shri-parshuram-chalisa

Shri Parshuram Chalisa

।। दोहा ।।

श्री गुरु चरण सरोज छवि, निज मन मन्दिर धारि।
सुमरि गजानन शारदा, गहि आशिष त्रिपुरारि।।
बुद्धिहीन जन जानिये, अवगुणों का भण्डार।
बरणों परशुराम सुयश, निज मति के अनुसार।।

अर्थ – मैं गुरुओं के चरणों में प्रणाम कर, अपने मन को शुद्ध कर, गणेश भगवान व माँ शारदा का ध्यान कर, त्रिदेव का आशीर्वाद लेकर परशुराम चालीसा का पाठ करता हूँ। हे भगवान परशुराम! मुझे अज्ञानी समझ कर, मुझ पर अपनी कृपा बरसाएं।

।। चौपाई ।।

जय प्रभु परशुराम सुख सागर, जय मुनीश गुण ज्ञान दिवाकर।
भृगुकुल मुकुट बिकट रणधीरा, क्षत्रिय तेज मुख संत शरीरा।
जमदग्नी सुत रेणुका जाया, तेज प्रताप सकल जग छाया।
मास बैसाख सित पच्छ उदारा, तृतीया पुनर्वसु मनुहारा।

अर्थ – हे भगवान परशुराम!! आप सुखों के सागर हैं। आप ऋषियों के भगवान हैं और सभी को दिव्य ज्ञान देने वाले हैं। आप भृगुकुल में जन्मे ऐसे महापुरुष हैं जिनका तेज तो क्षत्रिय जैसा है लेकिन शरीर ब्राह्मण का है। आपके माता-पिता का नाम रेणुका व जमदग्नि है। वैसाख माह की तृतीय को आपका जन्म हुआ था।

प्रहर प्रथम निशा शीत न घामा, तिथि प्रदोष ब्यापि सुखधामा।
तब ऋषि कुटीर रुदन शिशु कीन्हा, रेणुका कोखि जनम हरि लीन्हा।
निज घर उच्च ग्रह छः ठाढ़े, मिथुन राशि राहु सुख गाढ़े।
तेज-ज्ञान मिल नर तनु धारा, जमदग्नी घर ब्रह्म अवतारा।

अर्थ – वह प्रथम प्रहर का समय था और तिथि प्रदोष थी। उस समय जमदग्नि ऋषि के यहाँ माँ रेणुका के गर्भ से आपने जन्म लिया था। आपके जन्म के समय छह ग्रह सही दिशा में थे, आपकी मिथुन राशि थी और राहु ग्रह सुख देने वाला था। आपने जमदग्नि ऋषि के घर में स्वयं ब्रह्म रूप में जन्म लिया था जिसके अंदर अत्यधिक तेज व ज्ञान था।

धरा रामशिशुपावन नामा, नाम जपत जग लह विश्रामा।
भाल त्रिपुण्ड जटा सिर सुन्दर, कांधे मुंज जनेउ मनहर।
मंजु मेखला कटि मृगछाला, रूद्र माला बर वक्ष बिशाला।
पीत बसन सुन्दर तनु सोहें, कंध तुणीर धनुष मन मोहें।

अर्थ – आपका नाम राम रखा गया और यह नाम संपूर्ण जगत लेता है। आपने भाला लिया हुआ है और आपके माथे पर त्रिपुंड और सिर पर जटाएं अत्यधिक सुशोभित है। आपने कंधे पर जनेऊ ले रखा है जो सभी का मन मोह लेता है। आपने हिरन की खाल का वस्त्र पहना हुआ है और गले में रूद्र माला धारण की हुई है। आपके वस्त्र पीले रंग के हैं जो आपके ऊपर बहुत अच्छे लग रहे हैं। कंधों पर आपने धनुष-बाण ले रखा है।

