
अध्याय 1 – अर्जुनविषादयोग
श्लोक 5
धृष्टकेतुश्चेकितानः काशिराजश्च वीर्यवान् ।
पुरुजित्कुन्तिभोजश्च शैब्यश्च नरपुङवः ॥५॥
संजय युद्धभूमि का वर्णन करते हुए कुरुक्षेत्र के मैदान में पांडवों की ओर से खड़े महान योद्धाओं की सूची गिनवाता है। वह बताता है कि वहां धृष्टकेतु, चेकितान, काशिराज जैसे तेजस्वी वीर मौजूद हैं। इनके अलावा पुरुजित, कुन्तिभोज, और शैब्य जैसे श्रेष्ठ योद्धा, जिन्हें “नरपुङव” — यानी मनुष्यों में श्रेष्ठ कहा गया है — वे भी युद्ध के लिए उपस्थित हैं।
परन्तु यह श्लोक केवल नामों की सूची नहीं है।
इसमें एक गहरा मनौवैज्ञानिक संदेश छिपा है —
दुर्योधन, जो अपने पक्ष की शक्ति से अनभिज्ञ नहीं था, फिर भी वह पांडवों के शिविर की वीरता को देखकर भीतर से डगमगाता हुआ दिखता है। वह उन योद्धाओं का नाम ले-लेकर अपने गुरु द्रोणाचार्य को यह जताने का प्रयास कर रहा है कि सामने कितने भयानक और पराक्रमी योद्धा खड़े हैं।
यह श्लोक दुर्योधन के मानसिक असंतुलन और भय का प्रतीक है।
वह बार-बार शौर्यवान योद्धाओं का नाम लेता है — मानो अपने मन को समझा रहा हो कि “हम अब भी जीत सकते हैं”, लेकिन वास्तविकता यह है कि उसका विश्वास डगमगा चुका है।
यह श्लोक यह भी दर्शाता है कि जब व्यक्ति अधर्म के मार्ग पर होता है, तो उसे सामने खड़े धर्मरथियों की उपस्थिति ही डराने लगती है।
यथार्थ में डर केवल शक्ति से नहीं, धर्म की शक्ति से होता है — क्योंकि धर्म का संकल्प शस्त्रों से भी बड़ा होता है।






