Press ESC to close

VedicPrayersVedicPrayers Ancient Vedic Mantras and Rituals

Shri Vishnu Chalisa | श्री विष्णु चालीसा | PDF

3
0

Shri Vishnu Chalisa

।। दोहा ।।

विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय।
कीरत कुछ वर्णन करूँ दीजै ज्ञान बताय।।

अर्थ – हे सृष्टि के संचालनकर्ता!! भगवान विष्णु!! अपने सेवक के मन को जानिए। आज आपका भक्त आपके बारे में इस विष्णु चालीसा के माध्यम से वर्णन कर रहा है, कृपया उसे ज्ञान दीजिए।

।। चौपाई ।।

नमो विष्णु भगवान खरारी, कष्ट नशावन अखिल बिहारी।

अर्थ –  भगवान विष्णु सभी कष्टों व दुखो का नाश करते हैं और सभी का उद्धार करते हैं, उन्हें हम सभी का नमन है।

प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी, त्रिभुवन फैल रही उजियारी।

अर्थ –  आपकी शक्ति संपूर्ण सृष्टि में सबसे शक्तिशाली है और आपका उत्कर्ष तीनों लोकों में व्याप्त हो रहा है।

सुंदर रूप मनोहर सूरत, सरल स्वभाव मोहनी मूरत।

अर्थ – आपका रूप बहुत ही सुंदर, मन को मोह लेने वाला है और आपका स्वभाव एकदम सरल है। आप अपने रूप से सभी का मन मोह लेते हो।

तन पर पीतांबर अति सोहत, बैजंती माला मन मोहत।

अर्थ – आपने अपने तन पर पीले रंग के वस्त्र पहने हुए हैं और गले में बैजंती की माला सुशोभित है।

शंख चक्र कर गदा बिराजे, देखत दैत्य असुर दल भाजे।

अर्थ – आपने अपने हाथों में शंख, सुदर्शन चक्र, गदा पकड़े हुए हैं जिन्हें देखकर असुरों में भय व्याप्त रहता है।

सत्य धर्म मद लोभ न गाजे, काम क्रोध मद लोभ न छाजे।

अर्थ – आपके कारण ही इस सृष्टि में सत्य, धर्म इत्यादि की विजय रहती है और काम, क्रोध, मद, लोभ इत्यादि का नाश होता है।

Shree Vishnu Chalisa image

संत भक्त सज्जन मन रंजन, दनुज असुर दुष्टन दल गंजन।

अर्थ – आप ही संतों, ऋषि-मुनि, सज्जन मनुष्यों की रक्षा करते हो और उनके मन को आनंदित करते हो तो वहीं दूसरी ओर, आप ही असुर, दैत्य व राक्षसों का नाश करते हो।

सुख उपजाय कष्ट सब भंजन, दोष मिटाय करत जन सज्जन।

अर्थ – आप ही सुख प्रदान करने वाले हैं और आप ही हम सभी के कष्टों को हरने वाले हैं। आप ही हमारी कमियों को दूर करने वाले हैं और आप ही हमे सद्पुरुष बनाने वाले हैं।

पाप काट भव सिंधु उतारण, कष्ट नाशकर भक्त उबारण।

अर्थ – भगवान विष्णु के द्वारा ही अपन भक्तों के पापों को नष्ट कर उनका उद्धार किया जाता है और उनके कष्ट दूर कर उन्हें भव सागर पार करवाया जाता है।

करत अनेक रूप प्रभु धारण, केवल आप भक्ति के कारण।

अर्थ – पृथ्वी पर धर्म की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने समय-समय पर कई अवतार लिए हैं और अपने भक्तों का उद्धार किया है।

धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा, तब तुम रूप राम का धारा।

अर्थ – त्रेतायुग में पृथ्वी पर जब राक्षसों का अत्याचार अत्यधिक बढ़ गया और आपके भक्तों ने आपको पुकारा तो आप श्रीराम का रूप धारण कर पृथ्वी पर अवतरित हुए।

