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Trayodashi Shraddha 2025 | त्रयोदशी श्राद्ध तिथि, विधि एवं महत्व | PDF

सनातन धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व माना गया है। यह वह पवित्र समय है जब जीवित लोग अपने पितरों को श्रद्धा, प्रेम और कृतज्ञता के साथ स्मरण करते हैं। इन दिनों किए गए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान से पूर्वजों की आत्मा को शांति और मोक्ष प्राप्त होता है तथा परिवारजनों पर उनका आशीर्वाद बना रहता है।

पितृपक्ष में प्रत्येक तिथि का अपना अलग महत्व होता है। उसी क्रम में त्रयोदशी श्राद्ध का स्थान भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह श्राद्ध उन पूर्वजों के लिए किया जाता है जिनका देहांत त्रयोदशी तिथि (तेरहवीं तिथि) को हुआ हो। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन विधिवत श्राद्ध करने से न केवल departed souls को शांति मिलती है, बल्कि वंशजों के जीवन में भी सुख-समृद्धि, मानसिक शांति और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

1. त्रयोदशी श्राद्ध क्या है?

2. त्रयोदशी श्राद्ध क्यों मनाया जाता है?

त्रयोदशी श्राद्ध करने के पीछे कई धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएँ जुड़ी हुई हैं:

  1. पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए
    जैसा कि हिंदू धर्म में मान्यता है, जब जीवन का अंत होता है, तो आत्मा अगले लोक की यात्रा करती है। यदि श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान इत्यादि जैसे अनुष्ठानों द्वारा उसका आदर न किया गया हो, तो आत्मा को शांति नहीं मिलती। त्रयोदशी श्राद्ध उन पूर्वजों की आत्मा को शांति प्रदान करने का एक अवसर है।
  2. पितृ ऋण (Pitru Rin) की पूर्ति
    हिंदू जीवन दर्शन में यह माना जाता है कि हम सब अपने पूर्वजों के ऋणी हैं — उन्होंने हमें जीवन दिया, संस्कार दिए। इसलिए उनका सम्मान करना और उनके लिए पुण्य कर्म करना आवश्यक है। श्राद्ध एक ऐसा कर्म है जो पितृ ऋण की पूर्ति का माध्यम है।
  3. परिवार में सुख-शांति, समृद्धि की कामना
    जब पूर्वज प्रसन्न होते हैं, ऐसा विश्वास है कि वे अपने वंशजों के लिए आशीर्वाद भेजते हैं — रोग-त्याग, मानसिक शांति, आर्थिक स्थिरता आदि के लिए। त्रयोदशी श्राद्ध इस आशा के साथ किया जाता है कि पूर्वजों की कृपा बनी रहे।
  4. शनिवार-पक्ष आध्यात्मिक महत्व
    पितृ पक्ष की त्रयोदशी तिथि स्वयं में शुभ मानी जाती है, क्योंकि इस तिथि पर तर्पण-पिंडदान के लिए समय, मुहूर्त और विधि पूरी तरह से तैयार रहते हैं। ग्रह-नक्षत्र आदि भी इससे जुड़े हैं।

3. 2025 में त्रयोदशी श्राद्ध कब है?

4. त्रयोदशी श्राद्ध का मुहूर्त और शुभ समय

श्राद्ध-कर्म करने के लिए शुभ मुहूर्त ज़रूरी माना जाता है। 2025 के लिए कुछ मुहूर्त इस प्रकार बताए गए हैं:

इन मुहूर्तों में श्राद्ध करने से श्राद्ध का पुण्य अधिक माना जाता है। यदि इन समयों में संभव न हो, तो अन्य शुभ समय (जैसे तर्पण-मुहूर्त) देखा जा सकता है।

5. इस दिन क्या करना चाहिए — त्रयोदशी श्राद्ध की विधि एवं सुझाव

नीचे एक सामान्य विधि दी जा रही है, जिसे स्थान, परिवार की परंपरा और धार्मिक ग्रंथों की सलाह के अनुसार थोड़ा-बहुत बदल सकते हैं:

क्रम कार्य विवरण
शुभ तैयारी स्वच्छता श्राद्धकर्ता पहले दिन स्नान-ध्यान कर लें, पोशाक शुद्ध हो। घर, पूजा स्थल, यंत्र-पात्र साफ हों।
मन को एकाग्र करना पूर्वजों की आत्मा के लिए श्रद्धा, संयम और मन से प्रार्थना करना।
पात्र और सामग्री पानी (जल), दूध, घी, तिल (मुख्यतः काले तिल), कुश, पुष्प, दीप, अगरबत्ती, भोजन (शुद्ध और संतुलित) आदि।
तर्पण और पिंडदान जल से तर्पण करना — अर्थात पितरों को जल अर्पित करना। पिंड बनाना — जौ, तिल आदि से पिंड तैयार कर उन्हें अर्पित करना।
भोजन का आयोजन पूर्वजों की पसंद का भोजन तैयार करना। उसमें से भाग चुन कर ब्राह्मणों को भोजन देना, कौवों-गाय-कुत्ते आदि को अन्न-जल देना।
दान-पुण्य वस्त्र, अनाज, चावल, तिल आदि का दान देना। यदि संभव हो तो ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन कराना।
पूजा-प्रार्थना मंत्रों का उच्चारण करना — जैसे “ॐ पितृभ्यः स्वाहा / ॐ पितृभ्यो विद्धम…” आदि। पितृ-स्तुति। मंत्र-तर्पण आदि संपन्न करना।
समापन श्राद्ध समाप्ति के बाद धन्यवाद करना, परिवारजनों से चर्चा करके यह सुनिश्चित करना कि किसी ने अन्न-प्रसाद ग्रहण किया हो।

6. कुछ विशेष मान्यताएं और नियम

7. 2025 त्रयोदशी श्राद्ध: विशेष बातें

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