एकादशी श्राद्ध (Gyāras Shraddha) वह श्राद्ध संस्कार है जो उस पूर्वज (पितृ) के तिथि-नुसार किया जाता है जिस दिन उनकी मृत्यु एकादशी तिथि को हुई हो। हिंदू धर्म में श्राद्धों का प्रमुख उद्देश्य होता है पितरों की आत्मा की शांति और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना। विशेष रूप से पितृपक्ष में ये श्राद्ध अत्यन्त महत्वपूर्ण हो जाते हैं।
- “श्राद्ध” शब्द “श्रद्धा” से आता है, अर्थात् श्रद्धा और विश्वास।
- “एकादशी तिथि” वह चंद्र-तिथि है जो प्रत्येक मास में दो बार आती है – कृष्ण पक्ष की एकादशी और शुक्ल पक्ष की एकादशी।
- यदि किसी पूर्वज की मृत्यु की तिथि एकादशी हो, तो माह में जब एकादशी तिथि हो, उसी दिन श्राद्ध किया जाता है।
क्यों मनाई जाती है एकादशी श्राद्ध?
एकादशी श्राद्ध के पीछे कई धार्मिक, आध्यात्मिक और पारम्परिक कारण हैं:
- पितृ आत्माओं की शांति
मान्यता है कि यदि मृतक पैदा तिथि-तिथि (दिन) पर श्राद्ध न हो, तो उनकी आत्मा को पीड़ा होती है। श्राद्ध करने से पितर तृप्त होते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। - पितृ दोष निवारण
यदि किसी के पूर्वजों की अनिष्ट मृत्यु हुई हो या श्राद्ध न जाने के कारण वे अध:-स्थल या यमलोक में किसी तरह की व्यथा से गुजर रहे हों, तो श्राद्ध भाव से किया गया कर्म उन्हें लाभ पहुंचाता है। - पुण्य और दान-दान
एकादशी श्राद्ध में जो दान, भोजन, ब्राह्मण सेवा आदि किये जाते हैं, वे बहुत अधिक पुण्य के स्रोत माने जाते हैं। धार्मिक ग्रंथों में लिखा है कि ऐसा दान करने से श्राद्धकर्ता को भी लाभ होता है — मानसिक शांति, परिवार में सौहार्द, और शुभ फल मिलते हैं। - परंपरा और वंशीय संबंध
पूर्वजों से संबंध बनाए रखना, उनका सम्मान करना, उनका श्राद्ध करना धर्म और संस्कृति की परंपरा है। यह एक तरह से अपने पूर्वजों को स्मरण करने और उनकी परोपकारों के लिए धन्यवाद ज्ञापन करने का समय है। - धार्मिक वातावरण एवं आत्म-चिंतन का अवसर
पितृपक्ष की श्राद्ध तिथियों में मनुष्य अपने जीवन, अपने कर्तव्यों, अपने संबंधों की समीक्षा करता है। आत्मा को पुण्य कर्मों के लिए प्रेरित करता है, मन को शुद्ध करता है, पारिवारिक बंधनों को मजबूत करता है।
श्राद्ध कब और कैसे किया जाता है — विधि और नियम
एकादशी श्राद्ध की विधि हर क्षेत्र, परिवार और परंपरा के अनुसार थोड़ी बदल सकती है, लेकिन नीचे सामान्यत: पालन किए जाने वाले नियम और विधियाँ हैं:
समय और तिथि
- श्राद्ध पितृपक्ष (Pitru Paksha /श्राद्ध पर्व) के दौरान किए जाते हैं।
- एकादशी श्राद्ध की तिथि वह दिन है जब एकादशी तिथि चंद्रमना हो। 2025 में यह 17 सितम्बर, बुधवार को है।
- तिथि के शुरुआत और अंत का समय विभिन्न स्थानों (जैसे आपका शहर) पर पञ्चांग अनुसार बदल सकता है।
अनुष्ठानों और क्रियाएँ
- स्नान एवं शुद्धिकरण
श्राद्ध के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान किया जाता है। नित्यास्त्र, वस्त्र आदि शुद्ध हो। - पूजा-अर्चना
