सनातन धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। इसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है। पितृ पक्ष के दौरान 15 दिनों तक विभिन्न तिथियों पर अपने पितरों का स्मरण, तर्पण और श्राद्ध अनुष्ठान किए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस समय पितृ लोक के द्वार खुलते हैं और पितर धरती पर अपने वंशजों का आशीर्वाद देने आते हैं।
इसी क्रम में पितृ पक्ष का छठा दिन षष्ठी श्राद्ध कहलाता है। यह दिन उन पितरों की आत्मा की शांति के लिए समर्पित है जिनका निधन शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि (छठा दिन) को हुआ था।
षष्ठी श्राद्ध 2025 का आयोजन शुक्रवार, 12 सितंबर 2025 को किया जाएगा। इस दिन श्रद्धा और विधिपूर्वक श्राद्ध, तर्पण और दान करने से पितरों की आत्मा को शांति प्राप्त होती है और परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहता है।
षष्ठी श्राद्ध का महत्व
- पितरों की आत्मा की शांति
- श्राद्ध और तर्पण का मुख्य उद्देश्य पितरों की आत्मा को तृप्त करना है।
- ऐसा माना जाता है कि इस दिन किए गए श्राद्ध से पितर प्रसन्न होकर अपने वंशजों को सुख, शांति और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
- धार्मिक मान्यता
- गरुड़ पुराण और धर्मशास्त्रों में वर्णन मिलता है कि श्राद्ध के बिना पितरों की आत्मा अधूरी रहती है।
- षष्ठी श्राद्ध करने से पितृ दोष का निवारण होता है।
- परिवार की उन्नति और समृद्धि
- पितरों की कृपा से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
- व्यापार और करियर में सफलता मिलती है।
- आध्यात्मिक दृष्टिकोण
- श्राद्ध से व्यक्ति के भीतर सेवा, करुणा और कृतज्ञता का भाव जागृत होता है।
- यह हमें यह स्मरण कराता है कि हमारा अस्तित्व केवल हमारे कर्मों से नहीं बल्कि पूर्वजों के आशीर्वाद से भी जुड़ा है।
पौराणिक संदर्भ
पुराणों में श्राद्ध का महत्व विस्तार से वर्णित है।
- महाभारत कथा: महाभारत में पांडवों ने अपने पितरों की शांति के लिए गंगा तट पर श्राद्ध किया था। कहा जाता है कि उनके इस कर्म से पितर प्रसन्न हुए और पांडवों को विजय का आशीर्वाद प्राप्त हुआ।
- गरुड़ पुराण: इसमें बताया गया है कि पितृ पक्ष में किए गए श्राद्ध और तर्पण से पितरों की आत्मा पितृ लोक से स्वर्गलोक की ओर गमन करती है।
- रामायण कथा: भगवान श्रीराम ने भी पितरों की आत्मा की शांति हेतु पितृ पक्ष में पिंडदान और तर्पण किया था।
षष्ठी श्राद्ध की विधि
- स्नान और शुद्धि
- सूर्योदय से पहले स्नान करें और शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध किया जाता है।
- संकल्प
- पंडित के मार्गदर्शन में संकल्प लेकर श्राद्ध का आरंभ करें।
- संकल्प में पितरों का नाम और गोत्र उच्चारित किया जाता है।
- तर्पण अनुष्ठान
- तिल और जल को मिलाकर पितरों को अर्पित किया जाता है।
- यह तर्पण पितरों की आत्मा को तृप्त करने के लिए किया जाता है।
- पिंडदान
- चावल, जौ, तिल और घी से बने गोल पिंड पितरों को अर्पित किए जाते हैं।
- यह पितरों को भोजन अर्पित करने का प्रतीक है।
- भगवान शिव और विष्णु की पूजा
- भगवान शिव को जल और बेलपत्र अर्पित करें।
- भगवान विष्णु का सहस्रनाम या विष्णु चालीसा का पाठ करें।
- पितृ मंत्रोच्चारण
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥ॐ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च ।
नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम: ॥ - भोजन और भोग
- पितरों को सात्विक भोजन जैसे खीर, पूड़ी, फल, पंचमेवा और दूध से बने पकवान अर्पित किए जाते हैं।
- ब्राह्मण भोज और दान
- ब्राह्मणों को भोजन कराना और वस्त्र, अन्न व धन का दान करना।
- दान से पितरों की आत्मा को संतोष और प्रसन्नता मिलती है।
विशेष नियम और सावधानियाँ
- इस दिन मांस, मछली, अंडा, शराब जैसे तामसिक भोजन वर्जित हैं।
- श्राद्ध करते समय पूर्ण पवित्रता और श्रद्धा का पालन करना आवश्यक है।
- श्राद्ध अनुष्ठान सदैव किसी पंडित या पुरोहित के मार्गदर्शन में करना चाहिए।
- श्राद्ध के समय काले और चमकीले वस्त्र नहीं पहनने चाहिए, बल्कि साधारण और स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए।
- श्राद्ध में अन्न और जल अर्पण करते समय मन को शांत और भावपूर्ण रखना चाहिए।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
श्राद्ध केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं है, बल्कि इसके पीछे वैज्ञानिक आधार भी छिपा हुआ है।
- पितृ पक्ष में सूर्य दक्षिणायन होते हैं, और इस दौरान वातावरण में ऐसी ऊर्जा उत्पन्न होती है जो आत्मिक शांति के लिए उपयुक्त होती है।
- पिंडदान में प्रयुक्त तिल, जौ और चावल शरीर और मन को शुद्ध करने वाले तत्व माने जाते हैं।
- श्राद्ध के दौरान किए गए दान और भोजन वितरण से समाज में सामाजिक संतुलन और करुणा का भाव मजबूत होता है।
दान का महत्व
दान को श्राद्ध का सबसे पवित्र भाग माना गया है।
- अन्न दान – पितरों को तृप्त करने का सबसे श्रेष्ठ साधन।
- वस्त्र दान – पितरों की आत्मा को संतोष प्रदान करता है।
- धन दान – परिवार में धन-धान्य की वृद्धि लाता है।
- गाय दान और भूमि दान – धर्मशास्त्रों में इसे सर्वोत्तम दान बताया गया है।
निष्कर्ष
षष्ठी श्राद्ध (12 सितंबर 2025) पितरों को श्रद्धांजलि अर्पित करने का एक अत्यंत पवित्र अवसर है।
इस दिन श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान और दान करके हम अपने पितरों की आत्मा को शांति और मोक्ष प्रदान कर सकते हैं।
- यह दिन हमें यह स्मरण कराता है कि –
- पूर्वजों के आशीर्वाद के बिना जीवन अधूरा है। पितरों का स्मरण करना केवल एक धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व और जड़ों को सम्मान देना है।
श्रद्धा और विधि से किए गए षष्ठी श्राद्ध से पितरों की आत्मा प्रसन्न होती है और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद देकर उनके जीवन को सुख, शांति और समृद्धि से भर देते हैं।