
अध्याय 1 – अर्जुनविषादयोग
श्लोक 29
सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति ।
वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते ॥२९॥
हिंदी भावार्थ:
(अर्जुन कहते हैं:)
“मेरे अंग शिथिल हो रहे हैं, मुख सूख रहा है, शरीर काँप रहा है और रोमांच (रोम-रोम खड़ा हो जाना) हो रहा है।”
गूढ़ व्याख्या / विस्तार से समझाइए:
इस श्लोक में अर्जुन युद्ध के आरंभ में अपनी भीतर की बेचैनी और भय को श्रीकृष्ण के सामने प्रकट कर रहे हैं। जब उन्होंने देखा कि अपने ही कुल, मित्र, गुरु, और संबंधी युद्ध के लिए खड़े हैं, तो उनका शारीरिक और मानसिक संतुलन बिगड़ गया।
- “सीदन्ति मम गात्राणि” – उनके शरीर के अंगों में शिथिलता (कमज़ोरी) आ गई है।
- “मुखं च परिशुष्यति” – उनका मुँह सूखने लगा है, जिससे उनकी घबराहट और चिंता स्पष्ट होती है।
- “वेपथुश्च शरीरे मे” – उनका शरीर काँप रहा है, भय और दुविधा के कारण।
- “रोमहर्षश्च जायते” – उनके शरीर में रोमांच (शरीर के रोएं खड़े होना) हो रहा है, जो तीव्र भावनात्मक उद्वेग का संकेत है।
यह सब दर्शाता है कि अर्जुन केवल एक योद्धा नहीं हैं, बल्कि एक संवेदनशील मनुष्य हैं जो अपने संबंधों और धर्म के बीच द्वंद्व में फँस गए हैं।
मुख्य बिंदु:
- अर्जुन युद्ध से पहले भीतर से टूटने लगते हैं।
- यह श्लोक अर्जुन के विषाद योग की चरम स्थिति को दर्शाता है।
- यह उनके मानसिक संघर्ष, मोह और करुणा को उजागर करता है।
- यहीं से गीता का वास्तविक उपदेश प्रारंभ होने की भूमिका बनती है, जहाँ भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कर्म, धर्म और आत्मा का ज्ञान देंगे।






