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Maa Durga Aarti

(१) जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशदिन ध्यावत,
मैयाजी को सदा मनावत,
हरि ब्रह्मा शिवरी॥
जय अम्बे गौरी।।

अर्थ- हे माँ दुर्गा भवानी! अम्बे आपकी जय हो। हे माता श्यामा गौरी! आपकी जय हो। आपकी सदैव (हर दिन) सभी लोग आराधना करते हैं। हे माता! भगवान श्री हरि विष्णुजी, ब्रह्माजी और शिवजी सदैव आपका स्मरण कर आपको मान्यता देते हैं, आपकी पूजा करते हैं। हे! अम्बे आपकी जय हो।

(२) मांग सिन्दूर विराजत,
टीको मृगमद को,- २
उज्जवल से दोऊ नैना,- २
चन्द्रवदन नीको॥
जय अम्बे गौरी।।

अर्थ- हे माता दुर्गा! आपकी मांग में सिन्दूर शोभायमान हो रहा है। आपके माथे पर कस्तूरी से किया गया तिलक दमक रहा है। आपकी निर्विकार उज्ज्वल निर्मल दो आँखें चमकती हैं और आपकी कांतिमान काया चन्दन की गंध की तरह सुगंधित है। हे! अम्बे आपकी जय हो।

(३) कनक समान कलेवर,
रक्ताम्बर राजे, -२
रक्तपुष्प गल माला, -२
कण्ठन पर साजे॥
जय अम्बे गौरी।।

अर्थ- हे माता दुर्गा ! आपका शरीर सोने की चमक की तरह चमक रहा है, आप भगवा (लाल) वस्त्र रंग के धारण करती हैं। लाल रंग के कनेर के फूल की माला आपके गले में शोभायमान है। हे! अम्बे आपकी जय हो।

(४) केहरि वाहन राजत,
खड्ग खप्पर धारी, -२
सुर नर मुनिजन सेवत, -२
तिनके दुःख हारी।।
जय अम्बे गौरी।।

अर्थ- हे माता दुर्गा ! आप अपने वाहन सिंह पर विराजने वाली हैं। आप हाथों में खड्ग अर्थात तलवार और खप्पर जिसमें ज्वाला जलते रहते है को धारण करने वाली हैं। आपकी देवता, मनुष्य और ऋषि-मुनिगण सभी गुणगान करते हुए सदैव सेवा करते हैं, जो भक्त आपकी भक्ति करते हैं उनके आप दुःखों का हरण कर लेती हैं। हे! अम्बे आपकी जय हो।

(५) कानन कुण्डल शोभित,
नासाग्रे मोती, -२
कोटिक चन्द्र दिवाकर, -२
राजत सम ज्योति॥
जय अम्बे गौरी।।

अर्थ-  हे माता दुर्गा ! आपके कानों में पहने हुए कुण्डल और नाक के अग्र भाग में पहना हुआ मोती शोभायमान हो रहे हैं अर्थात् कानों की बालियाँ और नाक का मोती सुन्दर लग रहा है। ये ऐसे लग रहे हैं मानो करोड़ों सूर्य और चंद्रमा प्रकाशमान हो रहे हों। अर्थात आपके कान और नाक में पहने हुए गहने करोड़ों सूर्य और चंद्रमा की चमक से भी आगे हैं। हे! अम्बे आपकी जय हो।

(६) शुम्भ-निशुम्भ विदारे,
महिषासुर घाती, -२
धूम्र विलोचन नैना, -२
निशदिन मदमाती॥
जय अम्बे गौरी।।

अर्थ- हे दुर्गा माता! अपने दैत्य शुंभ और निशुंभ को अपने तेज प्रहार से मारकर दैत्य महिषासुर का भी घात अर्थात वध किया है और तीनों लोकों का उद्धार किया है। धुँए की तरह दृश्यमान होने वाले आपके नेत्र सदैव मदमस्त दिखाई देते हैं अर्थात ये नेत्र गौरवशाली लगते हैं। हे! अम्बे आपकी जय हो।

(७) चण्ड-मुण्ड, संहारे,
शोणित बीज हरे, -२
मधु-कैटभ दोऊ मारे, -२
सुर भयहीन करे।।
जय अम्बे गौरी।।

अर्थ- हे दुर्गा माता ! आपने चुण्ड और मुण्ड नामक दैत्यों का संहार किया है। रक्तबीज का भी आपने अंत कर सभी का उद्धार किया है। मधु और कैटभ नाम के दो दुर्दांत दैत्य भाइयों का भी आपने वध करके देवता गणों को भय से मुक्त किया है। हे! अम्बे आपकी जय हो।

