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Shri Ganesh Visarjan

गणेश चतुर्थी मनाने का कारण

धार्मिक शास्त्रों के अनुसार देवी पार्वती ने भगवान शिव की अनुपस्थिति में स्नान करते समय अपनी रक्षा के लिए चंदन के लेप से भगवान गणेश की रचना की थी। भगवान शिव के लौटने पर, गणेश पहरा दे रहे थे लेकिन भगवान शिव को स्नान कक्ष में प्रवेश नहीं करने दिया। क्रोधित शिव ने फिर गणेश का सिर काट दिया। यह देखकर देवी पार्वती क्रोधित हो गईं और देवी काली में परिवर्तित हो गईं। भगवान शिव ने एक बच्चे को खोजने और उसका सिर काटने का सुझाव दिया। शर्त यह थी कि बच्चे की मां का मुंह दूसरी तरफ हो। जो पहला सिर मिला वह एक हाथी के बच्चे का था। भगवान शिव ने हाथी का सिर जोड़ा और गणेश का पुनर्जन्म हुआ। यह देख पार्वती अपने मूल रूप में लौट आईं और तब से हर साल गणेश चतुर्थी मनाई जाती है।

गणेश विसर्जन की परंपरा

गणेश चतुर्थी त्योहार के अंतिम दिन, गणेश विसर्जन की परंपरा होती है। 10 दिवसीय उत्सव के समापन दिवस को अनंत चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। अंतिम दिन भक्त अपने प्यारे भगवान की मूर्तियों को लेकर जुलूस में निकलते हैं और विसर्जन करते हैं।

गणेश विसर्जन की कहानियां

गणेश विसर्जन की कथा के पीछे एक दिलचस्प कहानी है। ऐसा माना जाता है कि त्योहार के आखिरी दिन भगवान गणेश अपने माता-पिता भगवान शिव और देवी पार्वती के साथ कैलाश पर्वत पर लौटते हैं। गणेश चतुर्थी का उत्सव जन्म, जीवन और मृत्यु के चक्र के महत्व को भी दर्शाता है। गणेश, जिन्हें नई शुरुआत के भगवान के रूप में भी जाना जाता है, वही बाधाओं के निवारण के रूप में भी पूजा जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब गणेश जी की मूर्ति को विसर्जन के लिए बाहर ले जाया जाता है तो वह अपने साथ घर की विभिन्न बाधाओं को भी दूर कर देती है और विसर्जन के साथ-साथ इन बाधाओं का भी नाश होता है। हर साल लोग बड़ी बेसब्री से गणेश चतुर्थी के त्योहार का इंतजार करते हैं। और हमेशा की तरह, हम यह भी आशा करते हैं कि इस वर्ष भी, विघ्नहर्ता अपने आशीर्वाद को हम पर बरसाएंगे और हमारे जीवन के सभी संघर्षों को मिटा देंगे।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह भी माना जाता है कि श्री वेद व्यास जी ने गणपति जी जब  महाभारत की कथा सुनानी शुरू की थी, तभी से गणेश चतुर्थी का आरंभ हो गया था। कहानी सुनाने के दौरान व्यास जी आंख बंद करके गणेश जी को लगातार 10 दिनों तक कथा सुनाते रहे और गणपति जी लगातार 10 दिनों तक लिखते रहे। यह कथा खत्म होने के 10 दिन बाद जब व्यास जी ने आंखे खोली तो देखा कि गणेश जी के शरीर का तापमान काफी ज्यादा बढ़ गया था। ऐसे में व्यास जी ने गणेश जी के शरीर को ठंडा करने के लिए जल में डुबकी लगवाना शुरू कर दी। तभी से यह मान्‍यता है कि 10वें दिन गणेश जी को शीतल करने के लिए उनका विसर्जन जल में किया जाता है।

इस प्रकार गणपति विसर्जन का आयोजन करना आवश्यक और महत्वपूर्ण माना गया है। गणपति विसर्जन करने के बाद गणपति जी के भक्त अगले वर्ष उनके स्वागत के लिए उनका इंतजार करते हैं। साथ ही जीवन के हर एक पड़ाव में गणपति जी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भी उनसे प्रार्थना करते हैं।

गणपति विसर्जन की विधि 

लकड़ी का एक पटरा लें और उसे गंगाजल से साफ कर लें अब घर की महिला उस पटरे पर स्वास्तिक बनाए।

– अब पटरे पर अक्षत रखें उस पर पीला, गुलाबी या लाल रंग का कपड़ा बिछाएं। फिर जिस स्थान पर गणपति की स्थापना की गई थी अब मूर्ति को वहां से उठाकर पटरे पर रखें।

– गणेश जी को विराजमान करने के बाद पटरे पर फल, फूल और मोदक रखें।

– गणेश जी को विदा करने से पहले उनकी प्रतिमा की विधिवत पूजा करें और बप्पा को भोग लगाएं। इसके बाद उन्हें वस्त्र पहनाएं।

– अब एक रेशमी कपड़ा लें उसमें मोदक, कुछ पैसे, दूर्वा घास और सुपारी लेकर उसमें गांठ बांध दें और इस पोटली को बप्पा के साथ ही बांध दें।

– अब घर के सभी लोग एक साथ बप्पा की आरती उतारें और गणपति बप्पा मोरया के जयकारे लगाएं।

– इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर उनसे क्षमा प्रार्थना करें कि अगर इस दौरान कोई गलती हो गयी हो तो उसके लिए क्षमा करें।

– विजर्सन के समय ध्‍यान रहे कि गणेश प्रतिमा व अन्‍य चीजों को फेंके नहीं, बल्‍कि पूरे मान-सम्‍मान के साथ धीरे-धीरे एक-एक चीज विसर्जित करें।