सनातन धर्म में पितृपक्ष का अत्यंत पावन और आध्यात्मिक महत्व है। इस पखवाड़े में पितरों को तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध अर्पित किए जाते हैं ताकि उनकी आत्मा को शांति प्राप्त हो और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करें। पितृपक्ष के प्रत्येक दिन का एक विशेष महत्व होता है और यह अलग-अलग तिथियों को दिवंगत हुए पितरों को समर्पित होता है। इन्हीं में से एक दिन है सप्तमी श्राद्ध।
सप्तमी तिथि को जिन पितरों का देहांत हुआ हो, उनके लिए यह श्राद्ध विशेष रूप से किया जाता है। इसे न केवल पितृमोक्ष के लिए, बल्कि परिवार की सुख-समृद्धि और आध्यात्मिक उत्थान के लिए भी महत्वपूर्ण माना गया है।
सप्तमी श्राद्ध क्या है?
सप्तमी श्राद्ध पितृपक्ष के सातवें दिन किया जाने वाला श्राद्ध है। यह श्राद्ध उन पितरों के लिए किया जाता है जिनका निधन चंद्र मास की सप्तमी तिथि को हुआ हो।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जिस तिथि को किसी व्यक्ति का देहांत होता है, उसी तिथि को पितृपक्ष में श्राद्ध करने से उन्हें तृप्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। सप्तमी श्राद्ध का उद्देश्य दिवंगत आत्माओं के प्रति सम्मान, कृतज्ञता और प्रेम व्यक्त करना है।
सप्तमी श्राद्ध क्यों मनाया जाता है?
सप्तमी श्राद्ध मनाने के पीछे कई धार्मिक और आध्यात्मिक कारण हैं:
- पितृ तृप्ति के लिए – पितरों को तर्पण और पिंडदान से जल, अन्न और तिल अर्पित किए जाते हैं, जिससे उनकी आत्मा संतुष्ट होती है।
- कुल परंपरा की रक्षा – श्राद्ध करना कुल धर्म का पालन है। जो संतान अपने पितरों का श्राद्ध करती है, उनके कुल में सुख-शांति बनी रहती है।
- पितृऋण से मुक्ति – मनुष्य अपने पितरों का ऋणी होता है। श्राद्ध के द्वारा इस पितृऋण की आंशिक पूर्ति की जाती है।
- पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए – मान्यता है कि तृप्त पितर वंशजों को स्वास्थ्य, धन, बुद्धि और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
- धार्मिक परंपरा – यह कर्मकांड मात्र परंपरा नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक साधना है। यह आत्मीय संबंधों की निरंतरता का प्रतीक है।
सप्तमी श्राद्ध पर किन लोगों का श्राद्ध किया जाता है?
इस दिन विशेष रूप से उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है:
- जिनका निधन चंद्र मास की सप्तमी तिथि को हुआ हो।
- जिनकी मृत्यु आकस्मिक दुर्घटना या असामान्य परिस्थिति में हुई हो।
- जिनकी मृत्यु के बाद परिजन उनके श्राद्ध कर्म विधिपूर्वक न कर पाए हों।
- जिनका निधन कम आयु में हुआ हो।
इसके अलावा, कई परिवार इस दिन अपने सभी दिवंगत पितरों का सामूहिक श्राद्ध भी करते हैं।
सप्तमी श्राद्ध 2025 में कब है?
