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Panchami Shraddha 2025 | पंचमी श्राद्ध तिथि, पूजा विधि और धार्मिक महत्व | PDF

सनातन धर्म में श्राद्ध का अत्यंत पवित्र स्थान है। पितृपक्ष के 15 दिनों में हर तिथि विशेष पितरों को समर्पित होती है। इसी क्रम में पितृपक्ष का पाँचवाँ दिन पंचमी श्राद्ध कहलाता है। इसे कुंवारा पंचमी भी कहा जाता है।

यह दिन उन पितरों की आत्मा की शांति के लिए होता है, जिनका निधन अविवाहित अवस्था में हुआ था। ऐसे पितरों के श्राद्ध से उनकी आत्मा को तृप्ति और शांति प्राप्त होती है।

2. पंचमी श्राद्ध 2025 कब है?

हिंदू पंचांग के अनुसार, वर्ष 2025 में पंचमी श्राद्ध 11 सितंबर 2025, गुरुवार को मनाया जाएगा।
इस दिन परिवारजन स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करते हैं और पितरों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान एवं ब्राह्मण भोजन कराते हैं।

3. पंचमी श्राद्ध का महत्व

(क) अविवाहित पितरों की आत्मा की शांति
  • पंचमी श्राद्ध का मुख्य उद्देश्य उन आत्माओं को शांति और संतोष प्रदान करना है, जिनका विवाह नहीं हुआ था।
  • अविवाहित अवस्था में मृत्यु प्राप्त पितरों को यह श्राद्ध विशेष रूप से मोक्ष की ओर अग्रसर करता है।
(ख) धार्मिक मान्यता
  • शास्त्रों में कहा गया है कि पंचमी तिथि उन पितरों को समर्पित है जिन्होंने गृहस्थ जीवन का अनुभव नहीं किया।
  • इस दिन के अनुष्ठान करने से पितरों को संतोष मिलता है और वे वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
(ग) पितृऋण की पूर्ति

हर व्यक्ति तीन प्रकार के ऋण लेकर जन्म लेता है – देवऋण, ऋषिऋण और पितृऋण।

  • पितृऋण की पूर्ति का सबसे सशक्त माध्यम श्राद्ध है।
  • पंचमी श्राद्ध करके हम अपने अविवाहित पितरों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं।
(घ) आशीर्वाद और समृद्धि

शास्त्रों में कहा गया है –
“पितरः प्रसन्ना भवन्ति, तेषां कृपया सर्वं शुभं भवति।”
अर्थात, पितरों की प्रसन्नता से घर-परिवार में सुख, शांति और समृद्धि आती है।

4. पंचमी श्राद्ध के अनुष्ठान

(क) प्रातःकाल की तैयारी
  • सूर्योदय से पूर्व स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • घर या आंगन में कुशा का आसन बिछाकर पितरों का स्मरण करें।
(ख) पितृ तर्पण
  • पवित्र नदी, तालाब या कुएँ में तिल और जल का तर्पण करें।
  • पितरों का नाम, गोत्र और तिथि लेकर जल अर्पित करें।
(ग) पिंडदान
  • जौ, चावल, तिल और घी से बने पिंड पितरों को अर्पित करें।
  • यह क्रिया आत्मा को तृप्त करने का सबसे प्रभावी उपाय मानी जाती है।
(घ) देवताओं की पूजा
  1. भगवान शिव – पितृमोक्षदाता माने गए हैं। शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र चढ़ाएँ।
  2. मंत्र: “ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्…”
  3. भगवान विष्णु – पितरों के रक्षक। विष्णु सहस्रनाम या विष्णु चालीसा का पाठ करें।
  4. शनिदेव – यदि यह दिन शनिवार को आए तो शनिदेव की पूजा अवश्य करें।
  5. सरसों का तेल, काले तिल, और नीले वस्त्र चढ़ाएँ।
  6. मंत्र: “ॐ शं शनैश्चराय नमः”
(ङ) ब्राह्मण भोजन और दान
  • ब्राह्मणों को आदरपूर्वक भोजन कराएँ और वस्त्र, अनाज, दक्षिणा आदि का दान करें।
  • शास्त्रों के अनुसार, ब्राह्मण भोजन से ही पितर संतुष्ट होते हैं।
(च) विशेष परहेज
  • इस दिन मांस, शराब और तामसिक भोजन वर्जित है।
  • विवाद, झगड़े या अपशब्दों से बचना चाहिए।
  • सात्त्विक आहार और शुद्धता का पालन करें।

5. धार्मिक मान्यताएँ और शास्त्रीय संदर्भ

  • मनुस्मृति और गरुड़ पुराण में श्राद्ध के महत्व का विस्तार से वर्णन है।
  • मान्यता है कि पितृपक्ष में पितरों की आत्माएँ पृथ्वी पर आती हैं और तर्पण की अपेक्षा करती हैं।
  • जो लोग इन दिनों श्राद्ध करते हैं, उन्हें पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है, और उपेक्षा करने वालों को जीवन में बाधाएँ झेलनी पड़ती हैं।

6. आधुनिक समय में पंचमी श्राद्ध का महत्व

  • आज भी पंचमी श्राद्ध उतना ही आवश्यक है जितना प्राचीन काल में था।
  • यह हमें हमारी जड़ों और संस्कृति से जोड़ता है।
  • परिवार में एकता और परंपरा की भावना बनाए रखता है।
  • यह आने वाली पीढ़ियों को संस्कार और कृतज्ञता की सीख देता है।

पंचमी श्राद्ध केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह अविवाहित पितरों के प्रति प्रेम, सम्मान और कृतज्ञता व्यक्त करने का एक पवित्र अवसर है।
इस दिन विधिपूर्वक श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण करने से पितर प्रसन्न होकर वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। परिणामस्वरूप घर-परिवार में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।

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