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Rishi Panchami | क्या सप्तऋषियों की पूजा से आत्मा शुद्ध होती है? | PDF

Rishi Panchami 2025

ऋषि पंचमी हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण व्रत और पर्व है, जिसे भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस साल 28 अगस्त, 2025 को मनाया जाएगा । यह पर्व विशेष रूप से महिलाओं द्वारा मनाया जाता है, जो इस दिन व्रत रखती हैं और सप्तऋषियों की पूजा करती हैं। ऋषि पंचमी का मुख्य उद्देश्य पिछले जन्मों के या वर्तमान जन्म में किए गए अपवित्र कर्मों से मुक्ति प्राप्त करना और शारीरिक एवं मानसिक शुद्धि प्राप्त करना होता है।

इसे शुद्धि का पर्व भी माना जाता है। इस दिन का महत्व विशेष रूप से उन महिलाओं के लिए होता है, जिन्होंने मासिक धर्म के दौरान किसी प्रकार के नियमभंग किए हों।

ऋषि पंचमी का महत्व

ऋषि पंचमी व्रत का धार्मिक महत्व अत्यधिक है। इसे करने से महिलाओं के द्वारा जाने-अनजाने में किए गए सभी प्रकार के दोष समाप्त हो जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने और सप्तऋषियों की पूजा करने से व्यक्ति पापों से मुक्ति प्राप्त करता है।

ऋषि पंचमी का व्रत विशेष रूप से मासिक धर्म के दौरान हुई अशुद्धियों को शुद्ध करने के लिए किया जाता है। हिन्दू धर्म में मासिक धर्म के समय महिलाओं को कुछ विशेष नियमों का पालन करना होता है, और यदि इन नियमों का पालन नहीं होता तो इसे दोष के रूप में देखा जाता है। ऋषि पंचमी व्रत के माध्यम से इन दोषों को दूर किया जा सकता है।

इस व्रत में सप्तऋषियों – वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, भारद्वाज, विश्वामित्र, और गौतम – की पूजा की जाती है। सप्तऋषि हिन्दू धर्म के प्रमुख ऋषि माने जाते हैं, और उनकी पूजा करने से व्यक्ति को धार्मिक शक्ति और आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। यह व्रत पारिवारिक सुख, शांति और संतोष प्राप्त करने का भी एक माध्यम है। इसे करने से परिवार में शांति और समृद्धि का वास होता है और महिलाओं को शारीरिक और मानसिक शुद्धि प्राप्त होती है।

ऋषि पंचमी व्रत कथा

ऋषि पंचमी से जुड़ी एक पौराणिक कथा भी है, जो इसके महत्व को और अधिक स्पष्ट करती है। एक बार विदर्भ देश में उत्तंक नामक एक ब्राह्मण अपनी पत्नी सुसिला के साथ रहते थे। उनकी एक पुत्री थी, जिसका विवाह योग्य समय पर कर दिया गया। विवाह के कुछ समय बाद उसकी पुत्री विधवा हो गई।

कुछ समय बाद उस पुत्री के शरीर पर कीड़े लग गए, और वह गंभीर कष्ट में पड़ गई। ब्राह्मण ने जब अपनी पत्नी से इसका कारण पूछा, तो उसने बताया कि उनकी पुत्री ने मासिक धर्म के समय कुछ नियमों का पालन नहीं किया था, जिसके कारण उसे यह कष्ट हो रहा है।

इस समस्या से निजात पाने के लिए पुत्री ने ऋषि पंचमी का व्रत किया और सप्तऋषियों की पूजा की। इसके बाद उसे सभी कष्टों से मुक्ति मिली और वह शारीरिक एवं मानसिक रूप से शुद्ध हो गई। यह कथा यह संदेश देती है कि ऋषि पंचमी का व्रत महिलाओं के लिए कितना महत्वपूर्ण है और कैसे यह उनके द्वारा किए गए अपवित्र कर्मों का नाश करता है।

ऋषि पंचमी व्रत विधि

ऋषि पंचमी के दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करती हैं और व्रत का संकल्प लेती हैं। यह व्रत पूर्णतः शुद्धता का प्रतीक होता है, इसलिए महिलाएं इस दिन सफेद या हल्के रंग के वस्त्र धारण करती हैं। पूजा के लिए सप्तऋषियों की मूर्तियां या प्रतीक बनाए जाते हैं और विधिपूर्वक पूजा की जाती है। पूजा में सप्तऋषियों को अक्षत, चंदन, धूप-दीप, और पुष्प अर्पित किए जाते हैं।

पूजन के बाद ऋषि पंचमी की कथा का श्रवण किया जाता है। यह कथा सप्तऋषियों और व्रत के महत्व को उजागर करती है। इसके बाद महिलाएं व्रत की समाप्ति पर सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं। अधिकतर महिलाएं इस दिन फलाहार करती हैं, और कुछ महिलाएं व्रत के दौरान अन्न का त्याग करती हैं। इस दिन लहसुन, प्याज, और तामसिक वस्तुओं का सेवन वर्जित होता है।

ऋषि पंचमी के दिन क्या न करें

ऋषि पंचमी के दिन कुछ विशेष नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। इस दिन कुछ कार्यों को नहीं करने की सलाह दी जाती है, ताकि व्रत और पूजा का पूरा लाभ प्राप्त हो सके। नीचे दिए गए कुछ कार्य हैं जिन्हें ऋषि पंचमी के दिन नहीं करना चाहिए:

  1. अन्न का सेवन: इस दिन अन्न का सेवन वर्जित होता है। महिलाएं विशेष रूप से फलाहार करती हैं या केवल जल ग्रहण करती हैं। अनाज, चावल, और दालों का सेवन न करें।
  2. तामसिक भोजन से परहेज: लहसुन, प्याज, मांस, मछली, और अन्य तामसिक भोजन का सेवन पूरी तरह से वर्जित होता है।
  3. नियमभंग: मासिक धर्म के नियमों का कड़ाई से पालन करना चाहिए। इस दिन किसी भी प्रकार का नियमभंग न करें और शुद्धता का विशेष ध्यान रखें।
  4. सांसारिक कार्यों में लिप्तता: इस दिन सांसारिक और भौतिक कार्यों में लिप्त न हों। अधिक समय भगवान की पूजा और ध्यान में बिताएं।
  5. निंदा और अपशब्द: किसी की निंदा, झूठ बोलना, या अपशब्द का प्रयोग करने से बचें। मन, वचन, और कर्म की शुद्धता बनाए रखें।
  6. अशुद्ध वस्त्र पहनना: स्नान करने के बाद साफ और शुद्ध वस्त्र पहनें। गंदे या अशुद्ध कपड़े पहनने से बचें।
  7. कटाई-छंटाई से बचें: इस दिन बाल, नाखून आदि काटने से परहेज करें। इसे धार्मिक दृष्टि से अशुभ माना जाता है।
  8. शारीरिक और मानसिक अशुद्धता: व्रत के दौरान मन को शुद्ध और शांत रखने की कोशिश करें। किसी भी प्रकार के क्रोध, घृणा या नकारात्मक विचारों से बचें।

ऋषि पंचमी का व्रत भारतीय समाज में महिलाओं के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह पर्व उन्हें आत्मशुद्धि और मानसिक शांति प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है। इस दिन व्रत करने से पारिवारिक सुख और शांति प्राप्त होती है और महिलाओं को पवित्रता और धार्मिक आस्था में विश्वास बढ़ता है। ऋषि पंचमी का व्रत नारी शक्ति और पवित्रता का प्रतीक है, जो उन्हें एक नए जीवन की दिशा प्रदान करता है।

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