भार उतार असुर दल मारा, रावण आदिक को संहारा।

अर्थ – श्रीराम के रूप में आपने राक्षसों के राजा रावण का उसके संपूर्ण कुल व राक्षस सेना के साथ नाश कर दिया और धरती का भार हल्का किया।

आप वराह रूप बनाया, हिरण्याक्ष को मार गिराया।

अर्थ – हिरण्याक्ष के द्वारा पृथ्वी को समुंद्र में डुबो देने के कारण आपने वराह रूप धारण कर पृथ्वी की रक्षा की व हिरण्याक्ष राक्षस का वध किया।

धर मत्स्य तन सिंधु बनाया, चौदह रतनन को निकलाया।

अर्थ – पिछले कल्प के अंत समय में आप मत्स्य रूप धरकर उस कल्प से चौदह रत्नों को बचाकर इस कल्प में लेकर आये और अपनी महिमा को दिखाया।

अमिलख असुरन द्वंद मचाया, रूप मोहनी आप दिखाया।

अर्थ – समुंद्र मंथन के समय जब असुरों के द्वारा अमृतपान के लिए अत्यधिक उत्पाद मचाया गया तब आपने मोहिनी रूप धरा।

देवन को अमृत पान कराया, असुरन को छवि से बहलाया।

अर्थ – मोहिनी रूप में आपने देवताओं को अमृत पिलाया जबकि असुरों को अपने रूप में बहलाकर रखा।

कूर्म रूप धर सिंधु मझाया, मंद्राचल गिरि तुरत उठाया।

अर्थ – समुंद्र मंथन के लिए आपने कुर्म अवतार धारण किया और मंदराचल पर्वत का भार उठाया।

शंकर का तुम फंद छुड़ाया, भस्मासुर को रूप दिखाया।

अर्थ – भगवान शिव जब भस्मासुर को दिए वरदान से परेशान हो गए तब आप ने ही स्त्री रूप धरकर भस्मासुर का अंत किया।

वेदन को जब असुर डुबाया, कर प्रबंध उन्हें ढूंढवाया।

अर्थ – जब राक्षसों के द्वारा भगवान ब्रह्मा से वेदों को चुराकर समुंद्र में डुबो दिया गया तब आप ही हयग्रीव अवतार में वेदों को पुनः लेकर आये।

मोहित बनकर खलहि नचाया, उसही कर से भस्म कराया।

अर्थ – आपने स्त्री रूप में भस्मासुर को अपने साथ नृत्य करने के लिए तैयार किया और उसी के वरदान से उसे भस्म कर दिया।

असुर जलंधर अति बलदाई, शंकर से उन कीन्ह लडाई।

अर्थ – एक बार जलंधर राक्षस ने अत्यधिक आंतक मचा दिया और भगवान शिव के साथ भयंकर युद्ध किया।

हार पार शिव सकल बनाई, कीन सती से छल खल जाई।

अर्थ – भगवन शिव ने जलंधर से भीषण युद्ध किया लेकिन उसकी पत्नी वृंदा के तप के कारण उसे पराजित नही कर सके और यह देखकर माता सती परेशान हो उठी।

सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी, बतलाई सब विपत कहानी।

अर्थ – इसके पश्चात माता सती ने आपको ही याद किया और सब समस्या आपको बताई।

तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी, वृन्दा की सब सुरति भुलानी।

अर्थ – माता सती के आग्रह पर आपने वृंदा की तपस्या को भंग करने के लिए जलंधर का रूप धरा और वृंदा के पास गए।

Shri vishnu chalisa image

देखत तीन दनुज शैतानी, वृन्दा आय तुम्हें लपटानी।

अर्थ – वृंदा ने जब आपको देखा तो वह भी भ्रम में पड़ गयी और अपनी तपस्या छोड़कर आपके पास आ गयी।

