भारतीय संस्कृति में पितरों का सम्मान और उनकी स्मृति में किए जाने वाले अनुष्ठानों का विशेष महत्व है। हिंदू धर्म में कहा गया है कि जो व्यक्ति अपने पूर्वजों का श्राद्ध करता है, वह उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख, समृद्धि और उन्नति प्राप्त करता है। पितृ पक्ष, जिसे महालय या श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है, साल में एक बार 16 दिनों तक चलता है। इस दौरान हर तिथि का अपना महत्व होता है और प्रत्येक दिन विशेष पितरों के श्राद्ध के लिए निर्धारित है।
इन्हीं दिनों में एक है द्वादशी श्राद्ध, जो बारहवीं तिथि को मनाया जाता है। यह श्राद्ध उन पितरों के लिए किया जाता है जिनका निधन द्वादशी तिथि को हुआ हो, साथ ही यह सन्यासियों और तपस्वियों के लिए भी विशेष रूप से माना जाता है। 2025 में यह श्राद्ध 18 सितम्बर, गुरुवार को मनाया जाएगा।
द्वादशी श्राद्ध क्या है?
द्वादशी श्राद्ध, पितृ पक्ष की द्वादशी तिथि को किया जाने वाला श्राद्ध अनुष्ठान है। द्वादशी तिथि का सीधा अर्थ है — चंद्र मास का बारहवाँ दिन। यह तिथि वैष्णव मत और भगवान विष्णु की पूजा के लिए भी महत्वपूर्ण मानी जाती है, लेकिन पितृ पक्ष में इसका संबंध पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष से है।
इस दिन वे सभी लोग, जिनके परिवार में किसी सदस्य का निधन द्वादशी तिथि को हुआ हो, श्राद्ध और तर्पण करते हैं। साथ ही, सन्यास धारण करने वाले, भिक्षुक या वे लोग जिन्होंने सांसारिक जीवन त्यागकर ईश्वर साधना में जीवन बिताया हो — उनके लिए भी द्वादशी श्राद्ध किया जाता है।
2025 में द्वादशी श्राद्ध की तिथि
पंचांग अनुसार 2025 में द्वादशी श्राद्ध गुरुवार, 18 सितम्बर 2025 को मनाया जाएगा।
इस दिन प्रातः काल स्नान, संकल्प, पिंडदान और तर्पण का विशेष महत्व है।
स्थान विशेष के अनुसार शुभ मुहूर्त देख कर अनुष्ठान करना सर्वोत्तम माना जाता है।
द्वादशी श्राद्ध केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं है, बल्कि यह हमारे पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और सम्मान का प्रतीक भी है। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि हमारे आज के अस्तित्व की नींव उन्हीं पर टिकी है। उनके लिए किया गया श्राद्ध न केवल उनकी आत्मा को शांति देता है, बल्कि हमारे जीवन में भी सकारात्मक ऊर्जा, आशीर्वाद और सफलता लाता है।
द्वादशी श्राद्ध का महत्व
- पितरों की आत्मा की शांति
माना जाता है कि जब हम श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करते हैं तो पितरों की आत्माओं को तृप्ति मिलती है। वे प्रसन्न होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। - पितृ ऋण से मुक्ति
हिंदू शास्त्रों के अनुसार हर मनुष्य पर तीन ऋण होते हैं — देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण। पितृ ऋण से मुक्ति पाने का प्रमुख साधन श्राद्ध और तर्पण है। द्वादशी श्राद्ध इस ऋण की पूर्ति का अवसर देता है। - सन्यासियों का विशेष सम्मान
द्वादशी श्राद्ध की विशेषता यह है कि यह केवल पूर्वजों तक सीमित नहीं है, बल्कि उन संतों और सन्यासियों के लिए भी किया जाता है जिन्होंने समाज को दिशा दी। यह उनके त्याग और साधना का सम्मान है। - आध्यात्मिक लाभ
