
अध्याय 1 – अर्जुनविषादयोग
श्लोक 42
संकरः स एव कुलघ्नानां जातिश्च कलत्रवर्जिनाम् ।
पतन्ति पितरः ह्येतेषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः ॥४२॥
हिंदी भावार्थ:
वर्णसंकर संतति केवल कुलघ्नों (कुल का नाश करने वालों) के कारण ही उत्पन्न होती है और उन स्त्रियों की संततियाँ भी भ्रष्ट हो जाती हैं जिनके पति मारे जा चुके होते हैं। परिणामस्वरूप, जिन पूर्वजों को उनके वंशजों से श्राद्ध व पिण्डदान प्राप्त होना था, वे भी अधोगति को प्राप्त होते हैं क्योंकि पिण्डोदक की परंपरा नष्ट हो जाती है।
सरल व्याख्या / विस्तार:
यह श्लोक अर्जुन के कर्म-निर्णय में गहन दुविधा को दर्शाता है। युद्ध के परिणामों को लेकर अर्जुन गहरे चिंतन में हैं। वे कहते हैं:
“हे कृष्ण! जब युद्ध में अनेक कुलों के पुरुष नष्ट हो जाएँगे, तब स्त्रियाँ विधवा होंगी। विधवाओं की स्थिति में उनके वंशज ठीक प्रकार से नहीं पल पाएँगे, जिससे ‘वर्णसंकर’ – यानी वर्ण और कुल परंपराओं का मिश्रण और पतन होगा।”
यहाँ अर्जुन विशेष रूप से उस सामाजिक व्यवस्था की चिंता कर रहे हैं जिसमें:
- कुल और जाति की शुद्धता को बनाए रखना एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक और सामाजिक कर्तव्य माना जाता था।
- यदि ऐसा नहीं होता, तो भविष्य की पीढ़ियाँ परंपराओं से विमुख हो जाएँगी।
- और यदि कोई संतान अपने पितरों (पूर्वजों) का श्राद्ध, पिंडदान और जल तर्पण न करे, तो पितरों की आत्माएँ अधर में लटक जाएँगी – यानी उन्हें मोक्ष नहीं मिलेगा।
अर्जुन इसी भावनात्मक और धार्मिक संकट के कारण युद्ध करने से पीछे हटने की बात कर रहे हैं। वे सोचते हैं कि अगर मेरी वजह से कुलों का नाश होता है, तो मैं अनगिनत पापों का भागी बनूँगा।
गूढ़ दर्शन:
यह श्लोक न केवल सामाजिक व्यवस्था के पतन की ओर संकेत करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि अर्जुन केवल व्यक्तिगत दुख या हार के डर से युद्ध नहीं टाल रहे — वे धर्म, संस्कृति, और पूर्वजों की आत्मा की शांति को लेकर भी चिंतित हैं। यह अर्जुन के चरित्र की गहराई को दर्शाता है — एक ऐसा योद्धा जो केवल शस्त्र से नहीं, बल्कि विचारों से भी गहरे युद्ध कर रहा है।






