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Shri Krishna Stotram

।। श्रीकृष्ण से प्रार्थना ।।

मूकं करोति वाचालं पंगु लंघयते गिरिम्।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्।।

अर्थ – जिनकी कृपा से गूंगे बहुत बोलने लगते हैं; पंगु पहाड़ को लांघ जाते हैं, उन परमानन्दस्वरूप माधव की मैं वन्दना करता हूँ।

पूर्ण ब्रह्म भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त करने के लिए कोई उपाय है तो वह है केवल भगवान का स्मरण व कीर्तन। भगवान स्वयं नारदजी से कहते हैं–

नाहं वसामि वैकुण्ठे योगिनां हृदये न च।
मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद।।

अर्थ – भगवान तो केवल वहीं विराजते हैं, जहां उनके भक्त उनका गुणगान करते हैं। ‘कलौ केशवकीर्त्तनात्’–कलिकाल में भगवान केशव का कीर्तन ही भवसागर से पार होने का एकमात्र साधन है।
श्रीकृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र  भगवान श्रीशंकराचार्य द्वारा रचित बहुत सुन्दर स्तुति है। बिना जप, बिना सेवा एवं बिना पूजा के भी केवल इस स्तोत्र मात्र के नित्य पाठ से ही श्रीकृष्ण कृपा और भगवान श्रीकृष्ण के चरणकमलों की भक्ति प्राप्त होती है। ये इस प्रकार है :-

श्री कृष्ण कृपा कटाक्ष स्तोत्र-

भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं,
स्वभक्तचित्तरंजनं सदैव नन्दनन्दनम्।
सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकं,
अनंगरंगसागरं नमामि कृष्णनागरम्॥१॥

अर्थ – व्रजभूमि के एकमात्र आभूषण, समस्त पापों को नष्ट करने वाले तथा अपने भक्तों के चित्त को आनन्द देने वाले नन्दनन्दन को सदैव भजता हूँ, जिनके मस्तक पर मोरमुकुट है, हाथों में सुरीली बांसुरी है तथा जो प्रेम-तरंगों के सागर हैं, उन नटनागर श्रीकृष्णचन्द्र को नमस्कार करता हूँ।

मनोजगर्वमोचनं विशाललोललोचनं,
विधूतगोपशोचनं नमामि पद्मलोचनम्
करारविन्दभूधरं स्मितावलोकसुन्दरं,
महेन्द्रमानदारणं नमामि कृष्ण वारणम्॥२॥

अर्थ – कामदेव का मान मर्दन करने वाले, बड़े-बड़े सुन्दर चंचल नेत्रों वाले तथा व्रजगोपों का शोक हरने वाले कमलनयन भगवान को मेरा नमस्कार है, जिन्होंने अपने करकमलों पर गिरिराज को धारण किया था तथा जिनकी मुसकान और चितवन अति मनोहर है, देवराज इन्द्र का मान-मर्दन करने वाले, गजराज के सदृश मत्त श्रीकृष्ण भगवान को मैं नमस्कार करता हूँ।

कदम्बसूनकुण्डलं सुचारुगण्डमण्डलं,
व्रजांगनैकवल्लभं नमामि कृष्णदुर्लभम्।
यशोदया समोदया सगोपया सनन्दया,
युतं सुखैकदायकं नमामि गोपनायकम्॥३॥

अर्थ – जिनके कानों में कदम्बपुष्पों के कुंडल हैं, जिनके अत्यन्त सुन्दर कपोल हैं तथा व्रजबालाओं के जो एकमात्र प्राणाधार हैं, उन दुर्लभ भगवान कृष्ण को नमस्कार करता हूँ; जो गोपगण और नन्दजी के सहित अति प्रसन्न यशोदाजी से युक्त हैं और एकमात्र आनन्ददायक हैं, उन गोपनायक गोपाल को नमस्कार करता हूँ।

सदैव पादपंकजं मदीय मानसे निजं,
दधानमुक्तमालकं नमामि नन्दबालकम्।
समस्तदोषशोषणं समस्तलोकपोषणं,
समस्तगोपमानसं नमामि नन्दलालसम्॥४॥

अर्थ – जिन्होंने मेरे मनरूपी सरोवर में अपने चरणकमलों को स्थापित कर रखा है, उन अति सुन्दर अलकों वाले नन्दकुमार को नमस्कार करता हूँ तथा समस्त दोषों को दूर करने वाले, समस्त लोकों का पालन करने वाले और समस्त व्रजगोपों के हृदय तथा नन्दजी की वात्सल्य लालसा के आधार श्रीकृष्णचन्द्र को नमस्कार करता हूँ।