इस श्राद्ध से मनुष्य के जीवन में शांति, सुख-समृद्धि और मानसिक स्थिरता आती है। कई बार परिवार में चल रही बाधाएँ, संतान-सुख की कमी या आर्थिक रुकावटें भी पितृ दोष के कारण मानी जाती हैं। श्राद्ध इन्हें दूर करता है। - पारिवारिक एकता
पितृ पक्ष और श्राद्ध अनुष्ठान परिवार को एक साथ बैठाकर पूर्वजों की स्मृति को जीवित रखते हैं। यह अवसर होता है जब छोटे-बड़े सब मिलकर अपने कुल परंपरा और संस्कारों को याद करते हैं।
द्वादशी श्राद्ध की विधि
द्वादशी श्राद्ध का आयोजन पूर्ण श्रद्धा और नियम से किया जाता है। इसमें कई चरण होते हैं, जो इस प्रकार हैं:
1. शुद्धि और तैयारी
- सूर्योदय से पहले स्नान करना।
- शुद्ध, सफ़ेद या पीले वस्त्र पहनना।
- पूजा स्थल की सफाई करना और भगवान व पितरों के लिए स्थान तैयार करना।
2. संकल्प
श्राद्ध करने वाला व्यक्ति जल, तिल और कुशा घास हाथ में लेकर संकल्प करता है। इसमें यह कहा जाता है कि यह अनुष्ठान अमुक तिथि को दिवंगत हुए पूर्वज के लिए किया जा रहा है।
3. पिंडदान
- चावल, जौ, तिल और घी से पिंड बनाए जाते हैं।
- इन्हें पितरों के नाम से अर्पित किया जाता है।
- पिंड आत्मा के आहार और संतुष्टि का प्रतीक माने जाते हैं।
4. तर्पण
- तिल मिश्रित जल अर्पित किया जाता है।
- इसे पूर्वजों की प्यास बुझाने और तृष्णा समाप्त करने का प्रतीक माना जाता है।
- मंत्रों का उच्चारण कर यह कार्य किया जाता है।
5. ब्राह्मण भोजन और दान
- ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है, क्योंकि शास्त्रों के अनुसार पितर ब्राह्मणों के माध्यम से प्रसन्न होते हैं।
- भोजन के बाद वस्त्र, अनाज और दक्षिणा का दान किया जाता है।
6. जीवों को अन्नदान
- गाय, कौए, कुत्तों आदि को भी अन्न देना आवश्यक माना जाता है।
- कौए को अन्न देना विशेष रूप से पितरों की आत्मा तक भोजन पहुँचाने का प्रतीक है।
7. परिवार का भोजन
- श्राद्ध पूरा होने के बाद परिवार के सदस्य सत्विक भोजन करते हैं।
- इस दिन मांस, मछली, प्याज, लहसुन, शराब आदि वर्जित होते हैं।
द्वादशी श्राद्ध के दौरान सावधानियाँ
- इस दिन नशा, मांसाहार और तमसिक भोजन से परहेज करना चाहिए।
- श्राद्ध के दौरान झगड़ा, क्रोध या अपशब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- भोजन हमेशा सत्विक और शुद्ध होना चाहिए।
- बिना संकल्प और मंत्रों के पिंडदान अधूरा माना जाता है।
- महिलाओं को श्राद्ध में प्रत्यक्ष भाग नहीं लेने दिया जाता, लेकिन वे घर की शुद्धि और भोजन बनाने में शामिल रहती हैं।
द्वादशी श्राद्ध से जुड़े धार्मिक संदर्भ
- गरुड़ पुराण और महाभारत में पितृ पक्ष का महत्व विस्तार से बताया गया है।
- गरुड़ पुराण के अनुसार, श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को मोक्ष मिलता है और वे स्वर्गलोक में स्थान पाते हैं।
- महाभारत में भी युधिष्ठिर और भीष्म पितामह के संवाद में पितरों की तृप्ति और उनके आशीर्वाद का महत्व वर्णित है।
द्वादशी श्राद्ध के लाभ
- पितरों की आत्मा को शांति और संतुष्टि मिलती है।
- परिवार में चल रही रुकावटें और बाधाएँ दूर होती हैं।
- संतान सुख की प्राप्ति होती है।
- परिवार में सुख-शांति और सौहार्द बढ़ता है।
- आर्थिक स्थिति और समृद्धि में वृद्धि होती है।
- धार्मिक और आध्यात्मिक पुण्य प्राप्त होता है।