shri-batuka-bhairava-chalisa

।। दोहा ।।

विश्वनाथ को सुमरि मन, धर गणेश का ध्यान।
भैरव चालीसा पढूं, कृपा करहु भगवान।।
बटुकनाथ भैरव भजूं, श्री काली के लाल।
छीतरमल पर कर कृपा, काशी के कुतवाल।।

अर्थ- भगवान विश्वनाथ जी का सुमिरन कर व भगवान गणेश का ध्यान कर, मैं बटुक भैरव चालीसा का पाठ करता हूँ। हे भैरव बाबा, आप मुझ पर अपनी कृपा करें। हे काली के लाल, बटुकनाथ भैरव चालीसा का मैं भजन करता हूँ। हे काशी के कोतवाल! इस छीतरमल पर अपनी कृपा करें।

।। चौपाई ।।

जय जय श्री काली के लाला, रहो दास पर सदा दयाला।

अर्थ- हे काली के लाल, आपकी जय हो, जय हो। अपने इस दास पर सदा कृपा बनाए रखें।

भैरव भीषण भीम कपाली, क्रोधवन्त लोचन में लाली।

अर्थ- भैरव बाबा का रूप अत्यंत भीषण, क्रोधवाला व लाल रंग का है।

कर त्रिशूल है कठिन कराला, गल में प्रभु मुण्डन की माला।

अर्थ- उन्होंने अपने हाथों में त्रिशूल धारण किया हुआ है और गले में असुरों की खोपड़ियों की माला है 

कृष्ण रूप तन वर्ण विशाला, पीकर मद रहता मतवाला।

अर्थ- उनका वर्ण कृष्ण के समान सांवला है और वे मदिरा पीकर मस्त रहते हैं।

रुद्र बटुक भक्तन के संगी, प्रेतनाथ भूतेश भुजंगी।

अर्थ- उनका बटुक नामक रूद्र रूप हमेशा अपने भक्तों के साथ रहता है। वे प्रेतों के राजा, शिव व भुजंग हैं।

त्रैल तेश है नाम तुम्हारा, चक्र तुण्ड अमरेश पियारा।

अर्थ- उनका एक नाम त्रैल तेश भी है और वे चक्रतुंड अमरेश पियारा हैं।

शेखरचंद्र कपाल विराजै, स्वान सवारी पै प्रभु गाजै।

अर्थ- उनके मस्तक पर चंद्रमा सुशोभित है और वे कुत्ते की सवारी करते हैं।

शिव नकुलेश चण्ड हो स्वामी, बैजनाथ प्रभु नमो नमामी।

अर्थ- वे शिव हैं, नकुलेश हैं, चंड हैं और हम सभी के स्वामी भी। उन बैजनाथ प्रभु को हमारा नमन है।

अश्वनाथ क्रोधेश बखाने, भैरों काल जगत ने जाने।

अर्थ- उन अश्वनाथ व क्रोध के स्वामी का बखान सब करते हैं और भैरों बाबा की महिमा को पूरा जगत जानता है।

गायत्री कहैं निमिष दिगम्बर, जगन्नाथ उन्नत आडम्बर।

अर्थ- गायत्री माता दिगम्बर से उनके बारे में कहती हैं कि वे जगत के नाथ हैं।

क्षेत्रपाल दशपाणि कहाये, मंजुल उमानन्द कहलाये।

अर्थ- वे क्षेत्रपाल, दशपाणि, मंजुल, उमानंद इत्यादि नाम से भी जाने जाते हैं।

चक्रनाथ भक्तन हितकारी, कहैं त्र्यम्बक सब नर नारी।

अर्थ- वे चक्रनाथ के रूप में सभी भक्तों के हितों की रक्षा करते हैं और सभी मनुष्य उन्हें त्रयम्बक के नाम से भी जानते हैं।

संहारक सुनन्द तव नामा, करहु भक्त के पूरण कामा।

अर्थ- दुष्टों के संहार के कारण ही उनका हर जगह नाम है और वे अपने भक्तों के सब काम पूर्ण करते हैं।

नाथ पिशाचन के हो प्यारे, संकट मेटहु सकल हमारे।

अर्थ- भैरव बाबा भूत व पिशाचों के प्यारे हैं और हम सभी के सभी संकट मिटाते हैं।

कृत्यायू सुन्दर आनन्दा, भक्त जनन के काटहु फन्दा।

अर्थ- वे हम सभी को लंबी आयु, सुंदरता व आनंद प्रदान करते हैं और अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर कर देते हैं।

कारण लम्ब आप भय भंजन, नमोनाथ जय जनमन रंजन।

अर्थ- वे अपने भक्तों के भय को दूर कर देते हैं और उनके नाम का स्मरण करने मात्र से ही मन को आनंद की अनुभूति होती है।

हो तुम देव त्रिलोचन नाथा, भक्त चरण में नावत माथा।

अर्थ- वे तीनों लोकों के स्वामी हैं और सभी भक्तगण उनके चरणों में अपना शीश नवाते हैं।

त्वं अशतांग रुद्र के लाला, महाकाल कालों के काला।

अर्थ- वे रुद्ररूपी हैं और महाकाल भी अर्थात तीनों कालों के राजा हैं जिनमें भूतकाल, वर्तमानकाल व भविष्यकाल आते हैं।

ताप विमोचन अरिदल नासा, भाल चन्द्रमा करहिं प्रकाशा।

अर्थ- उनके कारण ही सूर्य देव हमे रोशनी प्रदान करता है व चंद्रमा प्रकाश फैलाता है।