(८) ब्रह्माणी, रुद्राणी,
तुम कमला रानी, -२
आगम निगम बखानी, -२
तुम शिव पटरानी॥
जय अम्बे गौरी।।

अर्थ- हे माता दुर्गा ! आप ही ब्रह्माणी अर्थात सरस्वती हो। आप ही रुद्राणी अर्थात पार्वती हो। और तुम ही कमला रानी अर्थात महालक्ष्मी हो। आपका शास्त्रों और वेदों में भी वर्णन है। हे माँ जगदम्बा आप भगवान शिव-शंकर की पटरानी अर्थात् भार्या हो। हे! अम्बे आपकी जय हो।

(९) चौंसठ योगिनी मंगल गावत,
नृत्य करत भैरूँ, -२
बाजत ताल मृदंगा, -२
अरु बाजत डमरू॥
जय अम्बे गौरी।।

अर्थ- हे जगदंबे भवानी दुर्गा माता! चौंसठ योगिनी आपका गुणगान करती हैं और भैरों बाबा मग्न होकर आपका जयकार करते हुए नृत्य करते हैं। आपके जयगान में ढोल, नगाड़े और डमरू बजते हैं। हे! अम्बे आपकी जय हो।

(१०) तुम ही जगत की माता,
तुम ही हो भर्ता, -२
भक्तन की दुःख हर्ता, -२
सुख संपत्ति कर्ता॥
जय अम्बे गौरी।।

अर्थ- हे माँ भवानी ! आप ही इस पूरे संसार की माता हो। आप ही सबका पालन-पोषण करने वाली हो। आप ही अपने भक्तों के दुःखों का हरण करने वाली हो। और आप ही सबको सुख-सम्पत्ति देने वाली हो। हे! अम्बे आपकी जय हो।

(११) भुजा चार अति शोभित,
वर मुद्रा धारी, -२
मनवांछित फल पावत, -२
सेवत नर-नारी।।
जय अम्बे गौरी।।

अर्थ- हे माता दुर्गा ! आपकी चार भुजाएँ बहुत ही सुंदर और शोभा देने वाली हैं। आप वरदान देती हुई मुद्रा में बहुत ही शोभायमान प्रतीत हो रही हैं। आप उन स्त्री-पुरुषों अर्थात नर-नारियों को उनके मन के अनुसार फल प्रदान करती हो जो आपकी नित्य आराधना करते हैं। हे! अम्बे आपकी जय हो।

(१२) कंचन थाल विराजत,
अगर कपूर बाती, -२
श्रीमालकेतु में राजत, -२
कोटि रत्न ज्योति॥
जय अम्बे गौरी।।

अर्थ- हे माता कल्याणी ! आपकी आरती सोने की थाल सजाकर की जाती है जिसमें धूपबत्ती, कपूर और दीपक सजाया जाता है। आप श्रीमालकेतु अर्थात् अरावली पर्वत का वह भाग जो कि चाँदी की तरह चमक प्रदान करने वाला है उसमें आप निवास करती हैं जहाँ करोड़ों रत्नों के प्रकाश से भी बढ़कर आपकी आरती का प्रकाश होता है। हे! अम्बे आपकी जय हो।

(१३) श्री अम्बे जी की आरती,
जो कोई नर गावे, -२
कहत शिवानंद स्वामी,
भजत शिवानंद स्वामी,
सुख संपत्ति पावे॥
जय अम्बे गौरी।।
मैया जय श्यामा गौरी।
मैया जय आनन्द करणी,
तुमको निशदिन ध्यावत,
मैयाजी को सदा मनावत,
हरि ब्रह्मा शिवरी॥
जय अम्बे गौरी।।

अर्थ- हे जगत जननी माता! आपकी आरती को जो कोई भक्त अपने भक्तिभाव एवं श्रद्धाभाव से गाता है, उस पर आपकी कृपादृष्टि सदैव बनी रहती है। ऐसे भक्तों को आप सुख- समृद्धि प्रदान करती हैं। हे! अम्बे आपकी जय हो।

हे माँ दुर्गा भवानी ! अम्बे आपकी जय हो। हे माता श्यामा गौरी ! आपकी जय हो। हे आनंद प्रदान करने वाली माँ ! आपकी जय हो। आपकी सदैव (हर दिन) सभी लोग आराधना करते हैं। हे माता! भगवान श्री हरि विष्णुजी, ब्रह्माजी और शिवजी सदैव आपका स्मरण कर आपको मान्यता देते हैं आपकी पूजा करते हैं। हे! अम्बे आपकी जय हो।