shiv-ji-panchakshar-stotra

Shiv Ji Panchakshar Stotra

श्लोक

नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांगरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मै “न” काराय नमः शिवाय।।

इस श्लोक में “न” शब्द पृथ्वी तत्व से संबंधित है।

अर्थ- हे देवों के देव महादेव! आप अपने कंठ में नागराज वासुकि को हार स्वरूप धारण करते हैं। हे त्रिलोचन अर्थात तीन नेत्र धारण करने वाले प्रभु आप भस्म से अलंकृत नित्य (अनादि एवं अनंत) तथा शुद्ध हैं। अम्बर/आकाश को वस्त्र के समान धारण करने वाले दिगम्बर शिव आपके “न” अर्थात पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करने वाले स्वरूप को हमारा नमस्कार है।

मंदाकिनी सलिलचंदनचर्चिताय, नंदीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय।
मंदारपुष्पबहुपुष्प सुपूजिताय, तस्मै ”म काराय नमः शिवाय।।

श्लोक में “म” शब्द जल तत्व से संबंधित है।

अर्थ-हे महेश्वर ! चन्दन से अलंकृत एवं गंगा की धारा के द्वारा शोभायमान नन्दीश्वर एवं प्रमथनाथ के स्वामी आप सदा मन्दार पर्वत एवं बहुधा अन्य स्रोतों से प्राप्त पुष्पों द्वारा सदैव पूजित होते रहते हैं आपको हमारा नमस्कार है।

 शिवाय गौरीवदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्री नीलकंठाय वृषभध्वजाय, तस्मै शि काराय नमः शिवायः।।

इस श्लोक में “शि” अग्नि तत्व से संबंधित है।

अर्थ- हे नीलकंठ नाम से विख्यात प्रभु एक बार जब प्रजापति दक्ष को अत्यधिक अभिमान हो गया था और उसने अभिमान के वशीभूत होकर आपका भी भयंकर अपमान किया था तब आपने अभिमानी दक्ष के यज्ञ का विनाश किया था। हे माता गौरी के कमल मुख को सूर्य के समान तेज प्रदान करने वाले महाप्रभु आपको नमस्कार है।

वशिष्ठकुंभोद्भव गौतमाय, मुनींद्रदेवार्चितशेखराय।
चंदार्कवैश्वानरलोचनाय, तस्मै व काराय नमः शिवायः।

श्लोक में “व” वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करता है।

अर्थ- देवतागणों एवं ऋषियों में श्रेष्ठ वशिष्ठ, अगस्त्य तथा गौतम मुनियों द्वारा पूजित भगवन! सूर्य, चंद्रमा एवं अग्नि आपके तीन नेत्र के समान हैं। शिवजी आपके “व” अक्षर द्वारा विदित स्वरूप को हमारा नमस्कार है।

 यज्ञस्वरूपायजटाधराय, पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय, तस्मै य काराय नमः शिवाय।।

श्लोक में “य” आकाश स्वरूप को दर्शाता है।

अर्थ- हे यज्ञस्वरूप वाले जटाधारी शिवजी आप पिनाक नामक धनुष को धारण करते हैं आदि, मध्य एवं अंत रहित सनातन हैं आपके य अक्षर मान्य स्वरूप को हम नमस्कार करते हैं।

पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसिन्निधौ।
शिवलोकंवापनोति शिवेन सह मोदते।।

अर्थ- जो भी प्राणी इस पंचाक्षर स्त्रोत का पाठ प्रत्येक सोमवार को अथवा प्रतिदिन शुद्ध तथा निर्मल मन के साथ करता है वह सभी पापों से मुक्त होकर भगवान शिवजी के पुण्य लोक को प्राप्त होता है तथा भगवान शिव के साथ सुखपूर्वक निवास करता है।