
अध्याय 1 – अर्जुनविषादयोग
श्लोक 6
युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान् ।
सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः ॥६॥
भावार्थ / गूढ़ व्याख्या:
इस श्लोक में संजय पांडव पक्ष के और भी पराक्रमी योद्धाओं की चर्चा करता है —
इनमें हैं:
- युधामन्यु – जो विक्रम और पराक्रम में अद्वितीय हैं,
- उत्तमौजा – जिनमें अद्भुत बल और वीरता है,
- सौभद्र – अर्थात अभिमन्यु, अर्जुन का तेजस्वी पुत्र, जो मात्र सोलह वर्ष की आयु में चक्रव्यूह भेदन में सक्षम है,
- और द्रौपदी के पाँचों पुत्र – जिन्हें एक साथ द्रौपदेय कहा गया है। वे सभी महायोद्धा हैं।
इन सभी को “महारथी” कहा गया है — एक ऐसा योद्धा जो अकेले हजारों योद्धाओं से लड़ने की क्षमता रखता है।
गहन भावार्थ
इस श्लोक में दुर्योधन की अंदरूनी घबराहट और असुरक्षा फिर से स्पष्ट होती है।
वह बार-बार पांडवों की सेना के बलवान योद्धाओं का नाम ले रहा है — न सिर्फ यह बताने के लिए कि वे कौन हैं, बल्कि अपने मन को तसल्ली देने के लिए कि “मुझे डरने की जरूरत नहीं है”, जबकि वास्तविकता यह है कि उसके शब्दों में भय छुपा हुआ है।
“सौभद्र” यानी अभिमन्यु का उल्लेख यह बताता है कि पांडवों की शक्ति केवल पुराने अनुभवी योद्धाओं में ही नहीं, बल्कि नई पीढ़ी में भी है।
“द्रौपदेय” — पांचों पुत्रों का एक साथ वर्णन यह दर्शाता है कि धर्म की परंपरा पांडवों में आगे भी जारी है।
यह श्लोक हमें यह भी सिखाता है कि जब युद्ध धर्म और अधर्म के बीच होता है, तो धर्म के पक्ष में केवल अस्त्र-शस्त्र नहीं होते, बल्कि नैतिकता, परंपरा, और अगली पीढ़ी का उत्साह भी होता है।
हर वह योद्धा जो धर्म के पक्ष में खड़ा है — वही सच्चा “महारथी” है।






