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Shri Ganesh Ji Aarti

(१) जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।


अर्थ – गणेश जी की जय हो, गणेश जी की जय हो। जिनकी माता माँ भवानी पार्वती हैं और पिता स्वयं महादेव शिव शंकर हैं। हे देवता! गणेश आपकी जय हो।

(२) एकदन्त दयावन्त चार भुजा धारी।
मस्तक सिन्दूर सोहे मूसे की सवारी।


अर्थ –  भगवान गणेश एक दाँत वाले सभी पर दया करने वाले, चार भुजाओं को धारण करते हैं। जिनके माथे पर सिंदूर का तिलक शोभित होता है और वे मूषकराज की सवारी करते हैं।

(३) पान चढ़ें फूल चढ़ें और चढ़ें मेवा।
लड्डुवन को भोग लगे सन्त करें सेवा।


अर्थ –  भगवान गणेश को पान, फूल चढ़ाए जाते हैं और उन्हें मेवा मिष्ठान समर्पित किया जाता है। लड्डु जो कि उन्हें बहुत प्रिय हैं का भोग लगाकर संतजन उनकी सेवा करते हैं।

(४) अन्धन को आँख देत कोढ़िन को काया।
बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया।


अर्थ –  भगवान गणेश अंधों को आँखे प्रदान करने वाले हैं, कोढ़ियों को स्वरूपवान बनाने वाले हैं। इसी तरह से बाँझ स्त्री को पुत्र प्रदान करते हैं और गरीबों को धन दौलत से मालामाल कर देते हैं।

(५) दीनन की लाज राखो शम्भु-सुत वारी।
कामना को पूरा करो जग बलिहारी।


अर्थ –   हे भगवान गणेश! आप हम दीन दुखियों के मान सम्मान को बनाए रखें। हे भगवान शंकर के पुत्र, जगत के पालनकर्ता आप हमारी मन की इच्छा की पूर्ति कर हमारा उद्धार (कल्याण) करें।

(६) सूरश्याम शरण आये सफल कीजै सेवा।
माता जाकी पार्वती पिता महादेवा।


अर्थ –  हे भगवान गणेश! हम आपके शरणार्थी हैं। आप हमारी सेवा को स्वीकार कर हमारे मनोरथ को सफल बनाएँ। आपकी माता जगदम्बा भवानी पार्वती हैं और पिता महादेव शिव शंकर हैं।

आरती-2

(१) गणपति की सेवा मंगल मेवा,
सेवा से सब विध्न टरे।
तीन लोक तैतीस देवता,
द्वार खड़े सब अर्ज करे॥


अर्थ –  भगवान गणेश की पूजा अर्चना अर्थात सेवा से सबका मंगल होता है और व्यक्ति धन-धान्य से परिपूर्ण होता है। गणपति की सेवा करने से सारी विघ्न-बाधाएँ दूर हो जाती हैं। तीनो लोकों अर्थात स्वर्ग लोक, मृत्यु लोग और पाताल लोक में उन्हें पूजा जाता है। तैंतीस कोटि देवतागण गणपति जी के द्वार पर खड़े होकर प्रार्थना करते हैं।

(२) ऋद्धि-सिद्धि दक्षिण वाम विराजे,
अरु आनन्द सों चवर करें।
धूप दीप और लिए आरती,
भक्त खड़े जयकार करें॥
गणपति की सेवा………….


अर्थ –   भगवान गणेश की पत्नियाँ ऋद्धि और सिद्धि दाएँ और बाएँ और विराजमान हैं। उनके चारों ओर आनंद ही आनंद है। भगवान गणेश की धूप, दीप और आरती लेकर भक्तजन जयकार कर रहे हैं। इस तरह गणपति जी की सेवा करने से सब ओर मंगल होता है।

(३) गुड़ के मोदक भोग लगत है,
मूषक वाहन चढ़ा करें।
सौम्यरुप सेवा गणपति की,
विध्न विनाशक नाम धरे॥
गणपति की सेवा………….