वेद-पुराण-श्रुति-स्मृति ज्ञाता, क्रोध रूप तुम जग विख्याता।
दायें हाथ श्रीपरशु उठावा, बेद-संहिता बायें सुहावा।
विद्यावान गुणज्ञान अपारा, शास्त्र-शस्त्र दोउ पर अधिकारा।
भुवन चारिदस नवखंडा, चहुं दिशि सुयश प्रताप प्रचंडा।

अर्थ – वेद, पुराण इत्यादि शास्त्र सभी यह कहते हैं कि आपका स्वाभाव अत्यधिक क्रोध वाला है जिसे संपूर्ण विश्व जानता है। आपने अपने दाएं हाथ में परशु शस्त्र लिया हुआ है और बाए हाथ में वेद व संहिता ली हुई है। आप सभी गुणों को लिए हुए विद्वान हैं। आपको शास्त्र व शस्त्र दोनों की ही जानकारी है। सभी दिशाओं, ग्रहों, खण्डों इत्यादि में आपका प्रताप फैला हुआ है।

एक बार गणपति के संगा, जूझे भृगुकुल कमल पतंगा।
दांत तोड़ रण कीन्ह विरामा, एक दंत गणपति भयो नामा।
कार्तवीर्य अर्जुन भूपाला, सहस्रबाहु दुर्जन विकराला।
सुरगऊ लखि जमदग्नी पांहीं, रखिहहुं निज घर ठानि मन माहीं।

अर्थ – एक बार आप किसी कारणवश शिव पुत्र गणेश से भी लड़ गए थे और उस समय आपने युद्ध में गणेश जी का एक दांत तोड़ डाला था। उसके बाद ही गणेश जी का नाम एकदंत पड़ गया था। आपने कार्तवीर्य अर्थात सहस्त्रबाहु को भी युद्ध में परास्त कर दिया था। जब वे जमदग्नि आश्रम से गाय को लेकर जाने वाले थे, तब आपने ही उन्हें ऐसा करने से रोक दिया था।

मिली न मांगि तब कीन्ह लड़ाई, भयो पराजित जगत हंसाई।
तन खल हृदय भई रिस गाढ़ी, रिपुता मुनि सौं अतिसय बाढ़ी।
ऋषिवर रहे ध्यान लवलीना, तिन्ह पर शक्तिघात नृप कीन्हा।
लगत शक्ति जमदग्नी निपाता, मनहुँ क्षत्रिकुल बाम विधाता।

अर्थ – जब उन्होंने आपसे इस देव गाय को माँगा तब आपने उन्हें यह नहीं दी। तब उसने आपसे युद्ध किया लेकिन उनकी पराजय हुई और आप विजयी हुए। यह देख कर सभी ओर उसकी हंसी उड़ी। तब राजा कार्तवीर्य ने इसका बदला लेने की ठान ली और जब ऋषि जमदग्नि ध्यानमग्न थे, तब उसने उनका वध कर दिया था। बस इसी के बाद ही कार्तवीर्य के हैहय वंश की दुर्गति शुरू हो गयी थी।

पितु-बध मातु-रूदन सुनि भारा, भा अति क्रोध मन शोक अपारा।
कर गहि तीक्षण परशु कराला, दुष्ट हनन कीन्हेउ तत्काला।
क्षत्रिय रुधिर पितु तर्पण कीन्हा, पितु-बध प्रतिशोध सुत लीन्हा।
इक्कीस बार भू क्षत्रिय बिहीनी, छीन धरा बिप्रन्ह कहँ दीनी।

अर्थ – जब भगवान परशुराम पुनः अपने पिता के आश्रम लोटे तब पिता का वध और अपनी माँ का रोना देखा। यह देखकर भगवान परशुराम क्रोध से भर गए। तब उन्होंने हैहय नाम के क्षत्रिय वंश का नाश कर अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने का संकल्प लिया। इसके बाद परशुराम ने कुल 21 बार हैहय क्षत्रिय वंश का इस पृथ्वी से नाश कर दिया था।