भुवो भरावतारकं भवाब्धिकर्णधारकं,
यशोमतीकिशोरकं नमामि चित्तचोरकम्।
दृगन्तकान्तभंगिनं सदा सदालिसंगिनं,
दिने-दिने नवं-नवं नमामि नन्दसम्भवम्॥५॥

अर्थ – भूमि का भार उतारने वाले, भवसागर से तारने वाले कर्णधार श्रीयशोदाकिशोर चित्तचोर को मेरा नमस्कार है। कमनीय कटाक्ष चलाने की कला में प्रवीण सर्वदा दिव्य सखियोंसे सेवित, नित्य नए-नए प्रतीत होने वाले नन्दलाल को मेरा नमस्कार है।

गुणाकरं सुखाकरं कृपाकरं कृपापरं,
सुरद्विषन्निकन्दनं नमामि गोपनन्दनं।
नवीन गोपनागरं नवीनकेलि-लम्पटं,
नमामि मेघसुन्दरं तडित्प्रभालसत्पटम्।।६।।

अर्थ – गुणों की खान और आनन्द के निधान कृपा करने वाले तथा कृपा पर कृपा करने के लिए तत्पर देवताओं के शत्रु दैत्यों का नाश करने वाले गोपनन्दन को मेरा नमस्कार है। नवीन-गोप सखा नटवर नवीन खेल खेलने के लिए लालायित, घनश्याम अंग वाले, बिजली सदृश सुन्दर पीताम्बरधारी श्रीकृष्ण भगवान को मेरा नमस्कार है।

समस्त गोप मोहनं, हृदम्बुजैक मोदनं,
नमामिकुंजमध्यगं प्रसन्न भानुशोभनम्।
निकामकामदायकं दृगन्तचारुसायकं,
रसालवेणुगायकं नमामिकुंजनायकम्।।७।।

अर्थ – समस्त गोपों को आनन्दित करने वाले, हृदयकमल को प्रफुल्लित करने वाले, निकुंज के बीच में विराजमान, प्रसन्नमन सूर्य के समान प्रकाशमान श्रीकृष्ण भगवान को मेरा नमस्कार है। सम्पूर्ण अभिलिषित कामनाओं को पूर्ण करने वाले, वाणों के समान चोट करने वाली चितवन वाले, मधुर मुरली में गीत गाने वाले, निकुंजनायक को मेरा नमस्कार है।

विदग्ध गोपिकामनो मनोज्ञतल्पशायिनं,
नमामि कुंजकानने प्रवृद्धवह्निपायिनम्।
किशोरकान्ति रंजितं दृगंजनं सुशोभितं,
गजेन्द्रमोक्षकारिणं नमामि श्रीविहारिणम्।।८।।

अर्थ – चतुरगोपिकाओं की मनोज्ञ तल्प पर शयन करने वाले, कुंजवन में बढ़ी हुई विरह अग्नि को पान करने वाले, किशोरावस्था की कान्ति से सुशोभित अंग वाले, अंजन लगे सुन्दर नेत्रों वाले, गजेन्द्र को ग्राह से मुक्त करने वाले, श्रीजी के साथ विहार करने वाले श्रीकृष्णचन्द्र को नमस्कार करता हूँ।

श्री कृष्ण कृपा कटाक्ष स्तोत्र पाठ का फल:-

श्री कृष्ण कृपा कटाक्ष स्तोत्र पाठ का फल अनंत है।

यदा तदा यथा तथा तथैव कृष्णसत्कथा,
मया सदैव गीयतां तथा कृपा विधीयताम्।
प्रमाणिकाष्टकद्वयं जपत्यधीत्य यः पुमान्,
भवेत्स नन्दनन्दने भवे भवे सुभक्तिमान॥९॥

अर्थ –  प्रभो! मेरे ऊपर ऐसी कृपा हो कि जहां-कहीं जैसी भी परिस्थिति में रहूँ, सदा आपकी सत्कथाओं का गान करूँ। जो पुरुष इन दोनों-राधा कृपाकटाक्ष व श्रीकृष्ण कृपाकटाक्ष अष्टकों का पाठ या जप करेगा, वह जन्म-जन्म में नन्दनन्दन श्यामसुन्दर की भक्ति से युक्त होगा और उसको साक्षात् श्रीकृष्ण मिलते हैं।