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Purnabramha Stotram | पूर्णब्रह्म स्तोत्रम् | PDF

  • Stotra
  • नवम्बर 23, 2024

पूर्णब्रह्म स्तोत्रम्

|| श्लोक 1 ||

पूर्णचन्द्रमुखं निलेन्दु रूपम्
उद्भाषितं देवं दिव्यं स्वरूपम्
पूर्णं त्वं स्वर्णं त्वं वर्णं त्वं देवम्
पिता माता बंधु त्वमेव सर्वम्।
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्।
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्॥

अर्थ: हे भगवान जगन्नाथ! आपका मुख पूर्ण चंद्रमा के समान है और आपका स्वरूप नीले चंद्रमा जैसा मोहक है। आप दिव्य और तेजोमय हैं। आप पूर्ण हैं, स्वर्ण समान शुद्ध हैं, और हर रंग में आप विद्यमान हैं। आप मेरे पिता, माता, और सब कुछ हैं। मैं भक्तिभाव से आपको नमन करता हूँ।

|| श्लोक 2 ||

कुंचितकेशं च संचितवेशम्
वर्तुलस्थूलनयनं ममेशम्
पिनाकनीनाका नयनकोशम्
आकृष्ट ओष्ठं च उत्कृष्ट श्वासम्।
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्।
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्॥

अर्थ: हे मेरे प्रभु! आपके बाल कुंचित हैं, आपका वस्त्र सुसज्जित है। आपकी बड़ी गोल आंखें अत्यंत आकर्षक हैं। आपके नेत्र कमल के समान हैं, और आपके होठों की आभा अद्भुत है। आपकी सांसें भी दिव्यता से परिपूर्ण हैं। मैं भक्तिभाव से आपको नमन करता हूँ।

|| श्लोक 3 ||

नीलाचले चंचलया सहितम्
आदिदेव निश्चलानंदे स्थितम्
आनन्दकन्दं विश्वविन्दुचंद्रम्
नंदनन्दनं त्वम् इन्द्रस्य इन्द्रम्।
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्।
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्॥

अर्थ: हे नीलाचल (पुरी) में निवास करने वाले भगवान! आप आदिदेव हैं, जो निश्चल आनंद में स्थित हैं। आप आनंद के स्रोत हैं और संसार के लिए प्रकाशमय चंद्रमा समान हैं। आप नंद बाबा के पुत्र और इंद्र के भी इंद्र हैं। मैं आपको नमन करता हूँ।

|| श्लोक 4 ||

सृष्टि स्थिति प्रलय सर्वमूळम्
सूक्ष्मातिसुक्ष्मं त्वं स्थूलातिस्थूलम्
कांतिमयानन्तम् अन्तिमप्रान्तम्
प्रशांतकुन्तळं ते मूर्त्तिमंतम्।
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्।
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्॥

अर्थ: आप सृष्टि, पालन और प्रलय के मूल हैं। आप सूक्ष्म से भी सूक्ष्म और स्थूल से भी स्थूल हैं। आपकी आभा अनंत है और आप काल की सीमा से परे हैं। आपके बाल शांतिमय हैं और आपका स्वरूप दिव्यता से भरा हुआ है। मैं आपको नमन करता हूँ।

|| श्लोक 5 ||

यज्ञ तप वेद ज्ञानात् अतीतम्
भावप्रेमछंदे सदावशित्वम्
शुद्धात् शुध्दं त्वं च पूर्णात् पूर्णम्
कृष्णमेघतुल्यम् अमूल्यवर्णम्।
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्।
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्॥

अर्थ: आप यज्ञ, तप और वेद ज्ञान से परे हैं। आप प्रेम और भाव के छंद में सदैव विद्यमान हैं। आप शुद्ध से भी शुद्ध और पूर्ण से भी पूर्ण हैं। आपका स्वरूप कृष्ण मेघ (घनघोर बादल) के समान है और आप अनमोल हैं। मैं आपको नमन करता हूँ।

|| श्लोक 6||

विश्वप्रकाशं सर्वक्लेशनाशम्
मन बुद्धि प्राण श्वासप्रश्वासम्
मत्स्य कूर्म नृसिंह वामनः त्वम्
वराह राम अनंत अस्तित्वम्।
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्।
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्॥

अर्थ: आप विश्व को प्रकाश देने वाले हैं और सभी दुखों का नाश करने वाले हैं। आप मन, बुद्धि, प्राण और सांसों के आधार हैं। आप मत्स्य, कूर्म, नृसिंह, वामन, वराह, राम और अनंत रूपों में प्रकट होते हैं। मैं आपको नमन करता हूँ।

|| श्लोक 7 ||

ध्रुवस्य विष्णु त्वं भक्तस्य प्राणम्
राधापति देव हे आर्त्तत्राणम्
सर्व ज्ञान सारं लोक आधारम्
भावसंचारम् अभावसंहारम्।
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्।
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्॥

अर्थ: आप ध्रुव के भगवान विष्णु हैं और भक्तों के प्राण हैं। हे राधा के पति, आप दुखियों के रक्षक हैं। आप समस्त ज्ञान का सार और इस संसार के आधार हैं। आप भावनाओं को प्रवाहित करते हैं और अभाव (असंतोष) का नाश करते हैं। मैं आपको नमन करता हूँ।

|| श्लोक 8 ||

बलदेव सुभद्रा पार्श्वे स्थितम्
सुदर्शन संगे नित्य शोभितम्
नमामि नमामि सर्वांगे देवम्
हे पूर्णब्रह्म हरि मम सर्वम्।
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्।
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्॥

अर्थ: आप बलराम और सुभद्रा के साथ विराजमान हैं और सुदर्शन चक्र से सुसज्जित हैं। आपकी दिव्य मूर्ति हर समय प्रकाशमान रहती है। हे पूर्णब्रह्म, हे हरि, आप मेरे लिए सब कुछ हैं। मैं आपको बार-बार नमन करता हूँ।

|| श्लोक 9 ||

कृष्णदासहृदि भाव संचारम्
सदा कुरु स्वामी तव किंकरम्
तव कृपा विन्दु हि एक सारम्
अन्यथा हे नाथ सर्व असारम्।
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्।
जगन्नाथ स्वामी भक्तभावप्रेमी नमाम्यहम्॥

अर्थ: हे स्वामी! अपने भक्त कृष्णदास के हृदय में भक्ति का संचार करें। मुझे सदा आपका दास बनाए रखें। आपकी कृपा की एक बूंद ही मेरे लिए सार्थक है; इसके बिना सब व्यर्थ है। हे भगवान, मैं आपको नमन करता हूँ।

यह स्तोत्र भगवान जगन्नाथ के अनंत रूपों, उनकी महिमा, और भक्तों के प्रति उनके प्रेम और करुणा का सुंदर वर्णन करता है। इसका पाठ श्रद्धा और भक्ति से करने पर भगवान जगन्नाथ का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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