कर्मों से मुक्ति दिलाता है और आत्मा को शुद्ध करता है।
- मोहीनी एकादशी के व्रत से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है और विष्णु लोक की प्राप्ति होती है।
मोहीनी एकादशी व्रत की विधि
1. व्रत की तैयारी (दशमी तिथि की शाम से)
- व्रत करने वाले व्यक्ति को एक दिन पहले यानी दशमी तिथि की शाम को सात्विक भोजन करना चाहिए।
- शाम के बाद तामसिक भोजन (लहसुन, प्याज, मांस, मदिरा) और अनाज का सेवन नहीं करना चाहिए।
- मानसिक और शारीरिक शुद्धता बनाए रखें।
2. एकादशी तिथि पर क्या करें
- सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें। गंगाजल मिलाकर स्नान करना श्रेष्ठ माना जाता है।
- भगवान विष्णु का पीले वस्त्रों से श्रृंगार करें और तुलसी दल अर्पित करें।
- व्रत का संकल्प लें – “मैं मोहीनी एकादशी का व्रत भगवान विष्णु के लिए कर रहा/रही हूँ, कृपा कर मुझे पवित्र करें।
- व्रतकर्ता दिनभर उपवास करे – यदि पूरी तरह उपवास संभव न हो तो फलाहार ले सकते हैं।
3. पूजन विधि
- भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र पर फूल, धूप, दीप, चंदन, अक्षत, तुलसी और नैवेद्य अर्पित करें।
- विष्णु सहस्त्रनाम या विष्णु चालीसा का पाठ करें।
- “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।
4. रात्रि जागरण
- व्रत की रात को भगवान विष्णु का कीर्तन करें, भजन गाएं और शास्त्रों का पाठ करें।
- रात्रि में जागरण करना अति पुण्यदायक माना गया है।
5. पारण (व्रत खोलना)
- द्वादशी तिथि को सूर्योदय के बाद ब्राह्मण या गरीब को भोजन कराएं, वस्त्र दान करें।
- फिर स्वयं सात्विक भोजन करके व्रत पूर्ण करें।
एकादशी को क्या खाएं और क्या नहीं
क्या खाएं
- फल (केला, सेब, पपीता आदि)
- दूध और दूध से बने पदार्थ (दही, मखाना)
- साबूदाना, सिंघाड़े का आटा, राजगिरा आटा
- आलू, शकरकंद, मूँगफली
- सादा सेंधा नमक
क्या न खाएं
- अनाज (गेहूं, चावल, दाल आदि)
- मांसाहार, लहसुन, प्याज
- तली-भुनी वस्तुएं, मैदा, बेकरी प्रोडक्ट्स
- शराब, सिगरेट, तंबाकू इत्यादि
मोहीनी एकादशी व्रत कथा
प्राचीन काल में चंद्रवती नामक नगर में धृतिमान नामक एक राजा राज्य करता था। वह अत्यंत धार्मिक और प्रजा पालक था। एक दिन उसने मुनियों से एकादशी व्रत के विषय में पूछा। तब वशिष्ठ मुनि ने बताया कि वैशाख शुक्ल एकादशी को मोहीनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु मोहिनी रूप में प्रकट हुए थे और असुरों को मोह में डालकर देवताओं को अमृत प्रदान किया था।
इस व्रत को करने से समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं, पूर्वजों को मोक्ष मिलता है और जीवन में सुख-शांति आती है।
मोहीनी एकादशी के लाभ
- पापों से मुक्ति: इस व्रत से पूर्व जन्मों के पाप भी नष्ट हो जाते हैं।
- मोक्ष की प्राप्ति: आत्मा को शुद्ध करके मोक्ष मार्ग प्रशस्त होता है।
- मन और शरीर की शुद्धता: उपवास से शारीरिक विषैले तत्व बाहर निकलते हैं।
- मानसिक शांति और सकारात्मकता: पूजा-पाठ और व्रत से मन शांत और आत्मिक आनंद से भर जाता है।
- परिवार में सुख-शांति: मोहीनी एकादशी का व्रत परिवार में समृद्धि और शांति लाता है।
- दांपत्य जीवन में मधुरता: दंपत्ति यदि इस व्रत को साथ में करें, तो रिश्ते मधुर होते हैं।
- आध्यात्मिक उन्नति: नियमित व्रत करने से ईश्वर से संबंध प्रगाढ़ होता है।
मोहीनी एकादशी व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह जीवन में संयम, शुद्धता और आध्यात्मिक उन्नति का माध्यम भी है। भगवान विष्णु के इस व्रत को श्रद्धा और नियमपूर्वक करने से भक्त को चिरस्थायी सुख, शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
हर व्यक्ति को, विशेषकर जो जीवन में आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ना चाहता है, उसे इस पशी व्रत को अवश्य करना चाहिए।