हिंदू पंचांग के अनुसार, पितृपक्ष 2025 का आरंभ 7 सितंबर 2025, रविवार (पूर्णिमा श्राद्ध) से होगा और इसका समापन 21 सितंबर 2025, रविवार (अमावस्या श्राद्ध/सर्वपितृ अमावस्या) को होगा।
सप्तमी श्राद्ध 2025 की तिथि:
13 सितंबर 2025, शनिवार
इस दिन योग्य ब्राह्मणों को भोजन कराना, दान करना और तर्पण करना अत्यंत पुण्यकारी माना गया है।
सप्तमी श्राद्ध की विधि
सप्तमी श्राद्ध में परंपरागत विधि का पालन करना आवश्यक है। विधि इस प्रकार है:
1. प्रातः तैयारी
- स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- श्राद्ध स्थान को स्वच्छ करके कुशा, जल और तिल से पवित्र करें।
- पितरों की तस्वीर अथवा प्रतीक स्थान पर स्थापित करें।
2. संकल्प
- कुशा हाथ में लेकर श्राद्ध का संकल्प करें।
- दिवंगत पितरों का नाम, गोत्र और तिथि का उल्लेख करें।
3. तर्पण
- जल, तिल और कुशा से तर्पण करें।
- तर्पण करते समय पितरों का स्मरण करें।
4. पिंडदान
- आटे, चावल या जौ के पिंड बनाकर पितरों को अर्पित करें।
- पिंडदान से आत्मा को मोक्ष मार्ग में सहायता मिलती है।
5. ब्राह्मण भोजन और दान
- ब्राह्मणों को भोजन कराना और वस्त्र, अन्न, दक्षिणा का दान करना चाहिए।
- यह सबसे महत्वपूर्ण अंग माना गया है।
6. परिवारजन का भोजन
- अंत में घर के सदस्यों को सात्विक भोजन कराया जाता है।
- मांस, मदिरा, प्याज-लहसुन का पूर्णतः परहेज किया जाता है।
सप्तमी श्राद्ध का धार्मिक महत्व
- पितृलोक की कृपा: इस दिन किया गया श्राद्ध सीधे पितृलोक तक पहुंचता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: श्राद्ध से आत्मा की उन्नति होती है और उसे मुक्ति का मार्ग मिलता है।
- कुल रक्षा: पितरों की कृपा से कुल में संतति वृद्धि, आयु वृद्धि और समृद्धि होती है।
- अदृश्य संबंध: यह कर्मकांड जीवित और मृत आत्माओं के बीच अदृश्य सेतु का निर्माण करता है।
सप्तमी श्राद्ध से जुड़ी मान्यताएँ और कथाएँ
- गरुड़ पुराण और ब्रह्म पुराण में श्राद्ध का विस्तार से वर्णन है।
- मान्यता है कि जो संतान अपने पितरों का श्राद्ध नहीं करती, उनके जीवन में बाधाएँ और कष्ट बढ़ते हैं।
- पितृपक्ष में किया गया श्राद्ध पितरों को देवतुल्य तृप्ति प्रदान करता है।
- कहा गया है –
“श्राद्धं कुर्वन्ति ये नित्यं श्रद्दया पितृवत्तया।
न तेषां क्षीयते सौख्यं न च धर्मोऽपि हीयते॥”
अर्थात जो श्राद्ध श्रद्धा से करते हैं, उनका सुख और धर्म कभी क्षीण नहीं होता।
सप्तमी श्राद्ध में क्या करें और क्या न करें
क्या करें
- ब्राह्मणों को श्रद्धा से भोजन कराएँ।
- सात्विक आहार लें।
- तर्पण करते समय पूर्ण एकाग्रता रखें।
- पितरों के नाम स्मरण करें।
क्या न करें
- मांस, शराब, तामसिक भोजन का सेवन न करें।
- झूठ बोलना, क्रोध करना, अपवित्र वस्त्र पहनना वर्जित है।
- दान देते समय अहंकार या दिखावा न करें।
- श्राद्ध कर्म को हल्के में न लें।
सप्तमी श्राद्ध का आध्यात्मिक लाभ
- पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।
- परिवार में अन्न-धन की वृद्धि होती है।
- गृहस्थ जीवन की बाधाएँ दूर होती हैं।
- संतान सुख और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
- वंश परंपरा सुरक्षित रहती है।
आधुनिक समय में सप्तमी श्राद्ध का महत्व
आज की व्यस्त जीवनशैली में लोग परंपराओं को भूलते जा रहे हैं, लेकिन श्राद्ध की परंपरा केवल कर्मकांड नहीं, बल्कि पूर्वजों के प्रति सम्मान है।
यह हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है और यह स्मरण कराता है कि हम जो हैं, अपने पितरों की ही देन हैं।
सप्तमी श्राद्ध केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह कृतज्ञता का पर्व है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हमारे जीवन में पितरों का योगदान अमूल्य है और उनके आशीर्वाद से ही जीवन में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है।