हो स्पर्श धर्म क्षति मानी, हना असुर उर शिव शैतानी।

अर्थ – माता वृंदा के स्पर्श से आपने अपनी गलती भी स्वीकार की और उन्हें सदैव अपने साथ माता तुलसी के रूप में पूजने का आशीर्वाद दिया और दूसरी ओर, भगवान शिव ने जलंधर का वध कर दिया।

तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे, हिरणाकुश आदिक खल मारे।

अर्थ – आप ही ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए उसके पिता हिरन्यकश्यप का नरसिंह अवतार में वध किया।

गणिका और अजामिल तारे, बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे।

अर्थ – आपने अपने अनेक गण, भक्त इत्यादि का उद्धार किया है और उन्हें भव सागर पार लगाया है।

हरहु सकल संताप हमारे, कृपा करहु हरि सिरजन हारे।

अर्थ – हे भगवन विष्णु!! कृपा हमारे दुखों का भी अंत कीजिए और हम पर अपनी कृपा दृष्टि बनाइए।

देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे, दीन बन्धु भक्तन हितकारे।

अर्थ – मैं प्रतिदिन ही आपके दर्शन करता हूँ। आप ही याचकों, निर्धनों, भक्तों के लिए शुभ फल देने वाले हैं।

चहत आपका सेवक दर्शन, करहु दया अपनी मधुसूदन।

अर्थ – आपका सेवक आपके दर्शन करने से बहुत खुश है और वह आपसे अपने ऊपर कृपा रखने की याचना कर रहा है।

जानूं नहीं योग्य जप पूजन, होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन।

अर्थ – मैं नादान हूँ प्रभु और इतना तप-यज्ञ के बारे में नही जानता, मैं केवल आपका ही स्मरण करता हूँ।

शीलदया संतोष सुलक्षण, विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण।

अर्थ – मुझ पर अपनी दया दिखाइए प्रभु और मुझे व्रत इत्यादि विधि के बारे में इतना पता नही है।

करहुं आपका किस विधि पूजन, कुमति विलोक होत दुख भीषण।

अर्थ – मैं अज्ञानी आपका किस विधि के अनुरूप पूजन करूँ, अज्ञानता में मुझसे कोई भूल ना हो जाए अन्यथा इसका दुःख बहुत भीषण होगा।

करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण, कौन भांति मैं करहु समर्पण।

अर्थ – मैं आपको विधिपूर्वक प्रणाम करता हूँ और आपके सामने अपना संपूर्ण समर्पण करता हूँ।

सुर मुनि करत सदा सेवकाई, हर्षित रहत परम गति पाई।

अर्थ – देवताओं, ऋषि-मुनियों ने सदैव ही आपकी सेवा की है और परम हर्ष को प्राप्त किया है।

दीन दुखिन पर सदा सहाई, जिन जन जान लेव अपनाई।

अर्थ – आपने सदा ही दीन, दुखियों इत्यादि पर अपनी कृपा दृष्टि रखी है और उन्हें अपना बनाया है।

पाप दोष संताप नशाओ, भव बंधन से मुक्त कराओ।

अर्थ – आप ही हम सभी के पाप, दोष, कमियों को दूर करने वाले हो और हमे सभी सांसारिक बंधनों से मुक्त कर हमारा उद्धार करने वाले हो।

सुत संपत्ति दे सुख उपजाओ, निज चरनन का दास बनाओ।

अर्थ – आप ही हमे संतान, संपत्ति देकर सुख देते हो और अब हमे अपने चरणों का दास बनाकर हमे मुक्त कीजिए।

निगम सदा ये विनय सुनावै, पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै।

अर्थ – निगम सदा ही सभी से यह प्रार्थना करता है कि जो कोई भी यह विष्णु चालीसा पढ़ता है या दूसरों को सुनाता है, वह सदैव सुख पाता है।