maa-skandmata-stotra

Maa Skandmata Stotra

॥ ध्यान मंत्र ॥

वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्वनीम्॥

अर्थ — मैं मनोवांछित लाभ प्राप्त करने के लिए, सभी तरह के मनोरथों को पूरा करने वाली, मस्तक पर अर्ध चंद्र को धारण करने वाली, सिंह की सवारी करने वाली, चार भुजाओं वाली और यश प्रदान करने वाली स्कंदमाता, की वंदना करता हूँ।

धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्।
अभय पद्मयुग्म करांदक्षिण उरूपुत्रधराम् भजेम्॥

अर्थ — स्कंदमाता उजले रंग की हैं और हमारे विशुद्ध चक्र में निवास कर उसे मजबूत बनाती हैं। वे दुर्गा माता का पांचवां रूप हैं जिनके तीन नेत्र हैं। इन्होने अपनी चार भुजाओं में से दो में कमल पुष्प पकड़ रखा है, एक से कार्तिकेय को पकड़ा हुआ है जबकि एक हाथ अभय मुद्रा में है।

पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानांलकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल धारिणीम्॥

अर्थ — स्कंद माता पीले रंग के वस्त्र धारण करती हैं। उनके मुख पर स्नेह के भाव हैं और उन्होंने नाना प्रकार के आभूषणों से अपना अलंकार किया हुआ है। उन्होंने अपने शरीर पर मंजीर, हार, केयूर, किंकिणी व रत्नों से जड़ित कुंडल धारण किये हुए हैं।

प्रफुल्लवंदना पल्ल्वांधरा कांतकपोलापीन पयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥

अर्थ — मैं प्रसन्न मन के साथ स्कन्दमाता की आराधना करता हूँ। उनका स्वरुप बहुत ही सुंदर, कमनीय, रमणीय व वैभव युक्त है। तीनों लोकों में उनकी पूजा की जाती है।

॥ स्तोत्र ॥

नमामि स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम्।
समग्रतत्वसागररमपारपार गहराम्॥

अर्थ — स्कंद अर्थात कार्तिकेय को ली हुई स्कंदमाता को मेरा नमन है। सृष्टि के सभी तत्व उन्हीं के अंदर समाये हुए हैं। स्कंदमाता सागर की गहराइयों में भी वास करती हैं और हमें ऊर्जा प्रदान करती हैं।

शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रीन्तिभास्कराम्॥

अर्थ — वे शिव की अर्धांगिनी हैं। वे ही हम सभी को प्रकाश देती हैं। उन्होंने अपने मस्तक पर सोने का मुकुट पहन रखा है। उनके मस्तक पर सूर्य के समान आभा है जो संपूर्ण विश्व में उजाला करती है।

महेन्द्रकश्यपार्चिता सनंतकुमाररसस्तुताम्।
सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलादभुताम्॥

अर्थ — वे सभी इन्द्रियों की स्वामिनी हैं और ब्रह्म पुत्रों के द्वारा पूजनीय हैं अर्थात सभी वेद भी उनकी महिमा का वर्णन करते हैं। देवता व राक्षस दोनों ही मातारानी के इस निर्मल व आदि रूप की आराधना करते हैं।

अतर्क्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम्।
मुमुक्षुभिर्विचिन्तता विशेषतत्वमुचिताम्॥

अर्थ — स्कंदमाता देवी हमारे सभी तरह के दोषों व विकारों का निवारण कर देती हैं। वे हमारे शरीर व मन को स्वस्थ रखने का कार्य करती हैं और हमारा उद्धार कर देती हैं।

नानालंकार भूषितां मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्।
सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेन्दमारभुषताम्॥

अर्थ — स्कंद माता ने तरह-तरह के आभूषणों से अपना श्रृंगार किया हुआ है। इंद्र देव भी उनकी आराधना करते हैं। वे सृष्टि के सभी तत्वों में समाहित हैं और सभी लोकों का भार उन्हीं के ऊपर ही है।

सुधार्मिकौपकारिणी सुरेन्द्रकौरिघातिनीम्।
शुभां पुष्पमालिनी सुकर्णकल्पशाखिनीम्॥

अर्थ — स्कंदमाता के द्वारा ही हमें बुद्धि व विद्या मिलती है तथा हम उसका सदुपयोग कर पाते हैं। वे हमारी अज्ञानता का नाश कर देती हैं। वे कमल पुष्प में निवास करने वाली और शुभ फल देने वाली हैं।

तमोन्धकारयामिनी शिवस्वभाव कामिनीम्।
सहस्त्र्सूर्यराजिका धनज्ज्योगकारिकाम्॥

अर्थ — स्कंदमाता देवी इस सृष्टि के अंधकार को दूर कर देती हैं और उनका स्वभाव भगवान शिव के जैसा ही है। वे कामना करने योग्य हैं। उनके अंदर करोड़ो सूर्य के समान शक्ति है और उन्हीं से ही इस पृथ्वी पर अर्थ का महत्व है।

सुशुध्द काल कन्दला सुभडवृन्दमजुल्लाम्।
प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरं सतीम्॥

अर्थ — स्कंद माता अनादिकाल से हैं और इस सृष्टि की रचयिता हैं। उन्होंने ही हम सभी को प्रकाश देने का कार्य किया है। वे ही प्रजा का हित करने वाली, उनकी स्वामिनी व माता हैं। हम सभी स्कंद माता को नमन करते हैं।

स्वकर्मकारिणी गति हरिप्रयाच पार्वतीम्।
अनन्तशक्ति कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम्॥

अर्थ — वे हर बिगड़े हुए काम को बना देती हैं, वे हमेशा गतिमान हैं, हरि का काम करने वाली और माता पार्वती का रूप हैं। उनके अंदर अनंत शक्ति समाहित है और उनका तेज सबसे ज्यादा है। वे ही हमें यश, धन, भक्ति व मुक्ति का मार्ग सुझाती हैं।

पुनःपुनर्जगद्वितां नमाम्यहं सुरार्चिताम्।
जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवीपाहिमाम्॥

अर्थ — उन्होंने ही इस जगत को सब कुछ दिया है और वे इस जगत के सभी प्राणियों सहित देवताओं के द्वारा वंदना करने योग्य है। वे ही हम सभी की ईश्वरी, तीनों लोकों में व्याप्त व आदिशक्ति हैं।