भगवान विष्णु, भगवान यम, पितर आदि की पूजा की जाती है। गेहूँ, तिल, जल-भोजन आदि से विधि अनुसार आराधना होती है। - तर्पण और पिंडदान
तर्पण: जल में तिल, दूध, चावल मिलाकर पितरों को अर्पण किया जाता है।
पिंडदान: पिंड (घोल आदि) बनाकर पूर्वजों को अर्पित किया जाता है। - दान-पुण्य
अनाज, भोजन, वस्त्र, दक्षिणा, चावल-दूध आदि ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को देना। सार्वजनिक दान करने से पुण्य बढ़ता है। - ब्राह्मण भोजन और दक्षिणा
ब्राह्मणों को भोजन कराना तथा उनसे सम्बद्ध दक्षिणा देना इस दिन किया जाता है। यह श्राद्ध की प्रमुख गति है। - पंचबलि (पाँच प्राणियों को भोजन)
गाय, कौआ, कुत्ता, देवता और चींटी आदि को भोजन या अन्नदान करने की प्रधानता है। - व्रत या संयम
यदि संभव हो, तो व्रत रखा जा सकता है विशेषकर यदि मृतक की तिथि उसी तिथि से जुड़ी हो। व्रत न रखने वालों को भी कम-से-कम उपवास की भावना से आचरण करना चाहिए। कुछ परंपराओं में एकादशी तिथि पर पूर्ण व्रत करना आवश्यक माना जाता है। - भोजन की व्यवस्था
श्राद्ध भोजन सरल लेकिन शुद्ध हो। अन्न-जल, मिश्रित अन्न आदि। भोजन ब्राह्मणों और पितरों को सपरिवार कराया जाता है। - आचार-संहिता
श्राद्ध करते समय मनोभाव, आत्मा की शुद्धि, परलोक की स्मृति, पापों से परहेज, और पूर्वजों के प्रति आदर का भाव आवश्यक है। किसी तरह की झूठ, अहंकार, बुरे विचारों को न रखें।
2025 में एकादशी श्राद्ध की तिथि और समय (भारत, सामान्य)
नीचे 2025 में एकादशी श्राद्ध (Indira Ekadashi भी कहलाती है) की तिथि तथा समय की जानकारी है:
घटना | तारीख | दिन |
---|---|---|
एकादशी श्राद्ध तिथि | 17 सितंबर 2025 | बुधवार |
एकादशी तिथि आरंभ | 17 सितंबर की सुबह (लगभग मध्यरात्रि से) | |
एकादशी तिथि समाप्ति | 17 सितंबर 2025 की रात तक (स्थान विशेष पर समय अलग हो सकता है) |
मुहूर्त और उपयुक्त समय
- कुतुप मुहूर्त: लगभग दोपहर के वक्त एक शुभ समय अवधि जिसमें श्राद्ध एवं तर्पण आदि करने की सलाह दी जाती है।
- रौहिण मुहूर्त: उसके तुरंत बाद आने वाला समय का काल।
- अपराह्न काल: दोपहर बाद का समय, लेकिन सूर्यास्त से पहले।
विशेष बातें & मिथक
- यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु एकादशी तिथि पर हुई हो, तो उसका श्राद्ध विशेष महत्व प्राप्त करता है।
- कुछ परंपराएँ कहती हैं कि इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए— यानी संयम व आचरण में सादगी बनाए रखें।
- माना जाता है कि इस दिन व्रत और श्राद्ध से पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है और वंश में सौभाग्य व समृद्धि बनी रहती है।
एकादशी श्राद्ध केवल एक धार्मिक कर्म नहीं है, बल्कि यह पूर्वजों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने, मन और आचरण को शुद्ध करने, परिवार में सद्भाव बनाए रखने और आत्मा की शांति हेतु एक अवसर है। 2025 में यह श्राद्ध 17 सितंबर को हो रहा है, जहाँ शुभ मुहूर्तों के अनुसार तर्पण-पिंडदान, दान-दान, पूजा व ब्राह्मण सेवा आदि करने से विशेष फल की प्राप्ति होगी।