
अध्याय 1 – अर्जुनविषादयोग
श्लोक 7
अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम ।
नायका मम सैन्यस्य सञ्ज्ञार्थं तानब्रवीमि ते ॥७॥
हिंदी भावार्थ
हे ब्राह्मणश्रेष्ठ (संजय द्वारा धृतराष्ट्र को संबोधित), अब आप हमारी सेना में जो-जो प्रमुख और विशिष्ट योद्धा हैं, उन्हें ध्यानपूर्वक सुनिए। मैं आपको अपनी सेना के नायकों के नाम उनकी पहचान के लिए बताता हूँ।
गूढ़ व्याख्या
इस श्लोक में कौरव पक्ष के महान योद्धाओं की चर्चा प्रारंभ होती है। दुर्योधन, जो पहले पांडवों की सेना के प्रमुख योद्धाओं का उल्लेख कर रहा था, अब अपने पक्ष के बलशाली और प्रमुख योद्धाओं का उल्लेख करता है।
वह धृतराष्ट्र से कहता है –
“अब मेरी ओर से भी कुछ विशिष्ट और पराक्रमी योद्धा हैं, जो मेरी सेना के नेता और प्रमुख योद्धा हैं। उन्हें भी आप ध्यानपूर्वक जान लीजिए।”
यहाँ ‘सञ्ज्ञार्थम्’ का अर्थ है – पहचान और परिचय देने हेतु।
दुर्योधन अपने पक्ष की ताकत को दिखाने के लिए यह सब कह रहा है कि उसकी सेना भी किसी से कम नहीं है। इसका एक मनोवैज्ञानिक कारण भी हो सकता है — उसे भीम और अर्जुन जैसे पांडव योद्धाओं से भय है, इसलिए वह अपने पक्ष के योद्धाओं की शक्ति को अपने मन को आश्वस्त करने के लिए गिनाता है।
संदेश
इस श्लोक से यह स्पष्ट होता है कि युद्ध से पहले दोनों पक्षों की शक्तियों का तुलनात्मक मूल्यांकन चल रहा है। यह मानव स्वभाव को भी दर्शाता है — जब हमें भय होता है, तो हम अपनी उपलब्धियों और समर्थकों की गिनती करके आत्मविश्वास प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।






