
अध्याय 1 – अर्जुनविषादयोग
श्लोक 34
आचार्याः पितरः पुत्रास्तथैव च पितामहाः ।
मातुलाः श्वशुराः पौत्राः श्यालाश्च संबंधिनस्तथा॥३४॥
हिन्दी भावार्थ:
(हे कृष्ण!) गुरुजन, पिता, पुत्र, पितामह, मामा, ससुर, पौत्र, साले और अन्य संबंधी — ये सब हमारे सामने खड़े हैं।
सरल व्याख्या / विस्तार:
अर्जुन श्रीकृष्ण से कह रहे हैं —
“हे माधव! इस युद्ध में जो मेरे सामने खड़े हैं, वे कोई पराए नहीं, बल्कि मेरे गुरु, पिता, पितामह, पुत्र, मामा, ससुर, पौत्र, साले और अन्य आत्मीय संबंधी हैं। यह देखकर मेरा हृदय व्याकुल हो रहा है। क्या इन अपनों को मारकर मैं कोई धर्म या यश प्राप्त कर पाऊँगा?”
इस श्लोक में अर्जुन अपने मन की भावनात्मक उलझन और गहन ममता को प्रकट कर रहे हैं। युद्ध को लेकर वह मानसिक रूप से टूट रहे हैं क्योंकि सामने खड़े शत्रु वास्तव में उनके परिवार के ही सदस्य हैं।
दार्शनिक संकेत:
- जब कर्म और कर्तव्य धर्म के मार्ग पर चलना हो, तो उससे जुड़ी व्यक्तिगत भावनाएँ अक्सर द्वंद्व का कारण बनती हैं।
- अर्जुन का यह मोह दर्शाता है कि मनुष्य जब तक केवल रक्त संबंधों के आधार पर निर्णय करता है, वह न्याय और धर्म के मार्ग से विचलित हो सकता है।
- गीता का यही आरंभिक उद्देश्य है — अर्जुन को मोह से मुक्त करके धर्म के मार्ग पर स्थापित करना।






