
अध्याय 1 – अर्जुनविषादयोग
श्लोक 39
येषामार्थे काङ्क्षितं न राज्यं न सुखानि च ।
तस्मात्स्वे विषये मनसः प्रवृत्तिर्यवेक्षम ॥३९॥
हिन्दी भावार्थ (भाव के अनुसार):
जिनके लिए न हमें राज्य की कामना है, न सुख की — जब वे ही हमारे अपने लोग युद्धभूमि में खड़े हैं, तो हमारे मन का झुकाव इस युद्ध की ओर कैसे हो सकता है?
सरल व्याख्या / विस्तार:
अर्जुन इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण से कह रहे हैं कि —
“हे कृष्ण! जिन अपनों के लिए हम राज्य, सुख, और ऐश्वर्य की आकांक्षा करते हैं, जब वही लोग हमारे विरोध में खड़े हों, और उनके बिना वो राज्य व्यर्थ हो — तो मेरा मन अपने कर्तव्य, यानी युद्ध, की ओर प्रवृत्त नहीं हो रहा है।”
यह अर्जुन के विषाद (मन की शंका, मोह और दुख) को दर्शाता है। उन्हें धर्म और माया के बीच स्पष्ट रास्ता नहीं दिख रहा।
दार्शनिक संकेत:
- जब मूल उद्देश्य (संबंध, करुणा, मानवता) समाप्त हो जाए, तो साधन (जैसे राज्य, धन, युद्ध) भी अर्थहीन हो जाते हैं।
- अर्जुन का यह द्वंद्व हमें बताता है कि केवल कर्तव्यबोध ही अंतिम मार्गदर्शक होना चाहिए, न कि मोह या शोक।