अर्थ –  भगवान गणेश को गुड़ के बने हुए मोदकों का भोग लगाया जाता है। वे मूषकराज की सवारी करते हैं। उनके सुंदर स्वरूप की सेवा की जाती है। उनका नाम विघ्न विनाशक अर्थात विघ्न बाधाओं को दूर करने वाले है। इस तरह गणेश जी की सेवा करने से चारों और मंगल होता है।

(४) भादों मास और शुक्ल चतुर्थी, दिन दोपहरा पूर परें।
लियो जन्म गणपति प्रभुजी ने,
दुर्गा मन आनन्द भरें॥
गणपति की सेवा…………


अर्थ –  भगवान गणेश ने भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को दोपहर के समय में जन्म लिया जिससे माता दुर्गा भवानी पार्वती के मन में आनंद हुआ। इस तरह से भगवान गणेश की सेवा करने से चारों और मंगल होता है।

(५) अद्भुत बाजा बजा इन्द्र का,
देव वधू जय गान करें।
श्री शंकर को आनन्द उपज्यो,
नाम सुना सब विघ्न टरें॥
गणपति की सेवा…………


अर्थ –  भगवान गणेश के अवतरण के अवसर पर इन्द्रदेव अद्भुत बाजा बजने लगा और देवताओं की पत्नियाँ जयकार करने लगी। भगवान शंकर को अति आनंद हुआ। भगवान गणेश का नाम सुनते ही सारे विघ्न दूर हो जाते हैं। इस तरह से भगवान गणेश की सेवा करने से चारों और मंगल होता है।

(६) आन विधाता बैठे आसन,
इन्द्र अप्सरा नृत्य करें।
देख वेद ब्रह्माजी जाको,
विघ्न विनाशक नाम धरें॥
गणपति की सेवा………..


अर्थ –   जब विधाता भगवान शंकर गणेश जी को लेकर आसन पर विराजमान हुए तो इन्द्र की अप्सराएँ नृत्य करने लगी। इसी अवसर पर ब्रह्मा जी ने वेदों में देखकर उनका नाम विघ्न-विनाशक अर्थात सारी बाधाओं को दूर करने वाला रखा। इस तरह गणेश जी की सेवा करने से चारों ओर मंगल होता है।

(७) एकदन्त गजबदन विनायक,
त्रिनयन रूप अनूप धरें।
पगथंभा सा उदर पुष्ट है,
देख चन्द्रमा हास्य करें॥
गणपति की सेवा………..


अर्थ –  भगवान गणेश एक दाँत वाले, हाथी के शरीर वाले एवं सभी देवताओं की मार्गदर्शन करने वाले हैं। तीन आँखों रूपी अनुपम स्वरूप धारण करते हैं। पगथंभा की भाँति उनका एकदम स्वस्थ पेट है ऐसा शरीर देख चन्द्रदेव उन पर हंँसते हैं। गणेश जी की सेवा करने से चारों और मंगल होता है।

(८) दे श्राप श्री चन्द्रदेव को,
कलाहीन तत्काल करें।
चौदह लोक में फिरे गणपति,
तीन भुवन में राज करें॥
गणपति की सेवा………..


अर्थ –  इस तरह चन्द्रदेव के द्वारा हँसी उड़ाने पर उन्हें गणेश जी श्राप देकर तत्काल ही सारी कलाओं से हीन कर प्रकाश रहित कर देते हैं। इसके बाद गणेश जी चौदह लोकों में विचरण करते हैं तथा तीनों भुवनों (लोकों) में राज करते हैं। इस तरह गणेश जी की सेवा करने से चारों ओर मंगल होता है।

(९) गणपति की पूजा पहले करनी,
काम सभी निर्विघ्न सरें।
श्री प्रताप गणपतीजी को,
हाथ जोड स्तुति करें॥
गणपति की सेवा………….


अर्थ –  प्रथम पूज्य श्री गणेश जी की पूजा सबसे पहले करनी चाहिए जिससे सारे काम बिना विघ्न बाधा के पूरे हो जाते हैं। श्री प्रताप सिंह गणेश जी की हाथ जोड़कर स्तुति (प्रार्थना) करते हैं। इस तरह गणेश जी की पूजा करने से चारों ओर मंगल ही मंगल होता है।

(१०) गणपति की सेवा मंगल मेवा,
सेवा से सब विध्न टरें।
तीन लोक तैतीस देवता,
द्वार खड़े सब अर्ज करे॥
गणपति की सेवा………….


अर्थ –  भगवान गणेश की पूजा अर्चना अर्थात सेवा से सबका मंगल होता है और व्यक्ति धन्य धन्य से परिपूर्ण होता है। गणपति की सेवा करने से सारी विघ्न-बाधाएँ दूर हो जाती हैं। तीनो लोकों (अर्थात स्वर्ग लोक, मृत्यु लोग और पाताल लोक) में उन्हें पूजा जाता है। तैंतीस कोटि देवतागण गणपति जी के द्वार पर खड़े होकर प्रार्थना करते हैं।