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Maa Durga Stotra | माँ दुर्गा स्तोत्र | PDF

  • Stotra
  • सितम्बर 14, 2023

Maa Durga Stotra

जय भगवति देवि नमो वरदे जय पापविनाशिनि बहुफलदे।
जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे।।

अर्थ – हे भगवती देवी माँ दुर्गा!! आपकी जय हो। आपको हमारा नमन है। आप हमें वरदान दीजिये। हे हमारे पापों का नाश करने वाली माँ अम्बे!! आपकी जय हो। आप हमें मनवांछित फल प्रदान करें। आपने शुम्भ-निशुम्भ नामक दैत्यों का सिर अपने गले में हार के रूप में पहना हुआ है। इसके लिए आपको हमारा प्रणाम है। आप हम सभी के दुखों को दूर करने वाली माँ हैं।

जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे जय पावकभूषितवक्त्रवरे।
जय भैरवदेहनिलीनपरे जय अन्धकदैत्यविशोषकरे।।

अर्थ – आपके दोनों नेत्र स्वयं चन्द्रमा व सूर्य के समान प्रकाश के स्रोत हैं। आपके अंदर अग्नि जैसी ऊर्जा है और आप उसी की भांति ही सभी जगह व्याप्त हो। आप ही माँ भैरवी के रूप में हो और उस रूप में सभी का कल्याण करती हो। आपने ही अन्धक नाम के दैत्य का वध कर दिया था।

जय महिषविमर्दिनि शूलकरे जय लोकसमस्तकपापहरे।
जय देवि पितामहविष्णुनते जय भास्करशक्रशिरोवनते।।

अर्थ – आपने ही महिषासुर नामक राक्षस का उसकी सेना सहित वध कर दिया था। आपने ही अपने पराक्रम से अधर्म का नाश कर दिया था। आप ही सभी लोकों के पाप को दूर करने वाली हैं। आपको तो पितामह ब्रह्मा व भगवान विष्णु भी प्रणाम करते हैं। सूर्य व इंद्र देव भी आपकी ही आराधना करते हैं।

जय षण्मुखसायुधईशनुते जय सागरगामिनि शम्भुनुते।
जय दुःखदरिद्रविनाशकरे जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे।।

अर्थ – सभी देवता अपने मुख से आपका गुणगान करते हैं और आपकी जय-जयकार करते हैं। आप सागर में समा जाती हो और भगवान शिव भी आपको धारण करते हैं। आप ही सभी का दुःख व दरिद्रता दूर करने वाली हो। आप ही मनुष्य को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद देकर उनका कुल आगे बढ़ाने में सहयोग करती हो।

जय देवि समस्तशरीरधरे जय नाकविदर्शिनि दुःखहरे।
जय व्याधिविनाशिनि मोक्ष करे जय वाञ्छितदायिनि सिद्धिवरे।।

अर्थ – आप हर मनुष्य के शरीर में वास करती हो अर्थात यह सब आपका ही बनाया हुआ है। आप ही हम सभी के दुःख दूर करती हो और हमें स्वर्ग लोक के दर्शन करवाती हो। आप ही हम सभी की पीड़ा को दूर कर हमें मोक्ष प्रदान करती हो। आप ही हमें मनवांछित फल प्रदान करने वाली और रिद्धि-सिद्धि देने वाली हो।

एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं य: पठेन्नियतः शुचिः।
गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा।।

अर्थ – जो कोई भी भक्तगण शुद्ध स्थान पर या अपने घर पर ही किसी साफ जगह पर, स्नान करके तथा निर्मल मन के साथ महर्षि वेदव्यास जी द्वारा रचित इस दुर्गा स्तोत्र का पाठ करता है, उस पर अवश्य ही माँ दुर्गा की कृपा दृष्टि होती है और माँ उससे प्रसन्न रहती हैं।

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