
नवरात्रि के पहले दिन माँ दुर्गा के प्रथम स्वरूप माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इन्हें पहाड़ों की पुत्री कहा जाता है, क्योंकि इनका जन्म हिमालय राज के यहाँ हुआ था। यह देवी शक्ति, स्थिरता और अडिग संकल्प की प्रतीक हैं। माँ शैलपुत्री नंदी पर सवार रहती हैं और उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल तथा बाएँ हाथ में कमल होता है। इनकी आराधना करने से मन को स्थिरता और शक्ति प्राप्त होती है।
माँ शैलपुत्री की पूजा विधि
नवरात्रि का पहला दिन बहुत ही पवित्र और महत्वपूर्ण होता है। इस दिन विशेष रूप से कलश स्थापना की जाती है और माँ शैलपुत्री का आवाहन किया जाता है।
1. सुबह की तैयारी
- ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- घर के पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।
- माँ दुर्गा की प्रतिमा या चित्र को एक पवित्र स्थान पर स्थापित करें।
2. कलश स्थापना
- मिट्टी के पात्र में जौ बोकर उस पर जल से भरा कलश रखें।
- कलश के ऊपर आम के पत्ते रखें और नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर रखें।
- कलश पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं और उसमें गंगा जल, अक्षत, सुपारी और सिक्का डालें।
3. माँ शैलपुत्री की पूजा विधि
- सबसे पहले माँ शैलपुत्री का ध्यान करें।
- उन्हें अक्षत, फूल, चंदन, रोली और सिंदूर अर्पित करें।
- घी का दीपक जलाकर कपूर आरती करें।
- माँ शैलपुत्री को सफेद रंग की चीज़ों का भोग लगाएं, जैसे दूध, खीर या मिश्री।
- दुर्गा सप्तशती का पाठ करें और माँ के मंत्रों का जाप करें।
माँ शैलपुत्री कथा
माँ का जन्म राजा दक्ष की पुत्री सती के रूप में हुआ था। सती ने अपने पिता द्वारा भगवान शिव के अपमान से दुखी होकर योग अग्नि में आत्मदाह कर लिया। अगले जन्म में वह हिमालय राज के घर में जन्मीं और शैलपुत्री के रूप में जानी गईं। बाद में उन्होंने कठिन तपस्या कर भगवान शिव को पुनः प्राप्त किया।
इस कथा से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सच्ची भक्ति और तपस्या से हर संकट को पार किया जा सकता है।
माँ शैलपुत्री की पूजा नवरात्रि के पहले दिन करना अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है। यह सकारात्मक ऊर्जा, आत्मबल, और मन की शांति प्रदान करती है। माता की कृपा से भक्तों के जीवन में सुख, समृद्धि, और सफलता का आगमन होता है। अतः नवरात्रि के प्रथम दिवस पर श्रद्धा और भक्ति के साथ माँ शैलपुत्री की पूजा करें और उनके दिव्य आशीर्वाद को प्राप्त करें।
जय माता दी!
माँ शैलपुत्री का मंत्र और जप विधि
माँ शैलपुत्री की पूजा में निम्नलिखित मंत्रों का जाप करना विशेष फलदायक माना जाता है:
1. ध्यान मंत्र
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
2. बीज मंत्र
ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः।
3. स्तुति मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
इस मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करें, जिससे माँ शैलपुत्री की कृपा प्राप्त हो।
माँ शैलपुत्री की पूजा के लाभ
माँ की उपासना से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। यह साधक को आध्यात्मिक शक्ति, मानसिक स्थिरता, और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करती हैं।
1. आत्मबल और संकल्प शक्ति में वृद्धि
माँ शैलपुत्री अडिग संकल्प और शक्ति की देवी हैं। इनकी पूजा से मनोबल बढ़ता है और व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम होता है।
2. पारिवारिक सुख और समृद्धि
जो लोग परिवार में सुख-शांति और समृद्धि की कामना करते हैं, उन्हें माँ की उपासना करनी चाहिए। इनकी कृपा से पारिवारिक जीवन में प्रेम और सामंजस्य बना रहता है।
3. शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति
माँ शैलपुत्री की कृपा से मानसिक तनाव, अवसाद और चिंता दूर होती है। यह शरीर को ऊर्जा प्रदान करती हैं और बीमारियों से बचाती हैं।
4. विवाह और दांपत्य जीवन में शुभता
कुंवारी कन्याओं के लिए माँ शैलपुत्री की पूजा विशेष रूप से लाभकारी मानी जाती है। इससे विवाह में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और सुखद दांपत्य जीवन प्राप्त होता है।
5. आध्यात्मिक उन्नति
जो व्यक्ति आत्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति के लिए साधना कर रहे हैं, उनके लिए माँ शैलपुत्री की उपासना बहुत महत्वपूर्ण होती है। यह साधक को आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने में सहायता करती हैं।
नवरात्रि व्रत और आहार नियम
- पहले दिन व्रत रखने वाले भक्त केवल फलाहार करें और सात्विक भोजन ग्रहण करें।
- प्याज, लहसुन और तामसिक भोजन से बचें।
- केवल सेंधा नमक का प्रयोग करें और हल्का भोजन करें।
- दिन में एक बार भोजन करना उत्तम माना जाता है।
नवरात्रि में घटस्थापना का विशेष महत्व
नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना (कलश स्थापना) का विशेष महत्व होता है। यह शक्ति की प्रतीक है और इसे सही मुहूर्त में स्थापित करना बहुत आवश्यक है। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा, शांति, और समृद्धि आती है।