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Shri Surya Deva Chalisa

।। दोहा ।।

कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अंग।
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के संग।।

अर्थ – सूर्य देव का वर्ण सोने के समान पीला है और उन्होंने कानों में मकर के कुण्डल पहने हुए हैं तथा गले में मोतियों की माला सुशोभित है। हम सभी को पद्मासन में बैठकर तथा शंख व चक्र के साथ सूर्य भगवान का ध्यान लगाना चाहिए।

।। चौपाई ।।

जय सविता जय जयति दिवाकर, सहस्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर।

अर्थ – हे सविता अर्थात सवेरा लाने वाले सूर्य देव, आपकी जय हो। हे दिवाकर अर्थात रोशनी प्रदान करने वाले सूर्य देव, आपकी जय हो, जय हो। हे हजारों अंश से बने और सात घोड़ों के रथ पर चलने वाले सूर्य देव जो अंधकार को हर लेते हैं, उनकी जय हो।

भानु! पतंग! मरीची! भास्कर! सविता! हंस सुनूर विभाकर।
विवस्वान! आदित्य! विकर्तन, मार्तण्ड हरिरूप विरोचन।
अंबरमणि! खग! रवि कहलाते, वेद हिरण्यगर्भ कह गाते।

अर्थ – सूर्य भगवान को भानु, पतंग, मरीचि, भास्कर, सविता हंस, विभाकर, विवस्वान, आदित्य, विकर्तन, मार्तंड, भगवान विष्णु के एक रूप विरोचन (भक्त प्रह्लाद के पुत्र), अंबरमणि, खग और रवि के नाम से जाना जाता है जबकि वेदों में उन्हें हिरण्यगर्भ के नाम से जाना जाता है।

सहस्रांशुप्रद्योतन, कहि कहि, मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि।

अर्थ – हजारों अंशों के मिलने से भगवान सूर्य देव का जन्म हुआ था और यह कहकर सभी ऋषि-मुनि प्रसन्न होकर हिठलाते हैं।

अरुण सदृश सारथी मनोहर, हांकत हय साता चढ़ि रथ पर।

अर्थ – भगवान सूर्य देव के रथ के सारथी अरुण देव हैं जो उनके सात घोड़े वाले रथ को हांकते हैं।

मंडल की महिमा अति न्यारी, तेज रूप केरी बलिहारी।

अर्थ – हे सूर्य देव!! आपके आभामंडल की महिमा अपरंपार है और आपके तेज को देखकर हम सभी प्रसन्नचित्त हैं।

उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते, देखि पुरन्दर लज्जित होते।

अर्थ – आपके रथ में उच्च श्रेणी का एक घोड़ा उच्चैःश्रवा भी है जो समुंद्र मंथन के समय निकला था और उसे देखकर तो इंद्र देव भी लज्जा से शर्मा जाते हैं।

मित्र १. मरीचि २. भानु ३. अरुण भास्कर ४. सविता।
५. सूर्य ६. अर्क ७. खग ८. कलिहर पूषा ९. रवि।
१०. आदित्य ११. नाम लै, हिरण्यगर्भाय नमः १२. कहिकै।
द्वादस नाम प्रेम सो गावैं, मस्तक बारह बार नवावै।
चार पदारथ सो जन पावै, दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै।

अर्थ – जो कोई भी सूर्य भगवान के इन बारह नामों मित्र, मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर, सविता, सूर्य, अर्क, खग, रवि, आदित्य, हिरण्यगर्भाय को पौष माह में प्रेम सहित गाता है और उनके सामने बार बार अपना शीश झुकाता है, उसे चारों पदों अर्थात अर्थ, बल, काम व मोक्ष की प्राप्ति होती है और उस मनुष्य के सभी दुःख, दरिद्रता व पाप इत्यादि नष्ट हो जाते हैं।

नमस्कार को चमत्कार यह, विधि हरिहर कौ कृपासार यह।

अर्थ – सूर्य नमस्कार करने का सबसे बड़ा चमत्कार यह होता है कि इससे हमें भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।

सेवै भानु तुमहिं मन लाई, अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई।

अर्थ – जो मनुष्य सूर्य भगवान का मन लगाकर ध्यान करता है, उसे आठों सिद्धियाँ व नौ निधियां प्राप्त होती है।

बारह नाम उच्चारन करते, सहस जनम के पातक टरते।

अर्थ – जो मनुष्य सूर्य देव के इन बारह नामों का उच्चारण करता है उसके हज़ार जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।

उपाख्यान जो करते तवजन, रिपु सों जमलहते सोतेहि छन।
छन सुत जुत परिवार बढ़तु है, प्रबलमोह को फंद कटतु है।

अर्थ – जो भी प्रजाजन आपका व्याख्यान करते हैं, आप उन सभी को उनके शत्रुओं से छुटकारा दिलाते हो। साथ ही उन्हें धन, संतान, वैभव सभी चीज़ों की प्राप्ति होती है और संसार के सभी मोह उनसे छूट जाते हैं।

अर्क शीश को रक्षा करते, रवि ललाट पर नित्य बिहरते।

अर्थ – अपने अर्क रूप में वे हमारे मस्तक की रक्षा करते हैं तो रवि रूप में हमारे ललाट पर विचरण करते हैं।

सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत, कर्ण देस पर दिनकर छाजत।

अर्थ – सूर्य रूप में वे हमारी आँखों में विराजते हैं तो दिनकर रूप में कानों में छा जाते हैं।

भानु नासिका वास करहु नित, भास्कर करत सदा मुख कौ हित।

अर्थ – भानु रूप में वे हमारी नाक में निवास करते हैं तो भास्कर रूप में हमारे मुख का हित करते हैं।

