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Shiv Ji Panchakshar Stotra | शिव जी पंचाक्षर स्तोत्र | PDF

Shiv Ji Panchakshar Stotra

शिव जी पंचाक्षर स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करने से गहन आध्यात्मिक और मानसिक लाभ होते हैं, जिससे व्यक्ति भगवान शिव की दिव्य ऊर्जा के करीब आता है। यह स्तोत्र पवित्र मंत्र ॐ नमः शिवाय पर आधारित है और पाँच अक्षरों (न, म, शि, व, य) से मिलकर बना है, जो पंचतत्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) का प्रतिनिधित्व करते हैं। शिव जी पंचाक्षर स्तोत्र के नियमित पाठ से अनेक लाभ मिलते हैं। आइए जानते हैं, इसका पाठ करने से हमें क्या-क्या लाभ प्राप्त हो सकते हैं:

  1. मन और शरीर की शुद्धि: पंचाक्षर मंत्र हमारे भीतर के पाँच तत्वों को शुद्ध करता है, जिससे आंतरिक ऊर्जा संतुलित होती है।
  2. मानसिक शांति: शिव जी पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ मन को शांत करता है, तनाव को कम करता है और ध्यान में एकाग्रता बढ़ाता है।
  3. नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा: इस स्तोत्र का पाठ करने से एक सुरक्षा कवच बनता है, जो नकारात्मकता को दूर करके सकारात्मक ऊर्जा को आमंत्रित करता है।
  4. दिव्य सुरक्षा और आशीर्वाद: भगवान शिव संकटों को हरने वाले और रक्षा करने वाले देवता माने जाते हैं। पंचाक्षर स्तोत्र के पाठ से भक्त उनकी कृपा प्राप्त करते हैं, जिससे उन्हें आध्यात्मिक और शारीरिक सुरक्षा मिलती है।
  5. आध्यात्मिक वृद्धि और जागरूकता: शिव जी पंचाक्षर स्तोत्र का नियमित पाठ भगवान शिव के प्रति श्रद्धा को गहरा करता है और आत्मज्ञान की दिशा में प्रगति कराता है।
  6. ऊर्जा और चक्रों का संतुलन: पंचाक्षर स्तोत्र के पाँच अक्षर शरीर की ऊर्जा केंद्रों को सक्रिय और संतुलित करते हैं, जिससे मानसिक स्थिरता और समग्र स्वास्थ्य में सुधार होता है।
  7. मोक्ष प्राप्ति का मार्ग: शास्त्रों के अनुसार, पंचाक्षर स्तोत्र का पाठ पिछले कर्मों के ऋण को समाप्त कर मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।

यदि आप अपने दैनिक जीवन में शिव जी पंचाक्षर स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करते हैं, तो इससे आपको शांति, सुरक्षा और भगवान शिव से गहन जुड़ाव प्राप्त होगा। यह शक्ति और शांति देने वाला पाठ जीवन में सकारात्मकता, आशीर्वाद, और आत्मिक संतुष्टि का अनुभव कराता है।

श्लोक

नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांगरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मै “न” काराय नमः शिवाय।।

इस श्लोक में “न” शब्द पृथ्वी तत्व से संबंधित है।

अर्थ- हे देवों के देव महादेव! आप अपने कंठ में नागराज वासुकि को हार स्वरूप धारण करते हैं। हे त्रिलोचन अर्थात तीन नेत्र धारण करने वाले प्रभु आप भस्म से अलंकृत नित्य (अनादि एवं अनंत) तथा शुद्ध हैं। अम्बर/आकाश को वस्त्र के समान धारण करने वाले दिगम्बर शिव आपके “न” अर्थात पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करने वाले स्वरूप को हमारा नमस्कार है।

मंदाकिनी सलिलचंदनचर्चिताय, नंदीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय।
मंदारपुष्पबहुपुष्प सुपूजिताय, तस्मै ”म काराय नमः शिवाय।।

श्लोक में “म” शब्द जल तत्व से संबंधित है।

अर्थ-हे महेश्वर ! चन्दन से अलंकृत एवं गंगा की धारा के द्वारा शोभायमान नन्दीश्वर एवं प्रमथनाथ के स्वामी आप सदा मन्दार पर्वत एवं बहुधा अन्य स्रोतों से प्राप्त पुष्पों द्वारा सदैव पूजित होते रहते हैं आपको हमारा नमस्कार है।

 शिवाय गौरीवदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्री नीलकंठाय वृषभध्वजाय, तस्मै शि काराय नमः शिवायः।।

इस श्लोक में “शि” अग्नि तत्व से संबंधित है।

अर्थ- हे नीलकंठ नाम से विख्यात प्रभु एक बार जब प्रजापति दक्ष को अत्यधिक अभिमान हो गया था और उसने अभिमान के वशीभूत होकर आपका भी भयंकर अपमान किया था तब आपने अभिमानी दक्ष के यज्ञ का विनाश किया था। हे माता गौरी के कमल मुख को सूर्य के समान तेज प्रदान करने वाले महाप्रभु आपको नमस्कार है।

वशिष्ठकुंभोद्भव गौतमाय, मुनींद्रदेवार्चितशेखराय।
चंदार्कवैश्वानरलोचनाय, तस्मै व काराय नमः शिवायः।

श्लोक में “व” वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करता है।

अर्थ- देवतागणों एवं ऋषियों में श्रेष्ठ वशिष्ठ, अगस्त्य तथा गौतम मुनियों द्वारा पूजित भगवन! सूर्य, चंद्रमा एवं अग्नि आपके तीन नेत्र के समान हैं। शिवजी आपके “व” अक्षर द्वारा विदित स्वरूप को हमारा नमस्कार है।

 यज्ञस्वरूपायजटाधराय, पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय, तस्मै य काराय नमः शिवाय।।

श्लोक में “य” आकाश स्वरूप को दर्शाता है।

अर्थ- हे यज्ञस्वरूप वाले जटाधारी शिवजी आप पिनाक नामक धनुष को धारण करते हैं आदि, मध्य एवं अंत रहित सनातन हैं आपके य अक्षर मान्य स्वरूप को हम नमस्कार करते हैं।

पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसिन्निधौ।
शिवलोकंवापनोति शिवेन सह मोदते।।

अर्थ- जो भी प्राणी इस पंचाक्षर स्त्रोत का पाठ प्रत्येक सोमवार को अथवा प्रतिदिन शुद्ध तथा निर्मल मन के साथ करता है वह सभी पापों से मुक्त होकर भगवान शिवजी के पुण्य लोक को प्राप्त होता है तथा भगवान शिव के साथ सुखपूर्वक निवास करता है।