जुग त्रेता कर चरित सुहाई, शिव-धनु भंग कीन्ह रघुराई।
गुरु धनु भंजक रिपु करि जाना, तब समूल नाश ताहि ठाना।
कर जोरि तब राम रघुराई, बिनय कीन्ही पुनि शक्ति दिखाई।

अर्थ – माता सीता के स्वयंवर में राजा जनक की शर्त के अनुसार जब भगवान श्रीराम ने शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ानी चाही तब वह टूट गया। शिव धनुष के टूटने की आवाज सुन कर आप पूरे क्रोध में जनक राजमहल में पहुंचे और सभी का नाश करने की ठान ली। तब प्रभु श्रीराम ने आपको अपना असली रूप दिखाया और आप उसे देख कर शांत हो गए।

भीष्म द्रोण कर्ण बलवन्ता, भये शिष्या द्वापर महँ अनन्ता।
शस्त्र विद्या देह सुयश कमावा, गुरु प्रताप दिगन्त फिरावा।

अर्थ – आपने द्वापर युग में भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य व दानवीर कर्ण को शस्त्र विद्या देकर महान योद्धा बना दिया जिनका महाभारत के युद्ध में अहम योगदान था। आप ही उन तीनो के गुरु थे जिनका प्रताप पूरे विश्व में फैल गया था।

चारों युग तव महिमा गाई, सुर मुनि मनुज मनुज समुदाई।
दे कश्यप सों संपदा भाई, तप कीन्हा महेन्द्र गिरि जाई।
अब लौं लीन समाधि नाथा, सकल लोक नावइ नित माथा।

अर्थ – चारों युगों में आपकी महिमा का बखान किया गया है और सभी देवता, ऋषि-मुनि, मनुष्य इत्यादि आपकी पूजा करते हैं। ऋषि कश्यप के कहने पर आप महेंद्र पर्वत पर तपस्या करने के लिए चले गए थे। वहां जाकर आपने समाधि ले ली थी और सारा जगत आपके सामने अपना सिर झुकाता है।

चारों वर्ण एक सम जाना, समदर्शी प्रभु तुम भगवाना।
ललहिं चारि फल शरण तुम्हारी, देव दनुज नर भूप भिखारी।
जो यह पढ़ श्री परशु चालीसा, तिन्ह अनुकूल सदा गौरीसा।
पूर्णेन्द्रु निसि बासर स्वामी, बसहु हृदय प्रभु अन्तरयामी।

अर्थ – आपके लिए हिन्दू धर्म के चारो वर्ण एक जैसे ही हैं और आप सभी को एक समान ही देखते हैं। सभी तरह के भक्तों को आपके यहाँ शरण मिलती है फिर चाहे वह देवता, मनुष्य, भिखारी इत्यादि कोई भी हो। जो भी व्यक्ति इस परशुराम चालीसा का पाठ करता है, उसके साथ सब मंगल होता है। उसके हृदय में साक्षात श्री हरि का वास होता है।

।। दोहा ।।

परशुराम को चारू चरित, मेटत सकल अज्ञान।
शरण पड़े को देत प्रभु, सदा सुयश सम्मान।।

अर्थ – जो भी व्यक्ति भगवान परशुराम का ध्यान करता है, उसके जीवन से अज्ञान रुपी अंधकार समाप्त हो जाता है और ज्ञान का उसमे समावेश होता है। जो भी उनकी शरण में जाता है, प्रभु परशुराम उसके मान-सम्मान में वृद्धि करते हैं।

।। श्लोक ।।

भृगुदेव कुलं भानु, सहसबाहुर्मर्दनम्।
रेणुका नयना नंदं, परशुंवन्दे विप्रधनम्।।

अर्थ – हे भगवान परशुराम! आप भृगुकुल में जन्मे हो जिसने सहस्त्रबाहु का वध कर दिया था और उसकी हज़ार भुजाएं काट दी थी। आप माता रेणुका के पुत्र हो जो हर तरह के संकट का नाश करने में सक्षम हो।