श्वेत काल अरु लाल शरीरा, मस्तक मुकुट शीश पर चीरा।

अर्थ- श्वेत काल में उनका शरीर लाल रंग का है और उनके मस्तक पर एक मुकुट है।

काली के लाला बलधारी, कहाँ तक शोभा कहूँ तुम्हारी।

अर्थ- वे काली के लाला हैं अर्थात काल के स्वामी हैं और उनकी महिमा का हम कहां तक बखान करें।

शंकर के अवतार कृपाला, रहो चकाचक पी मद प्याला।

अर्थ- वे भगवान शंकर के एक अवतार हैं जो हम सभी पर कृपा करते हैं। साथ ही वे मदिरा का प्याला पीकर मस्त रहते हैं।

शंकर के अवतार कृपाला, बटुकनाथ चेटक दिखलाओ।

अर्थ- वे भगवान शंकर के एक अवतार हैं जो हम सभी पर कृपा करते हैं। हे बटुकनाथ!! हमें अपने रूप के दर्शन दीजिए।

रवि के दिन जन भोग लगावें, धूप दीप नैवेद्य चढ़ावें।

अर्थ- सूर्य भगवान के दिन अर्थात रविवार के दिन सभी उन्हें धूप, दीप, नैवेद्य का भोग लगाते हैं।

दरशन करके भक्त सिहावें, दारुड़ा की धार पिलावें।

अर्थ- उनके दर्शन करने मात्र से ही भक्तों को आनंद मिलता है और वे सभी उन्हें दारू का भोग लगाते हैं।

मठ में सुन्दर लटकत झावा, सिद्ध कार्य कर भैरों बाबा।

अर्थ- वे सुंदर हैं और झूमते हुए चलते हैं। हे भैरों बाबा! हम सभी के सभी कार्य सिद्ध कर दीजिए।

नाथ आपका यश नहीं थोड़ा, करमें सुभग सुशोभित कोड़ा।

अर्थ- हे नाथ, आपका यश किसी से कम नही है और आपके हाथों में तो कोड़ा भी सुशोभित लगता है।

कटि घूँघरा सुरीले बाजत, कंचनमय सिंहासन राजत।

अर्थ- आपके पैरों में घुंघरू मधुर संगीत करते हुए बजते हैं और आप कंचन के सिंहासन पर विराजमान हैं।

नर नारी सब तुमको ध्यावहिं, मनवांछित इच्छाफल पावहिं।

अर्थ- जो नर-नारी आपका ध्यान करते हैं, उन्हें अपनी इच्छा के अनुसार फल की प्राप्ति होती है।

भोपा हैं आपके पुजारी, करें आरती सेवा भारी।

अर्थ- भोपा आपके एक पुजारी हैं जो दिन-रात आपकी सेवा व आरती करते हैं।

भैरव भात आपका गाऊँ, बार बार पद शीश नवाऊँ।

अर्थ- मैं भैरव बाबा के भात गाता हूँ और बार-बार उनके चरणों में अपना शीश नवाता हूँ।

आपहि वारे छीजन धाये, ऐलादी ने रूदन मचाये।

अर्थ- आपके कारण ही ऐलादी का सबकुछ छिन गया और वह जोर-जोर से रोने लगा।

बहन त्यागि भाई कहाँ जावे, तो बिन को मोहि भात पिन्हावे।

अर्थ- बहन के त्याग से भाई अत्यंत दुखी हो गया और उसे समझ में नही आया कि वह भात कैसे भरे। 

रोये बटुकनाथ करुणा कर, गये हिवारे मैं तुम जाकर।

अर्थ- तब ऐलादी ने रो-रोकर आपके सामने याचना की और उसके बाद आप उसके पास गए।

दुखित भई ऐलादी बाला, तब हर का सिंहासन हाला।

अर्थ- आपने ऐलादी भाई के दुखों को कम किया और हर के सिंहासन को हिला दिया।

समय ब्याह का जिस दिन आया, प्रभु ने तुमको तुरत पठाया।

अर्थ- जिस दिन ऐलादी की बहन के ब्याह का समय आया, उस दिन भैरव बाबा ने आपको पाठ पढ़ाया।

विष्णु कही मत विलम्ब लगाओ, तीन दिवस को भैरव जाओ।

अर्थ- विष्णु भगवान ने कहा कि अब देर मत करो और तीन दिन के लिए भैरव चालीसा का पाठ करो।

दल पठान संग लेकर धाया, ऐलादी को भात पिन्हाया।

अर्थ- वर पक्ष सब अपने दल के साथ वहां आया तब ऐलादी ने आपकी कृपा से भात भरा।

पूरन आस बहन की कीनी, सुर्ख चुन्दरी सिर धर दीनी।

अर्थ- आपके कारण ही ऐलादी ने अपनी बहन की सब आशाओं को पूर्ण किया और उनके माथे पर सुहाग की चुनरी ओढा दी।

भात भरा लौटे गुणग्रामी, नमो नमामी अन्तर्यामी।

अर्थ- भात भरकर सभी गाँव वाले लौट गए। हे भैरव बाबा!! आप अंतर्यामी हैं, आपको नमन है।

।। दोहा ।।

जय जय जय भैरव बटुक, स्वामी संकट टार।
कृपा दास पर कीजिए, शंकर के अवतार।।
जो यह चालीसा पढ़े, प्रेम सहित सत बार।
उस घर सर्वानन्द हों, वैभव बढ़ें अपार।।

अर्थ- हे बटुक भैरव बाबा!! आपकी जय हो, जय हो, जय हो। आप हम सभी के संकटों को दूर करते हो। हे शंकर के अवतार!! आप अपने इस दास पर कृपा कीजिए। जो कोई भी भक्तगण इस चालीसा का सात बार पाठ कर लेता है, उसके घर में आनंद आता है और उसका वैभव बहुत बढ़ जाता है।