ओठ रहैं पर्जन्य हमारे, रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे।

अर्थ – पर्जन्य रूप में वे हमारे होंठों पर निवासित हैं तो तीक्ष्ण रूप में हमारी जीभ पर बसते हैं।

कंठ सुवर्ण रेत की शोभा, तिग्मतेजसः कांधे लोभा।

अर्थ – हमारे कंठ अर्थात गले में सुवर्ण रेत के रूप में विराजित हैं तो कंधे पर तेज धारदार अस्त्र के रूप में विराजमान हैं।

पूषां बाहु मित्र पीठहिं पर, त्वष्टा-वरुण रहम सुउष्णकर।

अर्थ – हमारी भुजाओं में वे पूषां रूप में तो पीठ पर मित्र रूप में रहते हैं। वरुण रूप में वे ताप को बढ़ाते हैं।

युगल हाथ पर रक्षा कारन, भानुमान उरसर्मं सुउदरचन।

अर्थ – युगल के रूप में वे हमारे हाथों में रहकर हमारी रक्षा करते हैं तो भानु रूप में वे हमारे उदर अर्थात पेट में रहकर उसे स्वस्थ रखते हैं।

बसत नाभि आदित्य मनोहर, कटि मंह हंस, रहत मन मुदभर।

अर्थ –हमारी नाभि में वे आदित्य रूप में बसते हैं जो मन को मोह लेते हैं और कमर में मुदभर के रूप में विराजते हैं।

जंघा गोपति, सविता बासा, गुप्त दिवाकर करत हुलासा।

अर्थ – जांघों में वे गोपति सविता के रूप में वास करते हैं तो गुप्तांगों में दिवाकर के रूप में हुडदंग मचाते हैं।

विवस्वान पद की रखवारी, बाहर बसते नित तम हारी।

अर्थ – पैरों में वे विवस्वान के रूप में बसकर उसकी रखवाली करते हैं तो बाहर रहकर वे अंधकार का नाश करते हैं।

सहस्रांशु, सर्वांग सम्हारै, रक्षा कवच विचित्र विचारे।

अर्थ – अपने हजारों अंश के माध्यम से आप हमारे प्रत्येक अंग को सँभालते हैं और आपका रक्षा कवच अत्यधिक विचित्र व अद्भुत है।

अस जोजन अपने मन माहीं, भय जग बीज करहुं तेहि नाहीं।

अर्थ – जो भी मनुष्य भगवान सूर्य का अपने मन में ध्यान करता है, उसे किसी भी चीज़ का भय नही रहता है।

दरिद्र कुष्ट तेहिं कबहुं न व्यापै, जोजन याको मनमंह जापै।

अर्थ – जो भी भक्तगण अपने मन में सूर्य भगवान के नाम को जपता है, उसे चर्म या कुष्ठ रोग नही होते हैं।

अंधकार जग का जो हरता, नव प्रकाश से आनन्द भरता।

अर्थ – सूर्य देव संपूर्ण जगत के अंधकार को नष्ट करते हैं और उसे प्रकाश से भर देते हैं।

ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही, कोटि बार मैं प्रनवौं ताही।

अर्थ – आप सभी ग्रहों के दोष को भी मिटा देते हैं और मैं आपको करोड़ो बार प्रणाम करता हूँ।

मंद सदृश सुतजग में जाके, धर्मराज सम अद्भुत बांके।

अर्थ – आपके पुत्र शनिदेव ही धर्मराज हैं जो इस जगत में धर्म को विजयी करवाते हैं।

धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा, किया करत सुरमुनि नर सेवा।

अर्थ – हे सूर्य देव!! आप धन्य हैं, धन्य हैं। आप ही सभी मनुष्यों, ऋषि-मुनियों की सेवा करते हैं।

भक्ति भावयुत पूर्ण नियमसों, दूर हटतसो भवके भ्रमसों।

अर्थ – जो कोई भी संपूर्ण भक्ति भाव से व नियमों का पालन कर सूर्य देव की पूजा करता है, वह इस विश्व के मायाजाल से दूर हो जाता है।

परम धन्य सो नर तनधारी, हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी।

अर्थ – जो मनुष्य आपका ध्यान करते हैं, वे सभी धन्य हैं। आप उनसे प्रसन्न होकर उनके जीवन से अंधकार को नष्ट कर देते हैं।

अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन, मध वेदांगनाम रवि उदयन।

अर्थ – माघ माह में आप अरुण कहलाते हैं तो फाल्गुन माह में सूर्य देव, दिन के मध्य में आप वेदांग के रूप में तो उदय होते समय आप रवि कहलाते हैं।

भानु उदय वैसाख गिनावै, ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै।

अर्थ – वैशाख माह में आप भानु रूप में उदय होते हैं तो ज्येष्ठ माह में इंद्र तो आषाढ़ माह में रवि कहलाते हैं।

यम भादों आश्विन हिमरेता, कातिक होत दिवाकर नेता।

अर्थ – भादो माह में यम तो अश्विन माह में हिमरेता, कार्तिक माह में दिवाकर के नाम से आपको जाना जाता है।

अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं, पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं।

अर्थ – अगहन में आपको भिन्न नामो से जाना जाता है तो पौष माह में आपको विष्णु रूप में जाना जाता है। मलमास में आपका नाम रवि होता है।

।। दोहा ।।

भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य।
सुख सम्पत्ति लहै विविध, होंहि सदा कृतकृत्य।।

अर्थ – जो कोई भी मनुष्य इस सूर्य चालीसा को प्रेम सहित प्रतिदिन गाता है, उसे सभी तरह की सुख व संपत्ति प्राप्त होती है और उसके सभी कार्य पूर्ण होते हैं।