
साल में 24 एकादशी का व्रत रखा जाता है, जो सभी भगवान विष्णु को समर्पित है। यह व्रत हर माह के शुक्ल और कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर रखा जाता है, जो हर माह में दो बार आता है।
सफला एकादशी का महत्व और तिथि
पंचांग के अनुसार, पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस वर्ष, सफला एकादशी 26 दिसंबर 2024 को मनाई जाएगी। इस दिन सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु की आराधना करने से साधक को सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सफला एकादशी व्रत का पालन करने से लंबे समय से रुके हुए कार्य पूरे होते हैं और व्यक्ति को सफलता प्राप्त होती है। यह व्रत भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष कृपा पाने का अवसर प्रदान करता है। इस तिथि का नाम “सफला” भी इसीलिए रखा गया है क्योंकि यह सफलता प्राप्ति का प्रतीक है।
सफला एकादशी की पूजा विधि
- सफला एकादशी के दिन प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- एक चौकी पर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
- भगवान विष्णु को पीले फूल, फल, धूप, दीप और चंदन अर्पित करें।
- दूध, दही, घी, शहद और चीनी से तैयार पंचामृत का भोग लगाएं।
- पंचामृत में तुलसी का पत्ता अवश्य डालें।
- विष्णु जी के मंत्रों का जाप करें और एकादशी व्रत कथा का पाठ करें।
- अंत में भगवान विष्णु की आरती उतारें और पूजा में हुई भूल-चूक के लिए क्षमा प्रार्थना करें।
सफला एकादशी का धार्मिक महत्व
सफला एकादशी के व्रत का पालन करने से व्यक्ति के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत भगवान विष्णु की असीम कृपा पाने का अवसर प्रदान करता है। उपवास रखने और सच्चे मन से पूजा-अर्चना करने पर व्यक्ति के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, सफला एकादशी के दिन किए गए सभी धार्मिक कार्यों का फल कई गुना बढ़ जाता है। इसलिए इस दिन दान, पुण्य और भजन-कीर्तन का विशेष महत्व है।
सफला एकादशी की शुभकारिणी कथा
चम्पावती नामक एक नगर, जो पहले राजा माहिष्मत की राजधानी थी, में एक समय राजर्षि माहिष्मत के पांच पुत्र रहते थे। उनमें सबसे बड़े पुत्र का आचरण बहुत ही दुष्ट था। वह परस्त्रीगामी और निंदक था, और पिता का धन पाप के कामों में खर्च करता था। वह हमेशा बुरे आचरण में लिप्त रहता और ब्राह्मणों, वैष्णवों और देवताओं की निंदा करता था। उसे देखकर राजा माहिष्मत ने उसे ‘लुंभक' नाम दिया और अंततः उसे राज्य से बाहर कर दिया।
लुंभक अपने राज्य से बाहर वन में चला गया और वहां आकर उसने नगर का धन लूट लिया। एक दिन जब वह चोरी करने के लिए नगर में आया, तो रात के पहरेदारों ने उसे पकड़ लिया। लेकिन जब उसने खुद को माहिष्मत का पुत्र बताया, तो सिपाही उसे छोड़ दिए। फिर वह वापस जंगल में लौट आया और मांस तथा पेड़ों के फल खाकर जीवनयापन करने लगा। वह अपने विश्राम स्थान पर एक पुराने पीपल के वृक्ष के नीचे रहता था, जो उस वन में एक देवता के रूप में पूजित था।
एक दिन, लुंभक के जीवन में कुछ बदलाव आया। किसी पुराने पुण्य के प्रभाव से उसने एकादशी का व्रत लिया। पौष मास के कृष्ण पक्ष में, दशमी तिथि को उसने पेड़ों के फल खाए और वस्त्रहीन होकर रात भर सर्दी में कष्ट भोगा। वह पूरी रात जागता रहा, और सूर्योदय के समय तक उसकी स्थिति बहुत खराब हो गई। लेकिन दोपहर के समय, उसे चेतना मिली। लुंभक ने देखा कि सूर्य अस्त हो चुके थे, तो उसने पेड़ की जड़ में और फल चुने और भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे इन फलों से संतुष्ट हों। उसने रातभर जागते हुए व्रत का पालन किया और फिर आकाशवाणी सुनाई दी, जिसमें कहा गया, “राजकुमार! तुम सफला एकादशी के पुण्य से राज्य और संतान प्राप्त करोगे।”
इस वचन को सुनकर लुंभक ने आशीर्वाद स्वीकार किया और उसका रूप दिव्य हो गया। उसकी बुद्धि भगवान विष्णु के भजन में रम गई। उसे दिव्य आभूषणों से सजाया गया और उसने उत्तम राज्य प्राप्त किया, जिसे वह पंद्रह वर्षों तक ठीक से चलाता रहा। भगवान श्री कृष्ण की कृपा से उसके घर मनोज्ञ नामक पुत्र हुआ। जब वह बड़ा हुआ, तो लुंभक ने राज्य की ममता छोड़ दी और अपना राज्य पुत्र को सौंपकर भगवान श्री कृष्ण के पास चले गए, जहां कोई कभी दुखी नहीं होता।
राजन्! इस प्रकार, जो व्यक्ति सफला एकादशी का व्रत करता है, वह इस लोक में सुख पाता है और मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त करता है। ऐसे लोग धन्य हैं, जो सफला एकादशी के व्रत में लगे रहते हैं। उनके जन्म का उद्देश्य सफल होता है। महाराज! इस कथा को पढ़ने, सुनने और इसके अनुसार आचरण करने से मनुष्य राजसूय यज्ञ के फल के समान पुण्य प्राप्त करता है।
निष्कर्ष
सफला एकादशी व्रत भगवान विष्णु की आराधना और उनकी कृपा प्राप्त करने का पवित्र दिन है। इस दिन की गई भक्ति और उपवास व्यक्ति के जीवन को उन्नति और समृद्धि की ओर ले जाते हैं। सफला एकादशी न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह व्यक्ति के मानसिक और आत्मिक शुद्धिकरण का भी मार्ग प्रशस्त करती है। इसे सच्चे मन और श्रद्धा से मनाना चाहिए ताकि भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में सफलता और सुख-शांति का अनुभव हो सके।